Mohan Bhagwat RSS centenary speech:दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने संबोधन दिया। उन्होंने कहा कि भारत की सबसे बड़ी चुनौती बंटे हुए समाज को एक समाज के रूप में खड़ा करना है। भागवत ने कहा कि धर्म, पंथ या पूजा-पद्धति कोई भी हो, सभी भारतीयों का डीएनए हजारों साल से एक जैसा है।
संघ केवल हिंदुओं के लिए नहीं
भागवत ने यह साफ किया कि अक्सर लोगों में यह गलतफहमी होती है कि संघ सिर्फ हिंदुओं के लिए काम करता है। उन्होंने कहा कि संघ “हिंदू राष्ट्र” की बात करता है, लेकिन इसका मतलब केवल हिंदुओं से नहीं है। हिंदुस्तान में रहने वाले सभी लोग इसमें शामिल हैं। कोई खुद को हिंदू कहे, कोई हिंदवी या भारतीय – सबका अर्थ एक ही है और सब भारतीयता का हिस्सा हैं।
धर्मांतरण पर स्पष्ट राय
भागवत ने अवैध धर्मांतरण के मुद्दे पर कहा कि यह समस्या देश में चिंता का कारण बनी है। उन्होंने बताया कि चाहे हिंदू हों, मुसलमान हों या ईसाई सबका डीएनए एक ही है। इसलिए धर्म बदलने की कोई ज़रूरत नहीं है। सभी लोग अपने-अपने धर्म को मानकर भी समान लक्ष्य की ओर बढ़ सकते हैं।
समाज से मिली शक्ति
उन्होंने कहा कि आज संघ की उपलब्धियों पर चर्चा होती है, लेकिन यह ताकत स्वयंसेवकों और समाज से आई है। शाखाओं के जरिए बने कार्यकर्ताओं ने ही संघ को मजबूत किया है। भागवत ने बताया कि आरएसएस पूरी तरह आत्मनिर्भर है और आर्थिक रूप से भी केवल स्वयंसेवकों पर ही निर्भर रहता है।
भारत को विश्व गुरु बनाने पर जोर
भागवत ने कहा कि अब समय आ गया है जब भारत को दुनिया में अपना योगदान देना होगा। उन्होंने बताया कि आजादी के 75 साल बाद भी भारत को वह दर्जा नहीं मिला, जिसका वह हकदार है। आरएसएस का लक्ष्य देश को विश्व गुरु बनाना है।
राजनीतिक संतुलन साधने की कोशिश
विपक्ष लगातार भाजपा पर आरोप लगाता है कि वह बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा देती है। ऐसे समय में भागवत का कहना कि “हिंदू राष्ट्र का अर्थ सत्ता नहीं है” एक राजनीतिक संतुलन की कोशिश भी माना जा रहा है। इससे यह संदेश जाता है कि संघ का मकसद किसी पर हावी होना नहीं, बल्कि सभी को साथ लेकर चलना है।
बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर ध्यान जरूरी
भागवत के संदेश को इस रूप में भी देखा जा रहा है कि संघ भाजपा को याद दिला रहा है कि असली काम समाज निर्माण और बुनियादी समस्याओं का समाधान करना है। बेरोजगारी और किसानों की परेशानी जैसे मुद्दों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
संभावित असर
भाजपा-विरोधी दलों के आरोप कमजोर पड़ सकते हैं।
भाजपा को अपनी भाषा और नीतियों में ज्यादा “समावेशिता” दिखानी होगी।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का राष्ट्रवाद सांस्कृतिक और समन्वयवादी दिखेगा।
हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन और राष्ट्रवादी मुसलमानों के बीच नज़दीकी बढ़ सकती है।