Political News-जयराम महतो झारखंड के उभरते हुए युवा नेता हैं, जिन्होंने 2024 के विधानसभा चुनाव में अपनी अलग पहचान बनाई। उनका जन्म 1995 में धनबाद जिले के मानतंड गांव में हुआ। उनके पिता झारखंड को अलग राज्य बनाने के आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा चुके थे। जयराम ने भी अपने पिता की इस सोच को आगे बढ़ाते हुए झारखंड के मूल निवासियों और उनकी पहचान के लिए आवाज उठाई।
साल 2022 में जयराम पहली बार तब सुर्खियों में आए जब उन्होंने झारखंड की सरकारी परीक्षाओं में भोजपुरी, मगही और अंगिका जैसी बाहरी भाषाओं को शामिल करने का विरोध किया। उनका कहना था कि झारखंड के मूल निवासियों को ही प्राथमिकता मिलनी चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने झारखंड के स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने और मूल निवासियों को नौकरियों में आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन भी किए।
कैसे बदले चुनावी समीकरण?
जयराम महतो की पार्टी झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेएलकेएम) ने 2024 के विधानसभा चुनाव में 71 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। हालांकि पार्टी ने केवल डुमरी सीट पर जीत दर्ज की, लेकिन उनकी रणनीति ने बीजेपी और आजसू को बड़ा नुकसान पहुंचाया। डुमरी सीट से उन्होंने 10,000 वोटों के अंतर से जीत हासिल की, जबकि उनकी पार्टी ने 14 अन्य सीटों पर चुनावी नतीजों को प्रभावित किया।
झारखंड के कुर्मी समुदाय, जो राज्य की कुल आबादी का 14% है, ने जयराम की पार्टी को बड़ा समर्थन दिया। इससे बीजेपी और उसकी सहयोगी आजसू के पारंपरिक वोट बैंक को नुकसान हुआ।
भाजपा और आजसू को झटका
बीजेपी और आजसू को इस चुनाव में बड़ा झटका लगा। जेएलकेएम ने कुर्मी समुदाय के वोटों का रुख अपनी ओर कर लिया, जिससे आजसू का जनाधार कमजोर हो गया। आजसू केवल एक सीट जीत पाई, और पार्टी प्रमुख सुदेश महतो को उनके गढ़ सिल्ली सीट से हार का सामना करना पड़ा।
कई सीटों, जैसे सिंदरी, बोकारो, रामगढ़, और खरसावां, पर जेएलकेएम की उपस्थिति ने बीजेपी और आजसू के प्रदर्शन को कमजोर कर दिया। खासकर उन सीटों पर, जहां जेएलकेएम तीसरे नंबर की पार्टी बनी, उसने एनडीए के वोट काटकर विपक्षी गठबंधन को फायदा पहुंचाया।
झारखंड के मुद्दों पर ध्यान
जयराम महतो हमेशा से झारखंड के स्थानीय मुद्दों और मूल निवासियों के अधिकारों पर ध्यान देते आए हैं। उनकी सबसे बड़ी मांगों में झारखंडी भाषाओं को प्राथमिकता देना और बाहरी भाषाओं को हटाना शामिल है। उनका कहना है कि झारखंड में नौकरियों और संसाधनों पर केवल स्थानीय लोगों का हक होना चाहिए।
उनकी इन कोशिशों और संघर्षों ने उन्हें झारखंड की राजनीति में एक नई पहचान दिलाई। उनकी पार्टी ने इस बार के चुनाव में भले ही ज्यादा सीटें न जीती हों, लेकिन राज्य की राजनीति में उनका प्रभाव साफ दिखाई दिया