NHRC Notice to Railways: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने भारतीय रेलवे को एक नोटिस जारी किया है। यह कदम एक ऐसी शिकायत के आधार पर उठाया गया है, जिसमें कहा गया है कि रेलवे ट्रेनों में मांसाहारी भोजन के रूप में “सिर्फ हलाल प्रोसेस्ड मांस” परोसता है। शिकायतकर्ता का कहना है कि यह व्यवस्था न केवल भेदभावपूर्ण है, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के सिद्धांतों के भी विपरीत है। आयोग ने इस मामले में गंभीरता दिखाते हुए रेलवे से दो हफ्तों के भीतर एक्शन टेकेन रिपोर्ट (ATR) जमा करने का निर्देश दिया है।
शिकायत के अनुसार, केवल हलाल मांस परोसने की नीति से उन समुदायों पर असर पड़ता है, जो परंपरागत रूप से मांस के व्यापार से जुड़े हैं। खासकर हिंदू दलित समुदाय। शिकायतकर्ता का तर्क है कि इस नीति के चलते इन समुदायों के लोगों को काम के अवसर कम मिलते हैं, जिससे उनके जीवनयापन का अधिकार प्रभावित होता है।
इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अनेक हिंदू और सिख यात्री धार्मिक कारणों से हलाल मांस नहीं खाते, लेकिन उन्हें विकल्प उपलब्ध नहीं कराया जाता। इससे उनकी पसंद की स्वतंत्रता और भोजन चयन का अधिकार सीमित हो जाता है।
NHRC ने मांगी दो सप्ताह में विस्तृत रिपोर्ट
यह शिकायत 21 नवंबर को दर्ज हुई और 24 नवंबर को आयोग की बैठक में रखी गई। सदस्य प्रियांक कानूंगो की अध्यक्षता में बनी पीठ ने इसे मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 12 के तहत संज्ञान में लिया। आयोग ने रेलवे बोर्ड के चेयरमैन को नोटिस जारी कर दो सप्ताह के भीतर विस्तृत ATR जमा करने के लिए कहा है।
शिकायतकर्ता ने अपने पक्ष में कई संवैधानिक प्रावधानों का उल्लेख किया है, जिनमें अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (भेदभाव निषेध), 19(1)(जी) (रोजगार की स्वतंत्रता), 21 (जीवन का अधिकार) और 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) शामिल हैं।
इसके साथ ही उन्होंने ओल्गा टेलिस (1985), इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन (2018), स्टेट ऑफ कर्नाटक बनाम अप्पा बालू इंगले (1995) और एनएचआरसी बनाम स्टेट ऑफ गुजरात (2009) जैसे महत्वपूर्ण न्यायिक फैसलों का भी हवाला दिया है।
आयोग ने नोटिस में क्या कहा?
NHRC ने नोटिस में स्पष्ट किया कि रेलवे, एक सरकारी संस्था होने के नाते, देश के सभी धार्मिक समुदायों की खाद्य प्राथमिकताओं का सम्मान करे। आयोग ने कहा कि सिर्फ हलाल मांस उपलब्ध कराना सेक्युलर मूल्यों, हिंदू–सिख यात्रियों के अधिकारों और गैर-भेदभाव के सिद्धांतों के विपरीत माना जा सकता है।
आयोग ने रेलवे बोर्ड को निर्देश दिया है कि शिकायत में लगाए गए सभी आरोपों की निष्पक्ष जांच कराई जाए और इसकी विस्तृत रिपोर्ट दो सप्ताह के भीतर आयोग को भेजी जाए।
साथ ही, रिपोर्ट की एक प्रति आयोग के आधिकारिक ईमेल पर भी भेजने के निर्देश दिए गए हैं। यह मामला अब राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन चुका है और आने वाले दिनों में रेलवे की प्रतिक्रिया पर सभी की नजरें होंगी।



