constitutions ने मुख्य चुनाव आयुक्त को दी है कौन सी खास सुरक्षा ,विपक्ष का उन्हें हटाना क्यों है मुश्किल? विस्तार से समझें

संविधान ने मुख्य चुनाव आयुक्त को सुप्रीम कोर्ट के जज जैसी सुरक्षा दी है। उन्हें हटाना केवल सिद्ध दुर्व्यवहार या अक्षमता पर संभव है, वह भी संसद के विशेष बहुमत और राष्ट्रपति के आदेश से ही।

: chief election commissioner removal process india

Chief Election Commissioner removal process-भारत के राजनीतिक माहौल में इन दिनों विपक्ष और चुनाव आयोग के बीच तनाव काफी बढ़ गया है। कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को हटाने पर विचार कर रहा है। यह चर्चा तब तेज हुई जब राहुल गांधी ने आयोग पर “वोट चोरी” और गंभीर खामियों के आरोप लगाए। खासकर बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण के बाद विवाद और गहरा गया।

मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने का संवैधानिक प्रावधान

मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) देश की चुनाव प्रक्रिया को निष्पक्ष और स्वतंत्र तरीके से करवाने वाली सबसे बड़ी संवैधानिक संस्था के प्रमुख होते हैं। उनकी स्वतंत्रता को सुरक्षित रखना लोकतंत्र के लिए बेहद ज़रूरी है। इसलिए संविधान में उन्हें हटाने की प्रक्रिया बहुत कठिन बनाई गई है। संविधान का अनुच्छेद 324(5) कहता है कि CEC को उसी तरह हटाया जा सकता है, जैसे सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाया जाता है। यानी यह साधारण प्रशासनिक फैसला नहीं बल्कि एक बेहद सख्त संसदीय और कानूनी प्रक्रिया है।

सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने की प्रक्रिया

सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने का नियम अनुच्छेद 124(4) में दर्ज है। इसके अनुसार जज को तभी हटाया जा सकता है जब:

संसद के दोनों सदन (लोकसभा और राज्यसभा) एक ही सत्र में प्रस्ताव पास करें।

यह प्रस्ताव केवल सिद्ध दुर्व्यवहार (proved misbehaviour) या अक्षमता (incapacity) के आधार पर हो।

प्रस्ताव पास करने के लिए विशेष बहुमत चाहिए। यानी कुल सदस्य संख्या का बहुमत और साथ ही उपस्थित व वोट देने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत।

यही प्रावधान मुख्य चुनाव आयुक्त पर भी लागू होता है।

जांच और समिति की भूमिका

CEC को हटाने के लिए संसद के किसी भी सदन में प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। इसके लिए लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों या राज्यसभा में 50 सांसदों का समर्थन होना ज़रूरी है।

अगर स्पीकर या सभापति इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हैं, तो एक तीन सदस्यीय समिति गठित की जाती है। इसमें सुप्रीम कोर्ट का एक जज, किसी हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश और एक नामी कानून विशेषज्ञ शामिल होते हैं। यह समिति जांच करती है कि क्या CEC ने सच में गंभीर गलती की है या वे काम करने में असमर्थ हैं।

अगर समिति आरोपों को सही मानती है, तभी संसद में प्रस्ताव पर वोटिंग होती है। दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पास होने के बाद ही राष्ट्रपति CEC को पद से हटा सकते हैं।

अन्य तरीके

CEC अपने कार्यकाल (6 साल या 65 वर्ष की उम्र, जो पहले हो) पूरा होने पर या अपनी इच्छा से राष्ट्रपति को इस्तीफा देकर भी पद छोड़ सकते हैं।

मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाना केवल राजनीतिक इच्छा से संभव नहीं है। यह एक लंबी, कानूनी और संसदीय प्रक्रिया है, जिसमें आरोपों को साबित करना और विशेष बहुमत जुटाना बेहद कठिन होता है। यही कारण है कि CEC को संविधान ने एक तरह का ‘कवच’ प्रदान किया है।

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