Student mental stress during board exams-ग्रेटर नोएडा के दनकौर थाना क्षेत्र के अकरम का 16 वर्षीय बेटा क्षेत्र में स्थित एक इंटर कॉलेज में पढ़ाई करता है। छात्र ने सीबीएसई की 10वीं परीक्षा दी थी। परीक्षा परिणाम मंगलवार को घोषित हुआ था। पुलिस का कहना है कि छात्र को डर था कि वह फेल हो जाएगा। डर की वजह से वह मंगलवार की सुबह घर से अचानक लापता हो गया। डेरीन खुबन गांव में रहने वाला 16 साल का एक छात्र परीक्षा के तनाव में ऐसा फंसा कि रिजल्ट से पहले ही घर छोड़कर चला गया।
मंगलवार को जब परीक्षा परिणाम आने वाला था, तो उसे यह डर सताने लगा कि शायद वह फेल हो जाएगा। इसी डर के चलते वह सुबह-सुबह बिना किसी को बताए घर से निकल गया। जब दोपहर को उसका रिजल्ट आया, तो पता चला कि वह 70 प्रतिशत नंबरों के साथ पास हो गया है।
परिवार ने शुरू की तलाश, पुलिस ने की मदद
जब छात्र के माता-पिता ने देखा कि वह घर पर नहीं है, तो उन्होंने उसे हर जगह ढूंढ़ना शुरू किया। रिजल्ट देखकर उन्हें राहत तो मिली, लेकिन बेटे का कुछ पता नहीं चलने पर वह घबरा गए। इसके बाद उन्होंने दनकौर पुलिस से संपर्क किया और मामले की जानकारी दी।
पुलिस ने तुरंत कार्रवाई शुरू की और मोबाइल ट्रैकिंग के जरिए जानकारी जुटाई। जांच के बाद पता चला कि छात्र आगरा में है। पुलिस की टीम वहां पहुंची और उसे सही-सलामत वापस लेकर आई।
परिवार को सौंपा गया छात्र
दनकौर कोतवाली की टीम छात्र को लेकर थाने पहुंची और फिर परिजनों को सौंप दिया गया। इस घटना ने यह साफ कर दिया कि बच्चों पर परीक्षा का दबाव कितना भारी हो सकता है। कई बार डर के कारण वे गलत कदम उठा सकते हैं।
जरूरत है बच्चों को समझने की
ऐसे मामलों में माता-पिता, शिक्षकों और समाज को बच्चों की मानसिक स्थिति को समझना बहुत जरूरी है। सिर्फ नंबरों की दौड़ में फंसकर बच्चे अपने आत्मविश्वास को खो बैठते हैं। जरूरी है कि हम उन्हें यह भरोसा दिलाएं कि नंबर ही सब कुछ नहीं हैं।
बच्चों पर दबाव बनाना खतरनाक हो सकता है
यह घटना इस बात की तरफ इशारा करती है कि बच्चों पर परीक्षा का मानसिक दबाव कितना भारी पड़ सकता है। उन्हें फेल होने का डर इस कदर घेर लेता है कि वे बड़ा कदम उठा लेते हैं। जरूरी है कि माता-पिता और शिक्षक बच्चों से दोस्ताना व्यवहार करें और उन्हें हर परिस्थिति में सपोर्ट करें।
एक होशियार छात्र सिर्फ डर की वजह से खुद को कमजोर मान बैठा और घर से भाग गया। लेकिन जब हकीकत सामने आई, तो उसने 70% अंक हासिल किए थे। इस घटना से समाज को यह समझना चाहिए कि बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज करना कितना खतरनाक हो सकता है।