नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार पृथ्वी पर ऐसे 8 चिरंजीवी मौजूद हैं जिसका अंत कभी नहीं होगा। इनसें से कुछ को भगवान ने अमर होने का वरदान दिया है तो कुछ ऐसे भी है, जो श्राप के कारण अमर हो गए हैं। जानकार बताते हैं कि चिरंजीवी उसे कहा जाता है जो अमर होता है। अर्थात जिनका कभी अंत नहीं होता। ये आठों चिंरजीवी त्रेतायुग, द्धावर युग और कलयुग में अब भी इसी धरा पर हैं और इंसानों की रक्षा करते हैं। जानकार बताते हैं कि जब भगवान कल्कि का अवतार होगा, तब ये चिंरजीवी भगवान कल्कि के साथ मिलकर अधर्म का अंत करेंगे।
हनुमान जी हैं चिंरजीवी
भगवान श्रीराम भक्त हनुमान जी महाराज को अमरत्व का वरदान प्राप्त है। जब प्रभु श्री राम अपनी लीला समाप्त कर अयोध्या छोड़ बैकुण्ठ पधारने लगे तब हनुमान जी ने पृथ्वी पर ही रुकने की इच्छा व्यक्त की। तब भगवान श्री राम ने उन्हें वरदान देते हुए कहा था कि जबतक धरती पर मेरा नाम रहेगा तब तक आप भी पृथ्वी पर विराजमान रहेगे। उसके बाद प्रलय के उपरांत जब धरती का सृजन होगा तब आप आचार्य रूप में भक्ति का प्रचार-प्रसार करेंगे। रामायण से लेकर महाभारत तक हनुमान जी ने अनेको अनेक लीलाएं की। हनुमान जी को भगवान शिव का अवतार बताया जाता है। जानकार बताते हैं कि हनुमान जी हर 41 वर्ष के बाद श्रीलंका के एक समुदाय को दर्शन देते हैं। इसके साक्ष्य भी समुदाय के लोगों के पास हैं।
दैत्यराज बलि भी अमर
दैत्यराज बलि ने अपने बल एवं पराक्रम से देवताओं को हराकर समस्त लोको पर अपना अधिकार जमा लिया था। देवताओं ने बलि के प्रकोप से बचने के लिए भगवान श्रीहरि के दरवार पर जाकर विनती की। तब भगवान ने बामन अवतार धारण कर राजा बलि से भिक्षा में उसका सर्वस्व हर लिया था। बलि ने भी अपना सर्वस्व बालक बामन पर खुशी खुशी न्यौछावर कर दिया था। जिससे खुश होकर भगवान श्रीहरि ने उसे अनंत काल के लिए पाताल लोक का राजा नियुक्त किया था और आज भी ऐसी मान्यता है कि राजा बलि पाताल पर राज कर रहे हैं। प्रतिवर्ष चार माह के लिए भगवान बैकुण्ठ छोड़ राजा बलि को दर्शन देने स्वय पाताल पधारते हैं। जानकार बताते हैं कि बलि अब भी इसी धरती पर हैं और धर्म की रक्षा कर रहे हैं।
भगवान परशुराम जी भी चिंरजीवी
श्रीहरि विष्णु के छठवें अवतार माने जाने वाले भगवान परशुराम को अमरत्व का वरदान प्राप्त है। जिस दिन इनका जन्म हुआ था यानि वैसाख शुक्ल तृतीया को भी इनके कारण अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है। वैसे तो इनका नाम राम था परंतु भगवान शिव ने इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर इन्हें एक फरसा दिया था जो सदैव इनके साथ ही रहता है। जिसके कारण इनका नाम भी परशुराम पड़ा। भगवान परशुराम के प्राकट्य का काल तो पता नहीं परंतु सतयुग, द्वापरयुग एवं त्रेतायुग तीनो ही युगों में भगवान परशुराम का वर्णन मिलता है। भगवान परशुराम अत्यंत बलवान थे और इन्होने 21 बार धरती को क्षत्रियहीन किया था। जानकार बताते हैं कि द्धावर युग में भगवान परशुराम ने करण समेत कई योद्धाओं को युद्ध कला सिखाई थी।
जिंदा हैं रावण के भाई विभीषण
लंकापति रावण के छोटे भाई और राम भक्त विभीषण को भी अमरत्व का वरदान प्राप्त है। राम-रावण युद्ध में सत्य का साथ देने वाले महाराज विभीषण ने अपने भाई को छोड़ भगवान श्री राम के पाव पकड़े। जिसके परिणामवश रावण का अंत कर भगवान श्री राम ने खुद लंका पर आधिपत्य ना जमा कर महाराज विभीषण को लंका का राजा बनाया और धर्म-शास्त्रों का अनुसरण करने का आदेश दिया। रावण की मौत के बाद विभीषण सैकड़ों सालों तक लंका में राज किया। कहा जाता है कि वह श्रीलंका स्थित गुफाओं में तपस्या करते हैं। विभीषण के बारे में जानकार बताते हैं कि उन्हें 50 बरस पहले कोटा में उन्हें देखा गया था। कोटा में विभीषण का मंदिर है, जिसे करीब 5000 साल प्राचीन बताया जाता है।
वेद व्यास जी भी अमर
भगवान श्रीहरि के अंश कहे जाने वाले महर्षि वेद व्यास जी ने श्रीमदभगवद महापुराण समेत अनेकों अनेक ग्रन्थ उदभासित किये। सांवले रंग के होने के कारण और समुन्द्र के बीच एक द्वीप पर जन्म होने के कारण उन्हें इन्हें ‘कृष्ण द्वैपायन’ के नाम से भी जाना जाता है। यह महर्षि पाराशर एवं माता सत्यवती के पुत्र थे, और श्री शुकदेव जी महाराज के पिता थे। आज भी वेदव्यास जी द्वारा कृत भगवदपुराण समस्त सृष्टि में पूजा जाता है। क्योकि भगवान कृष्ण ने अपनी लीला समाप्ति के समय बैकुण्ठ जाने से पहले अपने स्वरूप को भगवद जी में विराजमान कराया था।
अमर है अश्वत्थामा
गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को श्राप वश अमरत्व मिला था। इनके माथे पर अमरमणि शोभायमान थी जिसे अर्जुन द्वारा दंडवश निकाल लिया गया था। भगवान श्री कृष्ण ने ही उन्हें अनंत काल तक भटकने का श्राप दिया था। जिसके कारण अश्वत्थामा आज भी धरती पर इधर उधर भटक रहे हैं। और अपने किए की सजा भोग रहे हैं। आज भी कुरुक्षेत्र आदि स्थानों पर अश्वत्थामा को देखें जाने के दावे किये जाते हैं, परंतु उन दांवों को साबित करने वाला कोई सबूत आजतक सामने नहीं आपाया है। अश्वत्थामा के बारे में दावा किया जाता है कि वह कानपुर स्थित शिवराजपुर में अब भी निवास करते हैं। भोर पहर भगवान शिव की अराधना करते हैं। अश्वत्थामा के देखे जाने के दावे भी किए गए हैं।
चिंरजीवी हैं कृपाचार्य
कृपाचार्य कौरवों एवं पाण्डवों दोनों के गुरु थे। वे महर्षि गौतम शरद्वान के पुत्र थे। वे अश्वत्थामा के मामा थे क्योंकि उनकी बहन कृपी का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ था। कृपाचार्य उन तीन गणमान्य व्यक्तियों में से एक थे जिन्हें भगवान श्री कृष्ण के विराट स्वरूप के दर्शन प्राप्त हुए। वे सप्तऋषियों में से एक माने जाते है और महाभारत युद्ध में अपनी निष्पक्षता के चलते प्रचलित थे। उन्होंने दुर्योधन को पांडवो से सन्धि करने के लिए बहुत समझाया था परंतु दुष्ट दुर्योधन ने इनकी बात भी नहीं मानी। इन्ही कारणों से उन्होंने अमरत्व का वरदान भी प्राप्त किया।
ऋषि मार्कंडेय भी अमर हैं
ऋषि मार्कंडेय भी 8 चिरंजीवियों में से एक हैं। वह भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे। शिव के अत्यंत शक्तिशाली महामृत्यंज्य मंत्र की रचना भी ऋषि मार्कंडेय ने की थी। वह अल्पायु लेकर जन्मे थे। लेकिन यमराज से उनके प्राणों की रक्षा करने के लिए स्वयं भगवान शिव अवतरित हुए। साथ ही महादेव ने ही उन्हें अमरता का वरदान भी दिया। ऋषि मार्कंडेय अब भी धरती पर हैं और मावनता और धर्म की रक्षा कर रहे हैं।
करीब 28 लाख वर्ष
हिंदू धर्म में चार युग हैं। जिसमें सबसे पहले सतयुग आता है। फिर त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग। शस्त्रों के अनुसार वर्तमान काल कलयुग का चल रहा है। चारों युगों में से सबसे पहला युग यानी सतयुग युग की अवधि लगभग 17 लाख 28 हजार वर्ष बताई गई है। सतयुग के बाद त्रेतायुग का शुरुआत होती है। शास्त्रों में इस युग की अवधि लगभग 12 लाख 28 हजार मानी गई है। फिर आता है द्वापर युग। द्वापर युग की अवधि लगभग 8 लाख 64 हजार है। कलयुग की अवधि तीनों युगों में सबसे कम यानी 4 लाख 32 हजार वर्ष है। फिलहाल कलयुग अपने पांच हजार आयु पूरी कर चुका है। ऐसे में चारों युगों की गणना करें तो करीब 28 लाख वर्ष होती है।