Vice President Election: विपक्ष ने सुदर्शन रेड्डी को उतार क्या सियासी पारा चढ़ा दिया, बड़ा सवाल नायडू किसका देंगे साथ

उपराष्ट्रपति चुनाव में बी. सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाकर विपक्ष ने नायडू को कठिन स्थिति में डाल दिया है। अब देखना यह होगा कि नायडू गठबंधन निभाते हैं या अपने प्रदेश के नेता का समर्थन करते हैं।

Vice President Election: उपराष्ट्रपति चुनाव इस बार बेहद दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गया है। विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया ब्लॉक’ ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी. सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाकर बड़ा दांव खेला है। रेड्डी आंध्र प्रदेश के रंगारेड्डी ज़िले से आते हैं। इस कदम से सियासी हलचल तेज हो गई है और सबसे बड़ी दुविधा खड़ी हो गई है एनडीए की सहयोगी तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) और उसके प्रमुख चंद्रबाबू नायडू के सामने।

सियासी मुकाबले में दिलचस्प मोड़

एनडीए की तरफ से उम्मीदवार बनाए गए हैं महाराष्ट्र के राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन, जो तमिलनाडु से आते हैं। एक तरफ आंध्र प्रदेश के सुदर्शन रेड्डी और दूसरी ओर तमिलनाडु के राधाकृष्णन दोनों के क्षेत्रीय आधार ने इस चुनाव को और रोचक बना दिया है। इसी कारण से नायडू के लिए फैसला लेना मुश्किल हो गया है।

नायडू के लिए धर्मसंकट

चंद्रबाबू नायडू पर दो तरफा दबाव है। एक ओर गठबंधन की वफादारी है, तो दूसरी ओर आंध्र प्रदेश के लोगों का क्षेत्रीय गर्व। चूंकि विपक्ष का उम्मीदवार उनके ही राज्य से है, ऐसे में नायडू पर अपने प्रदेश के नेता का समर्थन करने का दबाव बढ़ गया है। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो जनता के बीच गलत संदेश जा सकता है।

नायडू का अगला कदम क्या होगा?

विश्लेषकों का कहना है कि अगर नायडू एनडीए उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन का समर्थन करते हैं, तो उन्हें आंध्र प्रदेश की राजनीति में नुकसान उठाना पड़ सकता है। वहीं अगर वे इंडिया ब्लॉक के सुदर्शन रेड्डी का साथ देते हैं, तो यह सीधे-सीधे मोदी सरकार से टकराव माना जाएगा।

मोदी सरकार के लिए खतरे की घंटी?

अगर टीडीपी ने पाला बदला, तो एनडीए के सांसदों की संख्या घट सकती है। अभी एनडीए के पास लोकसभा में 293 सांसद हैं। टीडीपी के हटने के बाद यह घटकर 277 रह जाएगी। बहुमत के लिए 272 सांसदों की ज़रूरत होती है। यानी टीडीपी का रुख बदलना मोदी सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। यही कारण है कि यह चुनाव सिर्फ उपराष्ट्रपति पद तक सीमित नहीं रह गया, बल्कि केन्द्र की राजनीति पर भी असर डाल सकता है।

उपराष्ट्रपति चुनाव अब सिर्फ सत्ता और विपक्ष के बीच नहीं, बल्कि क्षेत्रीय राजनीति और गठबंधन की मजबूरी के बीच फंसा हुआ है। नायडू का फैसला न केवल उनके राजनीतिक भविष्य को तय करेगा, बल्कि यह मोदी सरकार के लिए भी बड़ा इम्तिहान साबित हो सकता है।

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