मध्यप्रदेश में बीजेपी की एक बार फिर सरकार बनाने की कमान केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के हाथ में है। चुनाव अभियान में उन्होंने अपने जांचे परखे सहयोगी भूपेन्द्र यादव को जुलाई महीने में राज्य का प्रभारी बनवाया। एमपी में सह प्रभारी रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव और चुनाव प्रबंधन कमेटी के संयोजक केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर हैं। जुलाई 2023 से ही शाह होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी पार्टी की जीत तय करने की बड़ी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। वहीं ग्वालियर के महाराज और केन्द्रीय मंत्री सिंधिया भी मुख्यमंत्री पद पर अपनी दावेदारी मजबूती से बना रहे हैं।
सूत्रों की माने तो शाह की अलग-अलग कोशिशों के बाद भी पार्टी के अंदर की गुटबाजी कम नहीं हो रही है। बताया ये भी जा रहा है कि मध्यप्रदेश में कुछ नेता ऐसे भी हैं जो अपने अपने इलाके में किसी की नहीं सुन रहे हैं। माना जा रहा है कि पार्टी के रणनीतिकार इन सभी बातों को केन्द्र में रखकर चुनावी रणनीति को अंतिम रूप दे रहे हैं।
बीजेपी के पास मुख्यमंत्री के चेहरे
मुख्यमंत्री बनने की मन ही मन महत्वाकांक्षा रखने वाले बीजेपी में कोई एक नेता नहीं हैं। हर बड़े नेता के समर्थक इस बात की आस लगाए बैठे हैं कि उनके मंत्री जी ही अगले सीएम पद के मजबूत दावेदार हैं। इस लिस्ट में अनेकों नाम हैं। केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के प्रशंसकों और समर्थकों को भी बड़ी उम्मीद है। केन्द्रीय कृषि मंत्रालय में उनका सचिवालय संभाल रहे तमाम समर्थकों ने भोपाल में अपना एक अलग ठिकाना बना लिया है। तोमर के मुख्यमंत्री बनने के सवाल पर उनके चेहरे की चमक और प्रतिक्रिया बड़ी सकारात्मक रहती है।
तोमर के साथ कैलाश विजय वर्गीय भी हैं जो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विरोधी माने जाते हैं। किसी वक्त सिंधिया पर तंज कसने वाले कैलाश पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव भी हैं। बता दें कि पिछले काफी समय से पार्टी ने उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी है। लेकिन इस बार बीजेपी उन पर भी दांव लहगाने जा रही है। कैलाश कहते हैं कि उनकी मंशा विधानसभा चुनाव लड़ने की बिल्कुल भी नहीं है। वह तो चुनाव लड़वाना चाहते थे। प्रचार में आठ जन सभाएं रोजाना करने का प्लान था लेकिन यह पार्टी का फैसला है और वह नारा लगाते हुए आगे बढ जाते हैं।
शिवराज और सिंधिया सहयोगियों के अपने अलग तर्क
मध्यप्रदेश के सीएम की कुर्सी पर करीब 18 साल से काबिज शिवराज सिंह चौहान अभी हो रही चर्चाओं पर मौन धारण किए हुए हैं। बता दें कि अभी चुनाव की तारीखों की भी घोषणा नहीं हुई है। अभी 79 उम्मीदवारों की सूची जारी हुई है और करीब इसके डेढ़ गुना उम्मीदवारों की लिस्ट आना बाकी है। सियासी हलचलों में शिवराज के समर्थक लगातार उनकी जीत के साथ-साथ एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने की बात करते दिखाई देते हैं तो वहीं संधिया के सहयोगी तमाम पहलुओं और अलग-अलग तरिकों से सीएम पद पर दावेदारी की बात करते हैं।
यह भी पढ़े:- मेरठ में धर्म परिवर्तन का बड़ा खेल, 400 हिंदुओं को ईसाई बनाने की चली चाल
शिवराज का इंतजार किजिए
एमपी की राजधानी भोपाल में हर घंटे नई चर्चाएं भी सुनने को मिल रही हैं। शिवराज समर्थक तमाम विधायकों में एक अलग ही हलचल है। यह हलचल ज्यातिरादित्य सिंधिया के समर्थक कुछ विशेष मंत्रियों में भी है। हलचल की वजह टिकट ही है। कयास ये भी लगाए जा रहे हैं कि इस बार टिकट बंटवारे के बाद कांग्रेस की तुलना में बीजेपी में बड़ी हलचल हो सकती है। यही हलचल अगले सीएम के चेहरे की दिशा भी तय कर सकती है। वहीं फिलहाल शिवराज की चुप्पी की वजह से उन्हें बिल्कुल चुका हुआ न समझा जाए। शिवराज अभी अपने स्वभाव के मुताबिक व्यवहार कर रहे हैं और सबके सामने पेश हो रहे हैं। वह पुराने धुरंधर हैं। आगे आने वाले समय में बड़ी रणनीति के साथ दिखाई देंगे।