हरिद्वार। इस साल पूर्णिमा दो दिन होने और भद्रा होने से आम लोगों में श्रावणी और रक्षाबंधन को लेकर असमंजस है। लेकिन अब ज्यादातर पंचांग विद्वानों का मत है कि 12 अगस्त में पूर्णिमा व्यापनी अर्थात अधिक समय न होने के कारण 11 अगस्त को ही रक्षाबंधन मनाना सही रहेगा।
पं. देवेन्द्र शुक्ल शास्त्री के मुताबिक खगोलीय परिवर्तन से पर्व विवादित होते हैं, परंतु धर्म ग्रंथों में इसका स्पष्ट समाधान भी किया गया है। जब भद्रा स्वर्ग या पाताल लोक में होगी तब वह शुभ फल प्रदान करने में समर्थ होती है। संस्कृत ग्रन्थ पीयूषधारा में कहा गया है।
स्वर्गे भद्रा शुभं कुर्यात पाताले च धनागम। मृत्युलोक स्थिता भद्रा सर्व कार्य विनाशनी।
मुहूर्त मार्तण्ड में भी कहा गया है कि स्थिताभूर्लोख्या भद्रा सदात्याज्या स्वर्गपातालगा शुभा” अतः यह स्पष्ट है कि मेष, वृष, मिथुन, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु या मकर राशि के चन्द्रमा में भद्रा पड़ रही है तो वह शुभ फल प्रदान करने वाली होती है।
श्रावणी उपाकर्म व रक्षा बन्धन का निर्णय धर्म ग्रन्थों निर्णय सिन्धु, धर्म सिन्धु, पुरुषार्थ चिन्तामणि, कालमाधव, निर्णयामृत आदि के अनुसार 12 अगस्त को पूर्णिमा तिथि दो मुहूर्त से कम होने के कारण 11 अगस्त को ही श्रावणी उपाकर्म व रक्षा बन्धन शास्त्र सम्मत हैं।
उन्होंने बताया कि मुहूर्त चिन्तामणि के अनुसार मकर राशि के चन्द्रमा में भद्रा वास पाताल में होने से इस दिन मकरस्थ चन्द्रमा की भद्रा को पीयूषधारा, मुहूर्त गणपति, भूपाल बल्लभ, आदि ग्रन्थों में अत्यन्त शुभ व ग्राह्य बताया गया है। मुहूर्त प्रकाश में स्पष्ट है कि आवश्यक कार्य में मुख मात्र को छोड़कर सम्पूर्ण भद्रा में शुभ कार्य कर सकते हैं। भद्रा का मुख सायं 5.51 बजे से प्रारम्भ हो रहा है अतः पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ प्रातः 10.39 बजे से सायं 05.51 बजे तक का सम्पूर्ण समय श्रावणी उपाकर्म व रक्षा बन्धन के लिए पूर्णरूपेण शुद्ध हैं।