नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम को मिनी स्वीजरलैंड कहा जाता है। यहां की वादियां प्रकृति का एहसास कराती हैं। जिसके कारण देश ही नहीं बल्कि विदेशों से सैलानी बड़ी संख्या में यहां आते हैं। लेकिन पाकिस्तानी आतंकवादियों ने भगवान शिव की भूमि को पर्यटकों के खून से लाल कर दिया। हथियारों से लैस आतंकवादियों ने धर्म पूछकर 28 लोगों को गोलियों से भून डाला। इस नहरसंहार के गुनाहगारों पर आंतिम प्रहार को लेकर भारत सरकार कई ऐतिहासिक कदम उठाए हैं। जानकार बता रहे हैं कि भारत की तरफ से बड़ा पलटवार होगा। एक-एक सैलानी की मौत का बदला लिया जाएगा। ऐसे में हम आपको उसी पहलगाम के पौराणिक चरित्र के बारे में बताने जा रहे हैं। जिसे भगवान शंकर की भूमि कहा है। वैदिक काल में इस पवित्र धरा का नाम बैलगाम था। यानी भगवान शिव की सवारी नंदी का गांव।
पहले जानें क्यों चर्चा में है पहलगाम
दरअसल, जम्मू-कश्मीर का पहलगाम मंगलवार की सुबह सैलानियों से पटा था। होटल फुल थे। पहाड़ियों पर पर्यटक खूबसूरती को निहार रहे थे। तभी सात से आठ आतंकवादी हथियारों से लैस होकर पहाड़ पर पहुंचते हैं और सैलानियों को घेर लेते हैं। आतंकवादी सैलानियों से उसना नाम पूछते हैं। कलमा पढ़ने को कहते हैं। जब पर्यटकों ने खुद को हिन्दू बताया तो उन्हें लाइन पर बैठा दिया और गोलियों की बारिश कर दी। इस दौरान 28 सैलानी मारे जाते हैं और 15 से अधिक घायल हो जाते हैं। नरसंहार को अंजाम देने के बाद आतंकी फरार होने में कामयाब हो जाते हैं। सूचना पर पुलिस और सेना रेस्क्यू के साथ आतंकियों के खात्में के लिए ऑपरेशन शुरू करती है। लेकिन इस नरसंहार में शामिल एक भी आतंकी अभी भी पकड़ से दूर है। सुरक्षा एजेंसियों ने दावा किया है कि ये आतंकी हमला पाकिस्तान ने करवाया है। इसे टीआरएफ के आतंकवादियों ने अंजाम दिया है। हमले की साजिश पीओके में रची गई। पाकिस्तान आर्मी और लश्कर-ए-तैयबा के कमांडर आतंकी हमले में शामिल थे।
भगवान शिव की भूमि है पहलगाम
जानकार बताते हैं कि तीनों लोकों को हिला देने वाले तांडव काल के बाद भगवान शिव गृहस्थ जीवन की माया लिए जब धरती पर अवतरित हुए तो उनका प्रिय क्षेत्र यही हिमालय था। हिमालय के उत्तर पूर्व में कैलाश पर्वत से लेकर उत्तर-पश्चिम में आज के कश्मीर तक का पहलगाम उसी शिव महाक्षेत्र का हिस्सा है। जिसकी सुंदर घाटियां, लुभावने वन और बर्फीली चोटियां देख भगवान शिव ने यहां विश्राम किया करते थे। भगवान शिव के इस महाक्षेत्र में सिर्फ पहलगाम ही नहीं, बल्कि कुछ और भी जगहें हैं, जो आज भी पौराणिक कथाओं को मान्यता देती हैं। इन्हीं में एक अनंतनाग है। ये पूरा जिला भगवान शिव के प्रिय नागवंश की राजधानी हुआ करता था। शेषनाग झील में भगवान शिव ने शेषनाग को कुछ दिनों के लिए छोड़ा था। चंदनवाड़ी, जहां भगवान शिव ने अपनी जटाओं से चंद्रमा को अलग किया था। बैलग्राम, जहां भगवान शिव ने अपनी सवारी नंदी बैल को पहरेदार बनाया था।
अमरनाथ की एकांत गुफा चुनी
भगवान शिव से जुड़ी ये चार जगहें आज भी उन पौराणिक कथाओं को साक्षात करती हैं, जिनका जिक्र शिव पुराण जैसे ग्रंथों में मिलता है। इन्हीं में से एक है बैलगाम जहां से पूरी शिव कथा की शुरुआत होती है। इस कथा के मुताबिक गृहस्थ जीवन की लीला में प्रवेश करने के बाद भगवान शिव देवी पार्वती के साथ अमरनाथ की अपनी प्रिय गुफा के लिए रवाना हुए थे। दरअसल, भगवान शिव अपनी संगिनी पार्वती को वो अमर कथा सुनाना चाहते थे, जिसे सुनने के लिए वो जिद पर अड़ी थीं। पार्वती जानना चाहती थीं कि आप तो अमर हैं, लेकिन मुझे हर बार जन्म लेना पड़ता है। जब हर जन्म में आपको पाना है तो इतनी कठिन परीक्षा क्यों। पत्नी की जिद पर भगवान शिव ने वो अमर कथा सुनाने के लिए हामी तो भर दी, लेकिन शर्त ये रखी, कि इसे कोई तीसरा नहीं सुन पाए। क्योंकि जो भी ये कथा सुनेगा, वो अमर हो जाएगा। इसलिए भगवान शिव ने कथा सुनाने की जगह अमरनाथ की एकांत गुफा चुनी।
पहलगाम का मतलब चरवाहों का गांव
पार्वती जी को अमरकथा सुनाने की वो यात्रा पहलगाम से शुरू होती है। भगवान शिव जब इस घाटी में पहुंचे, तो वे एक-एक कर अपने संगियों को अलग करते गए। इस क्रम में सबसे पहले उन्होंने अपनी सवारी नंदी को पहलगाम में छोड़ा। भगवान शिव ने नंदी को यहां एक पहरेदार के तौर पर बिठाया था, ताकि यहां से आगे कोई न जा सके। यदि वहां से कोई आगे जाता, तो वो अमर कथा सुन सकता था। इसी पौराणिक कथा के आधार पर इस जगह का नाम बैलग्राम पड़ा। कश्मीरी भाषा के विकास के दौर में जब इसका नाम पहलगाम रखा गया, तब भी इसी कथा का ख्याल रखा गया। कश्मीरी में पुहेल का अर्थ चरवाहा होता है और पहलगाम का मतलब चरवाहों का गांव। पहलगाम की पहचान आज भी गायों, भेड़ों और इनके चरवाहा समुदाय बकरवाल की बदौलत है। इसकी वजह है यहां की सुगम्य घाटियां और घास के बड़े मैदान।
शिवलिंग की आकृति
नंदी को बैलगाम में छोड़ने के बाद भगवान शिव पार्वती के साथ आगे बढ़ गए। तभी उन्होंने शेषनाग को भी बीच रास्ते पर छोड़ दिए। जिसे आज शेषनाग झील के नाम से जाना जाता है। थानीय लोगों के मुताबिक, आज भी झील के पानी में शेषनाग जैसी छवि दिखाई दे जाती है। भगवान शिव ने अपने पुत्र गणेश को भी अमरनाथ यात्रा मार्ग की एक चोटी पर बिठा दिया। वो पहाड़ी आज गणेश टॉप के नाम से जानी जाती है। आखिर में अपनी जटाओं से जहां गंगा जी को उतारा, उस जगह को पंचतरणी कहते हैं। ये अमरनाथ यात्रा का सबसे आखिरी पड़ाव है। इसके बाद भगवान शिव और पार्वती पहुंचे इस अमर गुफा में, जहां आज भी बर्फ से शिवलिंग की आकृति बनती है। गुफा के बाहर दो कबूरतर आज भी मौजूद हैं, जो अमर हैं।
ये धार्मिक स्थल भी हैं मौजूद
बाबा हरकृष्ण गुरुद्वारा पहलगाम शहर से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह गुरुद्वारा गुरु हर कृष्ण को समर्पित है। वे गुरु हरराय साहिब और माता किशन कौर के पुत्र थे। गुरु हर कृष्ण को बेहद छोटी आयु में गुरु पद की प्राप्ति हो गई थी। पहलगाम के बाजार में स्थित मस्जिद को लेकर मान्यता है कि इसका निर्माण मुगल शासन काल में हुआ था। यह पहलगाम के मैन बाजार में स्थित है इसलिए यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।यहीं पर खीर भवानी का मंदिर है। खीर भवानी मंदिर गंदरबल जिले में तुलमुल गांव में स्थित है। अमरनाथ यात्रा के बाद खीर भवानी मंदिर अधिक लोकप्रिय तीर्थ स्थलों में से एक है। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि जब भी कोई प्राकृतिक आपदा आने वाली होती है तो इस मंदिर के कुंड का पानी काला पड़ जाता है।