Supreme Court Ultimatum: सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम पर सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि वक्फ संपत्तियों की मौजूदा स्थिति में अभी कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और वक्फ बोर्ड को एक सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने कहा कि 1995 और 2013 के वक्फ कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट की कॉज लिस्ट में अलग से लगाई जाएंगी ताकि उनकी सुनवाई अलग से हो सके। उन्होंने याचिकाकर्ता पक्ष को निर्देश दिया कि सभी याचिकाओं में से सिर्फ 5 प्रमुख याचिकाएं चुनी जाएं जिन्हें कोर्ट सुनेगा।
CJI ने यह भी कहा कि बाकी याचिकाओं को निस्तारित मान लिया जाएगा और अगली सुनवाई में उनका नाम शामिल नहीं किया जाएगा। यह निर्देश सुप्रीम कोर्ट में दायर 100 से अधिक याचिकाओं के बीच सुनवाई को व्यवस्थित और प्रभावी बनाए रखने के लिए दिया गया है। अब इस संवेदनशील मामले में अगली सुनवाई 5 मई को होगी, जिस पर देशभर की नजरें टिकी होंगी।
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को बड़ा झटका देते हुए सात दिन में जवाब दाखिल करने का अल्टीमेटम दिया है। साथ ही कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया है कि अगले आदेश तक वक्फ बोर्ड में कोई नई नियुक्ति नहीं की जाएगी। Supreme Court मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अगुआई वाली पीठ ने यह निर्देश तब दिया जब केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कानून को संतुलनकारी बताया, लेकिन कोर्ट ने उनकी कई दलीलों पर सवाल उठाए। इस मुद्दे पर देशभर में हो रही बहस और विरोध प्रदर्शन ने इसे संवेदनशील बना दिया है, जिससे सरकार की रणनीति पर भी सवाल उठने लगे हैं।
केंद्र को कोर्ट की फटकार, जवाब के लिए सात दिन का समय
Supreme Court की पीठ ने सरकार से पूछा कि क्या बिना पंजीकरण वाली वक्फ संपत्तियों को ‘वक्फ बाय यूजर’ के तहत वैध माना जा सकता है। साथ ही कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि क्या हिंदू ट्रस्टों में मुस्लिम सदस्य नियुक्त किए जा सकते हैं। कोर्ट की सख्ती से यह स्पष्ट हो गया है कि वह इस कानून की संवैधानिक वैधता की गहराई से जांच करेगा।
सीनियर वकीलों कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और राजीव धवन ने कानून को मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन करार दिया। उनका कहना था कि यह कानून एकतरफा है और इससे समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता को खतरा है। उन्होंने कोर्ट से तत्काल प्रभाव से इस कानून पर रोक लगाने की मांग की।
हिंसा और विरोध पर कोर्ट की नाराजगी
सुनवाई के दौरान मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा का मुद्दा भी उठा। CJI ने इस पर गहरी नाराजगी जताते हुए कहा कि मामले के न्यायिक विचाराधीन होने के बावजूद हिंसा अस्वीकार्य है। केंद्र ने इसे साजिश बताया, तो सिब्बल ने कहा कि यह सरकार की नीतियों के खिलाफ जनता की प्रतिक्रिया है। यह मामला अब केवल कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक विमर्श का केंद्र बन गया है। अगली सुनवाई में केंद्र के जवाब और संभावित अंतरिम आदेश पर सबकी निगाहें रहेंगी।