सरकार अब नहीं लड़ेगी शिक्षकों का मुकदमा, टीचर्स को देनी ही पड़ेगी TET की परीक्षा

ऐसे में एक बड़ी खबर झारखंड से निकलकर सामने आई है। यहां की सरकार ने बड़ा निर्णय लिया है। सरकार अब सुप्रीम कोर्ट नहीं जाएगी।

नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने देश के शिक्षकों की नींद हराम कर दी। सुप्रीम कोर्ट के टीईटी परीक्षा देने के आदेश पर टीचर्स रतजगा कर रहे हैं। काली पट्टी बांधकर प्रदर्शन कर रहे हैं। पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर शिक्षकों के पक्ष में लड़ाई की मांग कर रहे हैं। अब हालात इस कदर खराब हो गए हैं कि कुछ शिक्षक सुसाइड का ऐलान भी करने लगे। ऐसे दावे भी किए जा रहे हैं कि टीईटी की अनिवार्यता को लेकर दो शिक्षकों ने मौत को गले भी लगा लिया। केंद्र सरकार और देश की राज्य सरकारें सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर आकलन कर रही हैं। यूपी और हिमाचल प्रदेश की सरकारों ने कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनविचार याचिका दायर करने का निर्णय लिया है। वहीं सबसे हैरान कर देने वाली खबर झारखंड से सामने आई है। यहां की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट जानें से साफ इंकार कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश के करीब चार से पांच लाख शिक्षकों की नौकरी संकट में फंस गई है। ऐसे में शिक्षक खासे दहशत में हैं। पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर अन्य दलों के नेताओं को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट में शिक्षकों के पक्ष में पैरवी की मांग कर रहे हैं। जिस पर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने शिक्षकों का मुकदमा कोर्ट में लड़े जाने का एलान भी कर दिया है। यूपी के करीब 2 लाख शिक्षकों की पैरवी अब यूपी सरकार करने जा रही है। वहीं देश के अन्य राज्यों की सरकारें भी टीईटी को लेकर एक्शन में हैं। बैठक और मंथनों का दौर जारी है। ऐसे में एक बड़ी खबर झारखंड से निकलकर सामने आई है। यहां की की सरकार ने बड़ा निर्णय लिया है। सरकार अब सुप्रीम कोर्ट नहीं जाएगी।

प्रारंभिक शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण होने की अनिवार्यता संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध झारखंड सरकार शीर्ष कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दाखिल नहीं करेगी। स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग इसकी कोई पहल नहीं करेगा। अलबता विभाग का प्रयास होगा कि दो वर्षों में कम से कम दो शिक्षक पात्रता परीक्षा अनिवार्य रूप से आयोजित की जा सके, ताकि इस अवधि में अधिक से अधिक प्रारंभिक शिक्षक यह पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण हो सकें। दरअसल, विभाग का यह मानना है कि कोर्ट में रिव्यू पिटीशन अक्सर टिकता नहीं है। इसलिए रिव्यू पिटीशन दाखिल करने से अधिक सुलभ रास्ता समय पर टेट आयोजित कराना होगा। विभाग इसपर केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के रुख तथा दिशा-निर्देश का भी इंतजार करेगा।

बताते चलें कि सर्वोच्च न्यायालय ने कार्यरत उन सभी प्रारंभिक शिक्षकों के लिए यह पात्रता परीक्षा दो वर्षों के भीतर उत्तीर्ण होना अनिवार्य किया है, जिनकी सेवा पांच वर्ष से अधिक बची है। दो वर्षों में यह परीक्षा उत्तीर्ण नहीं होने पर उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति लेनी होगी, नहीं तो सरकार ही उन्हें सेवा से हटा देगी। इससे राज्य के लगभग 30 हजार वैसे प्रारंभिक शिक्षक प्रभावित हो रहे हैं, जो फ्री एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के लागू होने के पूर्व नियुक्त हैं। यदि सर्वोच्च न्यायालय का आदेश सहायक अध्यापकों (पारा शिक्षकों) पर भी लागू होता है तो यह संख्या काफी अधिक बढ़ जाएगी। दूसरी तरफ, इन शिक्षकों का कहना है कि चूंकि वे इस कानून के लागू होने से पूर्व से कार्यरत हैं, इसलिए यह उनपर लागू नहीं होना चाहिए।

वहीं सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध देशभर के शिक्षक लामबंद हो रहें हैं। वहीं, विभिन्न शिक्षक संघ आंदोलन कर रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से प्रभावित शिक्षक चाहते हैं कि झारखंड सरकार तथा केंद्र सरकार कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दाखिल करें। साथ ही आरटीई कानून और नियमावली में संशोधन कर इसे सुनिश्चित किया जाए कि कानून तथा नियमावली लागू होने के पूर्व नियुक्त शिक्षकों पर टेट उत्तीर्ण होने की अनिवार्यता नहीं होगी। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध कानून या नियमावली में संशोधन करना अवमानना का मामला हो सकता है। बताया जाता है कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड सहित कुछ राज्यों ने सर्वोच्च न्यायालय में उक्त आदेश के विरुद्ध रिव्यू पिटीशन दाखिल किया है।

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