(मोहसिन खान) नोएडा डेस्क। यूं तो होली का ज़िक्र आते ही जहन में गुलाब, टेसू के फूल, अबीर, गुलाल और रंगों का ख्याल आता है। लेकिन यूपी का एक गांव ऐसा भी है जहां रंगों से होली खेलने के बाद एक ऐसी परंपरा को निभाया जाता है। जिसमें गांव के युवा अपने शरीर को नुकीले औज़ारों (Meerut News) से बेधते है और फिर उनकी तख्त यात्रा निकाली जाती है। यूपी के मेरठ ज़िले से तकरीबन 15 किलोमीटर दूर गांव बिजौली में होती है ये नुकीले औज़ारों वाली अनोखी होली। आईये जानते है कि आखिरकार क्या है बिजौली की होली का इतिहास और कैसे शुरू हुई ये अनोखी परंपरा।
अकाल मृत्यु और आपदाओं से बचाती है तख्त यात्रा
तकरीबन पिछले 500 साल पहले से मेरठ के गांव बिजौली में तख्त यात्रा निकल रही है और इसकी शुरूआत राजा रणविजय सिंह के समय से हुई थी। जानकारी के मुताबिक राजा रणविजय सिंह (Meerut News) ने बिजौली गांव को बसाया था और उनके शासनकाल में गांव में अकाल मृत्यु और काफी सारी आपदाओं हुई जिसके बाद ग्रामीण परेशान हो गए। उसके बाद गांव में अपने शिष्य के साथ तपस्वी संत रूपी बाबा गंगापुरी आए थे।
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उन्होंने ही राजा रणविजय को यह तख्त परंपरा बताई थी। तभी से इस परंपरा का पालन किया जा रहा है. वह बताते हैं कि भगवान की इस तरीके से कृपा है कि गांव में कोई भी आपदा नहीं आती है। सभी लोग खुश होकर रंग खेलने के बाद इस परंपरा को निभाते हुए नजर आते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि अगर होली पर बिजौली गांव में तख्त यात्रा नहीं निकलती है तो फिर गांव में आपदा आ जाती है।
नुकीलें औज़ारों से शरीर को बेधते है ग्रामीण युवा
बिजौली गांव (Meerut News) में तख्त यात्रा परंपरा को निभाने के लिए युवा नुकीलें औज़ारों से अपने शरीर को बेधते है। नुकीले औजारों से युवा शरीर के विभिन्न हिस्सों को बेधते है। जिसमें नुकीले औजारों को शरीर के आर-पार कर दिया जाता है और फिर उसके बाद तख्त फिर इसके बाद युवाओं को देवी-देवताओं की वेशभूषा में तख्त पर खड़ा किया जाता है। जिनको गांव के ही युवा कंधे पर बैठाकर पूरे गांव में घुमाते है। बाबा की समाधि पर जाने के बाद तख्त यात्रा सपन्न होती है। बड़ी बात ये है कि शरीर को नुकीले औजारों से बेधते वक्त किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होता है।