Ghazipur Scam : ज़िले के सादात ब्लॉक की ग्राम सभा बिजहरी से मनरेगा योजना में बड़ा घोटाला सामने आया है। जिस योजना का उद्देश्य था ग्रामीण गरीबों को रोज़गार देना, उसी में भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें दिखाई दे रही हैं। मजदूरों को काम नहीं दिया गया, लेकिन उनके नाम पर लाखों रुपये निकाले गए। गांव के खेत के बगल में पोखरी की खुदाई मनरेगा के तहत करवाई जा रही थी। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि काम के लिए मजदूरों को बुलाया ही नहीं गया। सिर्फ दो दिन जेसीबी मशीन चलाई गई और फिर काम बंद कर दिया गया। इसके बावजूद सरकारी रिकॉर्ड यानी मस्टर रोल में 110 मजदूरों के नाम दर्ज कर दिए गए, जैसे कि उन्होंने पूरा समय काम किया हो।
इस घोटाले में और भी चौंकाने वाली बात यह है कि एक ही मजदूर की तस्वीरों को अलग-अलग एंगल से खींचकर, अलग-अलग नामों के तहत दिखाया गया। गांव की कई महिलाओं को सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए बुलाया गया, जबकि उन्होंने कोई काम नहीं किया। बाद में उन्हीं नामों से फर्जी हाजिरी भरी गई और उनके नाम पर मजदूरी निकाली गई।
शिकायतें होती हैं नजरअंदाज
गांव वालों ने आरोप लगाया कि जो पैसे मजदूरों के नाम पर निकाले गए, उनमें से अधिकतर ग्राम प्रधान, रोजगार सेवक और सचिव के बीच बांट लिए गए। असली मजदूरों को केवल ₹500 थमा दिए गए, जबकि हजारों रुपये की बंदरबांट हुई। इससे साफ़ है कि गरीबों की मज़दूरी, भ्रष्टाचार की बलि चढ़ गई। ग्रामीणों ने इस पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय और निष्पक्ष जांच की मांग की है। उनका कहना है कि जब भी कोई शिकायत की जाती है, उसे या तो नजरअंदाज कर दिया जाता है या दबा दिया जाता है। प्रशासनिक चुप्पी ने ग्रामीणों की उम्मीदों को गहरा धक्का पहुंचाया है। मनरेगा जैसी योजना का मकसद था कि गांवों में रह रहे गरीबों को उनके घर के पास सम्मानजनक काम और मज़दूरी मिले।
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क्या है बड़ा सवाल ?
लेकिन अब यह योजना भ्रष्टाचारियों के लिए कमाई का साधन बन चुकी है। जब सरकारी योजनाएं ही लूट का अड्डा बन जाएं, तो गरीबों को न्याय मिलना दूर की बात हो जाती है। अब बड़ा सवाल यह है कि आख़िर कब तक गरीबों के नाम पर यह खेल चलता रहेगा? कब तक कागज़ों पर काम होता रहेगा और हकदार लोग ठगे जाते रहेंगे? ग्रामीणों की मांग है कि इस मामले में दोषियों – चाहे वह प्रधान हों, सचिव हों या अन्य कोई जिम्मेदार अधिकारी – पर सख़्त कार्रवाई की जाए। साथ ही सरकार और प्रशासन यह सुनिश्चित करे कि ऐसी योजनाएं सच में ज़रूरतमंदों तक पहुंचें, ना कि भ्रष्टाचारियों की जेब भरें।