वाड्रा की ‘धर्मनिरपेक्षता’ पर बयान से मचा बवाल: पहलगाम हमले के बीच उठे गंभीर सवाल

ChatGPT said: पहलगाम आतंकी हमले पर रॉबर्ट वाड्रा की विवादित टिप्पणी ने देश में आक्रोश भड़का दिया है। धर्मनिरपेक्षता और आतंक की मंशा पर उनके बयान ने संवेदनशील माहौल को और भड़काते हुए राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है।

Robert Vadra

Robert Vadra News: पहलगाम के खूनी हमले से सन्न देश में शोक और गुस्से की लहर है, लेकिन इस त्रासदी के बीच रॉबर्ट वाड्रा का विवादित बयान नया तूफान खड़ा कर रहा है। 28 बेगुनाहों की जान जाने के बाद जब देश एकजुटता की उम्मीद कर रहा था, तब कांग्रेस परिवार के सदस्य और कारोबारी वाड्रा की ‘धर्मनिरपेक्षता’ और आतंकवाद को लेकर की गई टिप्पणी ने भावनाओं को आहत किया। उन्होंने न केवल आतंकियों की कथित मंशा पर प्रकाश डाला, बल्कि धर्म के बहाने राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की, जिसने सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों तक आलोचना का सिलसिला शुरू कर दिया। सवाल ये है कि क्या संवेदनशील मौकों पर भी निजी राजनीतिक संदेश देने का समय होता है?

हमले पर बयान, लेकिन साथ में छिपा ‘संदेश’?

दिल्ली में एक इंटरव्यू के दौरान  Robert Vadra ने हमले को “कायरतापूर्ण” बताया, लेकिन उसके बाद उन्होंने जो जोड़ा, वही बवाल की जड़ बन गया। उन्होंने कहा कि आतंकियों ने “पहचान पत्र देखकर मारा क्योंकि उन्हें लगता है कि मुसलमानों को दबाया जा रहा है”। इतना कहने के बाद उन्होंने धर्मनिरपेक्ष एकता का सुझाव भी दे डाला – मानो वह आतंकियों की सोच को समझने की कोशिश कर रहे हों या उसका कोई राजनीतिक तर्क निकालने की कोशिश कर रहे हों।

ऐसे समय में जब देश ग़म में डूबा है और सरकार सुरक्षा समीक्षा में व्यस्त है, इस तरह की बयानबाज़ी ने भावनाओं को और भड़का दिया। कई लोगों ने यह सवाल उठाया कि क्या यह बयान शोक प्रकट करने के बहाने अपनी राजनीतिक छवि को चमकाने का प्रयास था?

सोशल मीडिया पर ‘आग’, लोगों ने जमकर लताड़ा

Robert Vadra की बातों पर प्रतिक्रिया देने वालों में आम नागरिकों से लेकर सोशल मीडिया के प्रभावशाली यूजर्स तक सभी शामिल हैं। एक यूजर ने सवाल किया कि “क्या हम 26/11 के वक्त धर्मनिरपेक्ष नहीं थे?” जबकि दूसरे ने वाड्रा के लिए अपशब्दों का प्रयोग करते हुए उनकी नैतिकता पर ही सवाल खड़े कर दिए।

कुछ यूजर्स ने आतंकवाद के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई की मांग की, जबकि वाड्रा पर “दुश्मन के नैरेटिव को हवा देने” का आरोप लगाया। साथ ही, देवता की मूर्ति के सामने बैठकर “धर्म को राजनीति से अलग रखने” की उनकी सलाह को पाखंड बताया गया। साफ है, उनका संदेश गलत समय पर, गलत संदर्भ में और शायद गलत इरादे से दिया गया प्रतीत हुआ।

राजनीति में ‘धर्मनिरपेक्षता’ की नई परिभाषा?

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि  Robert Vadra का बयान सिर्फ एक व्यक्ति की राय नहीं है, बल्कि यह उस व्यापक सोच की झलक है जिसमें धर्मनिरपेक्षता को भी राजनीतिक टूल की तरह इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्र की जटिलता को सिर्फ धार्मिक सहिष्णुता से जोड़कर एक सरलीकृत समाधान सुझाने की कोशिश की – जो कि धरातल पर न तो व्यावहारिक है और न ही उचित।

सरकार के लिए इस समय की सबसे बड़ी चुनौती सिर्फ हमले की जांच नहीं, बल्कि इस तरह की भ्रामक और भड़काऊ बयानों से उभरते जन आक्रोश को भी संभालना है। वाड्रा जैसे सार्वजनिक चेहरों से यह उम्मीद की जाती है कि वे संकट के समय राष्ट्र की भावनाओं के साथ खड़े होंगे – न कि उन्हें और उलझाएंगे।

जब देश 28 मासूम जानों के गम में डूबा है और कश्मीर की जमीनी सच्चाइयों पर कार्रवाई की मांग हो रही है, तब  Robert Vadra जैसे लोगों का धर्म और राजनीति को घोल देने वाला बयान सिर्फ बहस को भटकाता है। यह वक्त संवेदनशीलता का है, ‘संदेशबाजी’ का नहीं। अब जनता का सवाल है – क्या ये बयान आतंक पर विमर्श है या खुद को प्रासंगिक बनाए रखने की एक और कोशिश?

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