मध्यप्रदेश में नवंबर 2005 से शिवराज सिंह चौहान की सरकार है। लेकिन जब से ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में आए हैं, तब से शिवराज के लिए समस्याएं बढ़ने लगी हैं। क्योंकि सिंधिया को पूरा मध्यप्रदेश जानता है। वह थोड़ी मेहनत करके जन नेता वाला तमगा हांसिल कर सकते हैं।
हालांकि बीजेपी में आंतरिक मनमुटाव होने के बावजूद भी बाहरी तौर पर एकजुट दिखाई देती है। मध्यप्रदेश में यही फॉर्मूला हमेशा देखने को मिला है। यानी यह चर्चे आम हैं कि सिंधिया खेमा, शिवराज खेमा और पार्टी के अन्य प्रथम पंक्ति के नेताओं के बीच सबकुछ ठीक नहीं है। लेकिन इसके उदाहरण कभी कभार ही बीजेपी की चार दीवारी से बाहर आ पाते हैं।
15-16 साल से एक ही सीएम से ऊब चुकी है जनता
हालांकि हाल फिलहाल की राजनीतिक चहल पहल के अनुसार पार्टी में सब कुछ ठीक चल रहा है वाली तस्वीर पर विश्वास करना थोड़ा कठिन है। जैसे-जैसे चुनाव करीब आ रहे हैं वैसे-वैसे आंतरिक कलह की गगरी छलकती नजर आ रही है। हालांकि आलाकमान ने अपने मध्यप्रदेश के दौरों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर भरोसा जताया है। प्रदेश की जनता करीब 15-16 साल से एक ही मुख्यमंत्री को देखकर ऊब चुकी है।
ये सब जनते हैं कि शिवराज सिंह चौहान का जनता में दबदबा है। राज्य में उनका अपना वोट बैंक है। लेकिन 2018 के चुनावों ने ये पता लग गया था कि जनता ऊबती है तो नुकसान होता है। वहीं आने वाले विधानसभा चुनावों में शिवराज सिंह के विकल्पों के इर्द गिर्द जितनी चर्चाएं हैं वो सिर्फ एंटी इनकंबेंसी के कारम हैं।
सिंधिया के लिए भी राह आसान नहीं
मिली जानकारी के अनुसरा ज्योतिरादित्य सिंधिया की भी मध्यप्रदेश में अच्छी पकड़ है। आज की तारीख में शिवराज के बाद अगर बीजेपी के लिए मध्यप्रदेश में जो जन समर्थन जुटा सकता है या ऐसा नेता जिसको प्रदेश भर की जनता जानती है और उसपर पर विश्वास कर सकती है वो सिंधिया ही हैं। चाहे गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा हों या फिर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, अपने इलाकों के अलावा प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में इन नेताओं का दबदबा लगभग ना के बराबर है।
इसलिए शिवराज के लिए सबसे बड़ी चुनौती विपक्ष में रहते हुए भी और अब एक ही पार्टी में होने के बाद भी सिंधिया ही हैं। हालांकि सिंधिया के लिए भी राह इतनी आसान नहीं है।
सिंधिया के समर्थकों का अच्छे दबदबा कायम
वहीं बीजेपी में सब कुछ केंद्रीय नेतृत्व के ऊपर निर्भर है। प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर नेताओं तक सब जानते हैं कि जो होना है दिल्ली से होना है। इसलिए सभी नेता अपना अपना खेमा तलाशने लगे हैं। वो लोग नेता जिनका ओहदा तो है लेकिन पूछ परख नहीं वो भी इस वक्त छटपटा रहे हैं।
इस बीच सिंधिया की खूब तारीफ हो रही है। पिछले महीने उमा भारती ने सिंधिया को हीरा कह कर संबोधित किया था। ये हीरा शिवराज नाम के नगीने का काट है या नहीं ये तो वक्त ही बताएगा। लेकिन मंत्रि मंडल में शिवराज की पसंद के लोग कम, सिंधिया के समर्थकों का अच्छे दबदबा कायम है।
2020 के बाद बीजेपी के करीब सारे प्रथम पंक्ति के नेताओं ने अपनी दावेदारी ठोकने में किसी ने कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन राज्य की कमान मिली शिवराज को।
शिवराज के खास लोगों में घूम फिरकर एक ही नाम
बता दें कि सिंधिया के समर्थकों में से 9 लोग मंत्री पद पर काबिज हैं लेकिन शिवराज के खास लोगों में घूम फिरकर एक ही नाम खुरई विधायक भूपेंद्र सिंह का ही सामने आता है। नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह शिवराज के काफी करीबी हैं।
इस समय बहुत से कयास लगाए जा रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि बीजेपी अगर गुजरात मॉडल पर भी चुनाव लड़ती है।