Justice Is Greater Than Winning:सुप्रीम कोर्ट के अगले मुख्य न्यायाधीश बनने जा रहे जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि किसी केस को लड़ने या जीतने से ज्यादा अहम यह है कि न्याय मिले। वे रविवार को डॉ. राममनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, लखनऊ के चौथे दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि हर वकील का लक्ष्य सिर्फ जीतना नहीं होना चाहिए, बल्कि यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके तर्क और प्रयास से न्याय की भावना कायम रहे।
Justice Suryakant ने छात्रों को सलाह दी कि वे अति आत्मविश्वास (overconfidence) से दूर रहें और हर केस को पूरी तैयारी के साथ लड़ें। उन्होंने कहा, “कई बार हमें लगता है कि हम सब जानते हैं, पर वही आत्मविश्वास हमें हार की ओर ले जाता है।”
जस्टिस सूर्यकांत ने साझा किया अपना अनुभव
जस्टिस सूर्यकांत ने अपने जीवन का एक रोचक अनुभव साझा किया। उन्होंने बताया, “एक बार मैं अति आत्मविश्वास में था और एक केस हार गया। तब से मैंने हमेशा अपने विचार और तर्क नोटबुक में लिखने की आदत डाल ली।” उन्होंने कहा कि हर वकील को खुद से यह सवाल करना चाहिए क्या मैंने पूरी तैयारी की थी? क्या मेरी दलीलें मजबूत थीं?
उन्होंने कहा, “हर फैसला सिर्फ एक केस तक सीमित नहीं होता, बल्कि आने वाले सैकड़ों मामलों की दिशा तय करता है। 15 साल की प्रैक्टिस के बाद आप खुद से पूछेंगे कि क्या मेरे केस का फैसला भविष्य के 100 मामलों के लिए मददगार होगा।”
Justice Suryakant ने छात्रों से कहा कि वे अपने हर मुवक्किल को गंभीरता से लें, क्योंकि हर केस समाज में न्याय की नई मिसाल बन सकता है।
‘समाज के लिए काम करना सबसे बड़ी खुशी’
समारोह में जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि जब वर्ष 2023 में उन्हें विश्वविद्यालय का विजिटर नियुक्त किया गया था, तब यहां ऑडिटोरियम नहीं था। उन्होंने बताया, “मेरे सुझाव पर यह शानदार ऑडिटोरियम बना है, जिसमें अब 2200 लोगों के बैठने की व्यवस्था है।”
उन्होंने हंसते हुए कहा, “पिछले साल फ्लाइट लेट होने के कारण मैं समारोह में शामिल नहीं हो सका था, लेकिन इस बार समय पर पहुंचकर बहुत खुश हूं।”
जस्टिस नाथ ने छात्रों को संदेश दिया कि अगर आप समाज के लिए काम करेंगे, तो भीतर से सच्ची खुशी और संतोष मिलेगा।
‘मौन रहना न्यायिक जीवन की जरूरत है’
इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरुण कुमार भंसाली ने कहा कि विधि का क्षेत्र इंसान को कई अहम सबक सिखाता है। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, “न्यायिक जीवन में मौन रहना और धैर्य रखना सबसे जरूरी गुण है। वर्षों की सेवा ने मुझे यह सिखाया कि हर निर्णय से पहले मन की शांति आवश्यक है।”
