Prayagraj 1954 और 2013 में भी सैकड़ों लोगों ने हादसे में गंवाई थी जान ,वो दो हादसे जो भुलाएं नहीं भूलते

प्रयागराज कुंभ मेला दो बड़े हादसों का गवाह रहा है। 1954 में एक हाथी के बेकाबू होने से भगदड़ मची, जिसमें 800 लोग मारे गए। 2013 में रेलवे स्टेशन पर अनाउंसमेंट के कारण अफरा-तफरी हुई, जिसमें 36 लोगों की मौत हुई। इन घटनाओं के बाद प्रशासन ने भीड़ नियंत्रण पर ज्यादा ध्यान देना शुरू किया।

prayagraj kumbh mela tragedy

 prayagraj kumbh mela tragedy : प्रयागराज का कुंभ मेला आस्था और भक्ति का सबसे बड़ा आयोजन होता है। यहां हर साल लाखों लोग गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में डुबकी लगाने आते हैं। मगर इस विशाल आयोजन में कई बार ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं, जो हमेशा याद रहेंगी। खासकर 1954 और 2013 के कुंभ मेले के हादसे, जिनमें सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी।

1954 जब मची भगदड़ और गई 800 जानें

1954 में स्वतंत्र भारत का पहला कुंभ मेला हुआ था। 3 फरवरी को मौनी अमावस्या का दिन था, जब लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान के लिए पहुंचे थे। उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू भी मेले में मौजूद थे। अचानक एक हाथी बेकाबू हो गया और भगदड़ मच गई। हजारों लोग इधर-उधर भागने लगे, जिससे सैकड़ों लोग कुचल गए। इस हादसे में करीब 800 लोगों की जान चली गई थी और 2000 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।

इस घटना के बाद प्रधानमंत्री नेहरू ने जांच के आदेश दिए और न्यायमूर्ति कमलाकांत वर्मा की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई। हालांकि, सरकार इस हादसे को छिपाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन एक पत्रकार एनएन मुखर्जी ने हादसे की तस्वीरें लेकर सच को सामने लाने का काम किया। इस खबर के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत काफी नाराज हुए थे। इस हादसे के बाद प्रशासन ने कुंभ मेले में भीड़ नियंत्रण के नए नियम बनाए, जिससे अगले कई दशकों तक कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ।

2013 रेलवे स्टेशन पर भगदड़, 36 लोगों की मौत

2013 के कुंभ मेले में भी एक दर्दनाक हादसा हुआ। 10 फरवरी को मौनी अमावस्या का दिन था। लाखों लोग संगम में डुबकी लगाने के बाद अपने घर लौट रहे थे। प्रयागराज रेलवे स्टेशन पर भारी भीड़ जमा हो गई थी। हर प्लेटफॉर्म लोगों से ठसाठस भरा हुआ था। शाम करीब सात बजे एक अनाउंसमेंट हुई कि ट्रेन प्लेटफॉर्म नंबर 6 की बजाय किसी और प्लेटफॉर्म पर आ रही है। जैसे ही लोगों को यह पता चला, वे दौड़ पड़े।

फुट ओवरब्रिज पर हजारों लोग एक साथ चढ़ गए, जिससे ब्रिज पर दबाव बढ़ गया और भगदड़ मच गई। कुछ लोग नीचे गिर गए, कुछ भीड़ में दब गए। इस हादसे में 36 लोगों की मौत हो गई और 50 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हो गए।

रेलवे प्रशासन पर सवाल उठे कि इतनी भीड़ के बीच व्यवस्था क्यों नहीं बनाई गई। हादसे के बाद रेलवे ने भीड़ नियंत्रण के लिए नए नियम बनाए, ताकि दोबारा ऐसी घटना न हो।

इन घटनाओं से क्या सीखा गया

प्रयागराज कुंभ में लाखों लोगों की भीड़ होती है, इसलिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम होने जरूरी हैं। 1954 और 2013 के हादसों ने प्रशासन को सिखाया कि भीड़ नियंत्रण कितना जरूरी है। अब मेले में ज्यादा पुलिस बल, सीसीटीवी कैमरे, कंट्रोल रूम और अलग अलग एंट्री एग्जिट गेट बनाए जाते हैं, ताकि हादसे से बचा जा सके।

कुंभ मेला भले ही भक्ति और श्रद्धा का संगम हो, लेकिन भीड़ की सही व्यवस्था न हो तो यह खतरनाक भी साबित हो सकता है। प्रशासन को हमेशा सतर्क रहना होगा, ताकि फिर कोई परिवार अपने प्रियजनों को न खोए।

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