नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। कांग्रेस नेता राहुल गांधी फुल एक्शन में हैं। वह डोनाल्ड ट्रंप के बहाने सीधे पीएम नरेंद्र मोदी को टारगेट कर रहे हैं। चुनाव चोरी का आरोप लगा इलेक्शन कमीशन को घेर रहे हैं। उपराष्ट्रपति के चुनाव को लेकर राहुल गांधी बंद कमरे में सहयोगी दलों के साथ मीटिंग करने के साथ ही बड़े ‘खेला’ का चक्रव्यूह तैयार कर चुके हैं। अखिलेश यादव के साथ डील फाइनल करने के बाद उपराष्ट्रपति के नाम वाली फाइल इंडी गठबंधन के नेताओं के पास भेज दी है। इंडी गठबंधन के नेता भी अब एक स्वर में राहुल गांधी के नाम वाली फाइल पर मुहर लगा दी है।
अगस्त का महिना चल रहा है। हर जगह अगस्त क्रांति को लेकर चर्चा हो रही है। कांग्रेस भी अगस्त क्रांति के मिशन में जुटी है। राहुल गांधी खुलकर बैटिंग कर रहे हैं। ट्रंप के बहाने वह पीएम नरेंद्र मोदी पर जुबानी हमला बोल रहे हैं तो चुनाव चोरी का आरोप लगाकर बीजेपी-चुनाव आयोग को घेर रहे हैं। साथ ही उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर भी राहुल गांधी एंड कंपनी ने कमर कस ली है। इंडी गठबंधन पूरी ताकत के साथ चुनाव के मैदान में उतरने जा रहे है। इ इसी कड़ी में विपक्ष के साझा उम्मीदवार पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी 7 अगस्त को डिनर पर विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक के नेताओं के साथ बैठक की।
जानकार बताते हैं कि इंडी गठबंधन दलित य ओबीसी समाज से आने वाले नेता को अपना कैंडीडेट बना सकती है। राहुल और अखिलेश की नजर यूपी-बिहार चुनाव को लेकर है। दोनों राज्यों में दलित-ओबीसी वोटर्स सरकार बनाने और गिराने में अहम रोल निभाते हैं। उऐसे में इंडी गठबंधन इन्हीं समाज से आने वाले नेता को अपना कैंडीडेट घोषित कर सकती है। इसके साथ ही पार्टी की योजना बिहार या आंध्रप्रदेश के किसी नेता को उम्मीदवार बनाने की है, जिससे भाजपा के दो सबसे बड़े सहयोगियों टीडीपी व जदयू को असमंजस में डाला जा सके। इस चुनाव के बहाने कांग्रेस की नजर विपक्षी एकता कायम कर शक्ति प्रदर्शन करने और एनडीए को असमंजस में डालने पर है।
दरअसल, भाजपा अपने दम पर चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं है। उसे हर हाल में अपने दोनों सबसे बड़े सहयोगियों जदयू-टीडीपी का समर्थन चाहिए। कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि अगर विपक्ष का उम्मीदवार आंध्रप्रदेश या बिहार से हुआ तो क्षेत्रीय भावनाओं के साथ संतुलन बैठाने के लिए नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू उलझन में होंगे। आंध्रप्रदेश के ही वाईएसआरसीपी जिनके राज्यसभा में सात सदस्य हैं, विपक्ष के साथ आ सकती है। अगर इस चुनाव में एक भी सहयोगी दल टूटे तो राजग में फूट का संदेश जाएगा। अगर विपक्ष का उम्मीदवार बिहार से हुआ तो जदयू, लोजपा, आरएलएम से भाजपा के लिए असमंजस की स्थिति पैदा हो सकती है।
इसी प्रकार आंध्रप्रदेश के उम्मीदवार के मामले में ऐसी ही स्थिति टीडीपी और जनसेना के सामने होगी। दोनों सदनों को मिला कर जदयू के पास 16, लोजपा के पास 5 और आरएलएम के पास 1 सांसद हैं। टीडीपी के पास 18 और जनसेना के पास 2 सांसद हैं। वहीं अगर चुनावी गणित की बात करें तो गणित सीधे-सीधे एनडीए के पक्ष में है। एनडीए के पास दोनों सदनों को मिलाकर 418 सांसद हैं। यह संख्या उपराष्ट्रपति पद पर जीत के लिए जरूरी 392 सदस्यों से 26 ज्यादा है। इसके अलावा पार्टी राज्यसभा में सात मनोनीत और तीन निर्दलीय में से दो का समर्थन हासिल कर सकती है। इसी प्रकार लोकसभा में भी पार्टी को अकाली दल का समर्थन मिल सकता है। इसके अलावा यहां सात निर्दलीय और छोटे चार दलों के चार सांसदों का रुख साफ नहीं है।