Bofors scam :क्या बोफोर्स घोटाले का जिन्न फिर निकलेगा बोतल से बाहर भारत ने अमेरिका से मांगी कौन सी जानकारी

भारत ने बोफोर्स घोटाले की जांच के लिए अमेरिका से जानकारी मांगी है। सीबीआई ने माइकल हर्शमैन से जुड़े दस्तावेज मांगे हैं। यह मामला फिर से तूल पकड़ सकता है, हालांकि 2011 में सभी आरोपी बरी हो चुके हैं।

Bofors scam investigation

Bofors scam investigation : भारत सरकार ने अमेरिका को एक औपचारिक अनुरोध भेजा है, जिसमें बोफोर्स घोटाले से जुड़ी अहम जानकारी मांगी गई है। करीब 64 करोड़ रुपये के इस घोटाले की जांच से जुड़े दस्तावेजों को हासिल करने की कोशिश की जा रही है। सरकार के इस कदम को स्वीडन से खरीदी गई 155 मिमी तोपों के सौदे की दोबारा जांच के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। यह सौदा राजीव गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार के दौरान हुआ था और उस समय इसे लेकर काफी विवाद खड़ा हुआ था।

सीबीआई ने अमेरिका को भेजा अनुरोध

एक अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, सीबीआई ने हाल ही में दिल्ली की विशेष अदालत से आदेश प्राप्त करने के बाद अमेरिकी न्याय विभाग को पत्र भेजा। इस पत्र में अमेरिकी निजी जासूसी कंपनी फेयरफैक्स के प्रमुख माइकल हर्शमैन से जुड़ी जानकारी मांगी गई है।

हर्शमैन ने 2017 में दावा किया था कि जब उन्होंने स्विस बैंक में ‘मॉन्ट ब्लांक’ नाम से एक खाता खोजा, जिसमें कथित रूप से बोफोर्स घोटाले की रिश्वत जमा थी, तो उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी बेहद नाराज हो गए थे। हर्शमैन का कहना था कि सरकार ने उनकी जांच को रोकने के लिए हरसंभव कोशिश की थी।

दिल्ली कोर्ट से मिली अनुमति

सीबीआई ने पहली बार अक्टूबर 2024 में दिल्ली की अदालत से संपर्क किया था, जिसमें अमेरिकी अधिकारियों से जानकारी हासिल करने की अनुमति मांगी गई थी। यह कदम उस समय उठाया गया जब हर्शमैन ने भारतीय एजेंसियों के साथ सहयोग करने पर सहमति जताई थी।

अंतरराष्ट्रीय जांच में इस्तेमाल होने वाले ‘पत्र रोगारिटरी’ के तहत भारत ने अमेरिका से यह अनुरोध किया है। यह एक औपचारिक पत्र होता है, जिसे एक देश की अदालत दूसरे देश की अदालत को भेजती है, ताकि अपराध की जांच में मदद मिल सके।

क्या है बोफोर्स घोटाला

बोफोर्स घोटाले का खुलासा स्वीडिश रेडियो ने किया था, जिसने भारत और स्वीडन दोनों को हिला कर रख दिया था। इस घोटाले का असर 1989 के आम चुनावों पर भी पड़ा, जिससे राजीव गांधी की कांग्रेस पार्टी को सत्ता से बाहर होना पड़ा।

हालांकि, 2004 में दिल्ली हाईकोर्ट ने राजीव गांधी के खिलाफ रिश्वत के आरोपों को खारिज कर दिया, लेकिन इस मामले से जुड़े सवाल आज भी बने हुए हैं।

इटली के व्यापारी क्वात्रोची की भूमिका

इस घोटाले में इटली के व्यापारी ओटावियो क्वात्रोची का नाम भी सामने आया था। वह राजीव गांधी सरकार में बेहद प्रभावशाली व्यक्ति माना जाता था। जांच के दौरान उसे भारत छोड़ने की अनुमति दी गई, जिसके बाद वह मलेशिया चला गया।

बाद में यूपीए सरकार के कार्यकाल में क्वात्रोची पर फिर से ध्यान गया, जब सरकार ने ब्रिटेन में उसके बैंक खाते से लाखों डॉलर की राशि को रिलीज करने को चुनौती देने से इनकार कर दिया।

सीबीआई की जांच और अदालत के फैसले

सीबीआई ने 1990 में इस घोटाले में एफआईआर दर्ज की थी और 1999 व 2000 में चार्जशीट दाखिल की हालांकि, राजीव गांधी को पहले ही बरी किया जा चुका था। इसके बाद विशेष अदालत ने हिंदुजा बंधुओं समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ भी सभी आरोप हटा दिए।

2011 में अदालत ने क्वात्रोची को भी बरी कर दिया। इसके साथ ही सीबीआई की ओर से उसके खिलाफ की गई सभी कार्रवाई को वापस ले लिया गया।

भारत सरकार के इस ताजा कदम से बोफोर्स घोटाले की जांच फिर से शुरू होने की संभावना जताई जा रही है। अमेरिका को भेजे गए अनुरोध से यह साफ हो गया है कि सरकार इस मामले को फिर से खंगालना चाहती है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस घोटाले की जांच में कोई नया मोड़ आता है या नहीं।

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