International News: भारत में काम के घंटे बढ़ाने पर चर्चा हो रही है, जबकि जापान जैसे देश, जो कभी लंबी वर्किंग आवर्स के लिए कुख्यात था, अब काम और निजी जीवन के बीच संतुलन पर जोर दे रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, भारतीय कर्मचारी हर सप्ताह औसतन 46.7 घंटे काम करते हैं। इस मामले में भारत दूसरे स्थान पर है।
भारत में वर्क-लाइफ बैलेंस की चुनौती
देश के 51% कर्मचारी हर सप्ताह 49 घंटे या उससे ज्यादा काम करते हैं। यह आंकड़े साफ बताते हैं कि भारत में वर्क लाइफ बैलेंस अभी भी एक बड़ा मुद्दा है। जहां भारत में काम के घंटे बढ़ाने की बात हो रही है, वहीं जापान एक अलग दिशा में बढ़ रहा है।
जापान में वर्क कल्चर का बदलाव
जापान की कठोर कामकाजी संस्कृति और ‘करोशी’ (अत्यधिक काम के कारण मौत) के लिए दुनिया भर में बदनामी थी। 2022 में करीब 3,000 लोगों ने अत्यधिक काम के कारण आत्महत्या की। इस माहौल में बदलाव की सख्त जरूरत थी। अब, जापान ने काम के घंटे कम कर दिए हैं।एक अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, जापान में औसत वार्षिक कामकाजी घंटे 2000 में 1,839 थे, जो 2022 तक घटकर 1,626 रह गए। यह 11.6% की गिरावट है।
नई पीढ़ी का नजरिया
इस बदलाव के पीछे जापान की युवा पीढ़ी का बड़ा हाथ है। 2000 में, 20 से 29 साल के पुरुष औसतन 46.4 घंटे प्रति सप्ताह काम करते थे, जो अब घटकर 38.1 घंटे रह गया है। कम्युनिकेशन एक्सपर्ट माकोटो वतनबे का कहना है कि युवा अब बिना व्यक्तिगत लाभ के अत्यधिक मेहनत को शोषण मानते हैं। वे वर्क लाइफ बैलेंस को प्राथमिकता दे रहे हैं।
काम के प्रेशर और जिंदगी का महत्व
जापान में श्रम की कमी ने भी इस बदलाव को तेज किया। कंपनियां अब कर्मचारियों को बेहतर शर्तें और सुविधाएं दे रही हैं। जहां पहले बिना वेतन के ओवरटाइम आम था, अब युवा बेहतर वेतन और जीवन की गुणवत्ता का आनंद ले रहे हैं।
पुरानी पीढ़ी की सोच
हालांकि यह बदलाव सकारात्मक है, लेकिन पुरानी पीढ़ी इसे पूरी तरह स्वीकार नहीं कर पा रही है। उनका मानना है कि सफलता के लिए लंबे घंटे काम करना जरूरी है। नई पीढ़ी की यह सोच उनके लिए असहज है।