Ramlila of Kanpur: 148 बरस की हुई परेड की रामलीला, पहली बार कानपुर के रावण से लड़ेंगे दुबई के राम

उत्तर प्रदेश के कानपुर की ऐतिहासिक रामलीला परेड 148 सालों से अपनी सांस्कृतिक विरासत को निभा रही हैं। इस साल भी भक्ति और कला का अनूठा संगम भक्तों को देखने को मिल रहा है।

कानपुर। उत्तर प्रदेश के कानपुर के परेड की रामलीला 148 बरस की हो गई है। अंग्रेजों के जमाने में रामलीला का आगाज हुआ। तब अंग्रेज कल्लेक्टर से लेकर कोतवाल तक रामलीला मंचन को देखने आया करते थे। परेड की रामलीला की एक नहीं अनगिनत कहानियां हैं। यहां पर विराजमान रावण के पुतले का निर्माण मुस्लिम परिवार दशकों से करता आ रहा है। रामलीला में हिन्दुओं के साथ मुस्लिम समाज के लोग भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते आ रहे हैं। इस बार परेड की रामलीला दर्शकों को भक्ति और कला के अनूठे संगम का साक्षी बनाएगी। श्री रामलीला सोसाइटी परेड के तत्वावधान में आयोजित इस रामलीला में मथुरा की मंडली की ओर से मंचन किया जा रहा है। दुबई से राम बुलाए गए हैं, जो रावण से दो-दो हाथ करेंगे।

कानपुर के परेड की रामलीला की इस बार की खासियत है कि मंच पर सीता के रूप में अभिनय करने वाला कक्षा आठ का छात्र कार्तिकेय चतुर्वेदी और साधु वेश में रावण की भूमिका निभाने वाले उनके पिता रत्नेश दत्त चतुर्वेदी एक-दूसरे के सामने एक्टिंग कर रहे हैं। . यह पिता-बेटे की जोड़ी सीता हरण के प्रसंग को जीवंत करेगी, जो दर्शकों के लिए भावनात्मक और नाटकीय अनुभव होगा। इस रामलीला में भगवान राम की भूमिका निभाने वाले 24 साल सूरज चतुर्वेदी दुबई में अकाउंटेंट के रूप में कार्यरत हैं। मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि निवासी सूरज ने एम.कॉम की डिग्री हासिल की है और पिछले आठ सालों से रामलीला में एक्टिंग कर रहे हैं। उनके गुरु व्यास महेश दत्त चतुर्वेदी से उन्होंने एक्टिंग की बारीकियां सीखी हैं। सूरज कहते हैं, रामचरितमानस मेरे लिए सिर्फ एक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन का मार्गदर्शक है। भगवान राम के त्याग और आदर्शों से मैं प्रभावित हूं।

लक्ष्मण की भूमिका में 25 वर्षीय अंकुर चतुर्वेदी नजर आएंगे, जो मथुरा में पैक्ड पानी और शीतलपेय की एजेंसी चलाते हैं। पिछले तीन सालों तक वह राम की भूमिका निभा चुके हैं और इस बार लक्ष्मण के किरदार में दर्शकों का मन मोह रहे हैं। हनुमान की भूमिका 28 साल के अभिषेक दत्त चतुर्वेदी निभा रहे हैं, जो पहले अहिरावण, बाली और शंकर जैसे किरदारों में अपनी छाप छोड़ चुके हैं। रत्नेश दत्त, जो साधु वेश में रावण का किरदार निभाते हैं। नारद और कुंभकर्ण की भूमिकाओं में भी मंच पर उतरते हैं। परेड की रामलीला को देखने के लिए हरदिन हजारों की संख्या में भक्त पहुंच रहे हैं। रामलीला कमेटी की तरफ से शानदार व्यवस्था की गई है। दहशरे के दिन करीब पांच लाख लोग रामलीला देखने को आ सकते हैं। रावण के पुतले का निर्माण मुस्लिम परिवार की तरफ से किया गया है। रामलीला कमेटी की तरफ से बताया गया है कि पिछले कई दशकों से एक ही मुस्लिम परिवार रावण के पुतले को गढ़ता आ रहा है।

परेड की रामलीला की शुरुआत 1877 में पंडित प्रयाग नारायण तिवारी ने की थी, जब देश में अंग्रेजी शासन था। उस समय बच्चों को अनंत चतुर्दशी से सोसाइटी में बुलाकर एक्टिंग सिखाई जाती थी। 15 दिन की दीक्षा, मुंडन संस्कार और यज्ञोपवीत धारण के बाद उन्हें मंचन की जिम्मेदारी सौंपी जाती थी। 1975 तक स्वरूप परंपरा के तहत भगवान के अंशावतार के रूप में बच्चों को तैयार किया जाता था। अब मथुरा की मंडली इस परंपरा को आगे बढ़ा रही है। रामलीला की शुरुआत पहले राम वनवास के प्रसंग से होती थी और बीएनएसडी भवन सेक्शन हाल में मंचन किया जाता था। राजगद्दी उत्सव हटिया में मनाया जाता था। वर्तमान में यह आयोजन परेड मैदान में होता है, जहां मुकुट पूजन की परंपरा आज भी जीवित है। यह रामलीला न केवल धार्मिक उत्साह का प्रतीक है, बल्कि कला, संस्कृति और समर्पण का अनूठा संगम भी है। शहरवासियों के लिए यह रामलीला केवल एक नाट्य मंचन नहीं, बल्कि आस्था और परंपरा का जीवंत उत्सव है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है।

कानपुर के परेड मैदान में होने वाली रामलीला अपने आप में बेहद खास मानी जाती है। इस रामलीला को देखने के लिए कानपुर शहर ही नहीं, बल्कि कई जिलों से लाखों की संख्या में लोग पहुंचते हैं। समय के साथ-साथ यहां पर होने वाली रामलीला में कई बदलाव भी हुए हैं। एक दौर था, जब इस कमेटी में केवल पांच सदस्य थे। लोगों के बैठने की कोई समुचित व्यवस्था नहीं हुआ करती थी। लोग यहां पर खड़े होकर इस रामलीला का आनंद लेते थे। लेकिन, आज की बात की जाए, तो इस कमेटी में करीब 500 से अधिक सदस्य है। श्री रामलीला कमेटी परेड के प्रशासनिक संयोजक प्रवीण अग्रवाल ने बताया, कि 148 सालों से इस रामलीला का आयोजन किया जा रहा है। परेड ग्राउंड में होने वाली इस रामलीला को देखने के लिए अंग्रेज भी आते थे। इतना ही नहीं, बड़े चाव से उनके द्वारा इस रामलीला का आयोजन भी कराया जाता था।

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