नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। 21वीं सदी में महिलाएं आज पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। खेल, राजनीति, कारोबार, आईटी सेक्टर और सरहदों की सुरक्षा में ‘नारी’ सब पर भारी पड़ रही है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान बीएसएफ की जांबाज वीरांगनाओं ने पाकिस्तानियों के दांत खट्टे कर दिए थे। खुद पीएम नरेंद्र मोदी भी महिलाओं को आगे बढ़ाने के मिशन में जुटे हैं तो वहीं सुप्रीम कोर्ट भी नारीशक्ति के साथ चल पड़ा है। ऐसे में देश की सबसे बड़ी अदालत यानि सुप्रीम कोर्ट से आजाद भारत की सबसे बड़ी खबर सामने निकल कर आई है। लेडी जस्टिस बीवी नागरत्ना आने वाले समय में सीजीआई की कुर्सी पर बैठेंगी।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका में महिलाओं की कम हिस्सेदारी पर चिंता जताई और जोर दिया कि लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए महिलाओं की अधिक भागीदारी जरूरी है। निचली से लेकर ऊपर तक अदलातों में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने के मिशन में सुप्रीम कोर्ट जुट गया है। इसी कड़ी में सुप्रीम कोर्ट की 5वीं सीनियर जस्टिस बीवी नागरत्ना कॉलेजियम का हिस्सा बन गई। जस्टिस अभय एस. ओका के रिटायरमेंट के बाद उन्हें सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में सदस्य बनाया गया है। इस तरह कॉलेजियम में अब चीफ जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्य कांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस नागरत्ना होंगे।
भारत में सीजीआई की नियुक्ति वरिष्ठता के आधार पर होती है। ऐसे में बी वी नागरत्ना 11 सितंबर 2027 को भारत की 50वीं मुख्य न्यायाधीश बनेंगी। वो इस पद पर पहुंचने वाली पहली महिला होंगी। उनका कार्यकाल लगभग 1 महीने का होगा। वो 29 अक्टूबर 2027 को सीजीआई के पद से रिटायर होंगी। खास बात यह है कि बी वी नागरत्ना के पिता भी कभी चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया थे। ऐसे घर में उन्हें कानूनी बहस और कोर्ट की कहानियां सुनने और पढ़ने को मिलीं। इस माहौल ने उन्हें न सिर्फ कानून पढ़ने बल्कि उसे गहराई से समझने का भी मौका मिला। उनकी पढ़ाई और घर का सपोर्ट उन्हें इस मुकाम तक ले गया, जहां वो आज हैं।
नागरत्ना का जन्म 30 अक्टूबर 1962 को बेंगलुरु में जस्टिस ई. एस. वेंकेटरमैय्या के घर हुआ। जस्टिस वेंकेटरमैय्या आगे चलकर (1989) सीजीआई बने थे। जस्टिस नागरत्ना की कामयाबी में उनकी शिक्षा का बड़ा रोल है। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से लॉ की पढ़ाई की और 1987 में वकील बनकर कर्नाटक हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की। 2008 में वह कर्नाटक हाईकोर्ट की जज बनीं और 2021 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं। अब 25 मई 2025 को वह सुप्रीम कोर्ट की 5वीं सबसे सीनियर जज बन गई हैं और वह सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम में शामिल होने वाली पहली महिला जज भी हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किताब ’कोर्ट्स ऑफ इंडिया’ में नागरत्ना बतौर कॉन्ट्रिब्यूटर शामिल रहीं। इस किताब में उन्होंने कोर्ट्स ऑफ कर्नाटक के चैप्टर्स में योगदान दिया।
लगभग 17 साल बतौर जज रहते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कई अहम फैसले सुनाए। इनमें बिलकिस बानो केस का भी था। 2004 में जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने बिलकिस बानो केस में गुजरात सरकार द्वारा 11 दोषियों को दी गई रिहाई को अवैध घोषित कर दिया। बेंच ने कहा कि दोषियों को महाराष्ट्र की विशेष अदालत ने सजा सुनाई थी। इसलिए रिहाई का अधिकार महाराष्ट्र सरकार को था, न कि गुजरात को। इसके अलावा 2023 में 5 जजों की संविधान पीठ में जस्टिस नागरत्ना ने सहमति जताई कि सरकार अपने मंत्रियों के बयानों के लिए जिम्मेदार नहीं है।
2023 में 5 जजों की बेंच में से 4 ने 2016 में हुई नोटबंदी को वैध ठहराया, जबकि जस्टिस नागरत्ना ने असहमति जताई। उन्होंने कहा कि फैसला संसद के माध्यम से होना चाहिए था, न कि केवल कार्यकारी आदेश के माध्यम से। जस्टिस नागरत्ना ने एक अहम फैसले में कहा कि अवैध विवाह से जन्मे बच्चों को अनुकंपा नियुक्ति का अधिकारी माना। उन्होंने कहा कि माता-पिता अवैध हो सकते हैं, लेकिन कोई बच्चा अवैध नहीं होता। जस्टिस नागरत्ना ने कोरोना महामारी के दौरान कर्नाटक सरकार को निर्देश दिया कि मिड डे मील योजना को जारी रखा जाए और डिजिटल एजुकेशन जारी रखी जाए।