Haritalika Teej 2022: हरतालिका तीज का व्रत केवल सुहागिने ही नहीं, बल्कि विवाह योग्य कन्याएं भी मनचाहे वर की प्राप्ति कि लिए करती हैं. इस दिन भगवान शंकर व माता पार्वती की मिट्टी मूर्ति बनाकर पूजा की जाती है. हरतालिका तीज का व्रत करने वाली हर महिला को इस दिन व्रत कथा को सुनना या पढ़ना जरूरी होता है. तो चलिए जानें इस व्रत से जुड़ी कथा के बारे में .
हरतालिका तीज पर फुलेरा का महत्व
हरतालिका तीज कठिन व्रत माना जाता है। हरतालिका तीज के पूजन में भगवान शंकर के ऊपर फुलेरा बांधा जाता है। हरतालिका तीज के पूजन में फुलेरा का विशेष महत्व है। फुलेरा जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है फूलों से बनाया जाता है। इसमें 5 ताजे फूलों की माला का होना जरूरी माना जाता है। मान्यता है कि फुलेरे में बांधी जाने वाली 5 फूलों की मालाएं भगवान भोलेनाथ की पांच पुत्रियों (जया, विषहरा, शामिलबारी, देव और दोतली) का प्रतीक है।
मां पार्वती ने किया था हरतालिका तीज व्रत
मान्यताओं के अनुसार, मां पार्वती ने सबसे पहले हरतालिका तीज व्रत किया था। इस व्रत के दौरान मां पार्वती ने अंन और जल का त्याग किया था। मत पार्वती के इस कठिन तप से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। तभी से मनचाहे वर की कामना और अखंड सौभाग्य के लिए महिलाएं हरतालिका तीज का व्रत रखती है।
हरतालिका तीज व्रत में क्या करें
- व्रत के दिन सूर्योदय से पूर्व जब फल, मिठाई आदि खाना होता है. उस समय में आपको रसीले फल, नारियल पानी आदि का सेवन करना चाहिए ताकि पूरे दिन शरीर में पानी की मात्रा बनी रहे. मिठाई भी इसलिए खाया जाता है ताकि पानी अधिक पी सकें.
- हरतालिका तीज व्रत की पूजा के लिए सामग्री पहले से ही मंगा लें, ताकि पूजा के समय किसी वस्तु की कमी न हो और उतने से ही आपको असंतुष्टी न हो.
- व्रत वाले दिन आपको मायके से आई साड़ी और श्रृंगार सामग्री का उपयोग करना चाहिए. ऐसी परंपरा चली आ रही है.
- यदि आपके पास हरे रंग की साड़ी है तो उसे पहनें या फिर लाल रंग की साड़ी भी पहन सकते हैं. ये दोनों ही रंग सुख और सौभाग्य के प्रतीक हैं.
- जब शुभ मुहूर्त में माता पार्वती, शिव जी और गणेश जी की पूजा करें तो हरतालिका तीज व्रत की कथा अवश्य सुनें.
- इस व्रत में हरतालिका तीज के सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक निर्जला रहा जाता है क्योंकि अगले दिन सूर्योदय पूर्व तक तृतीया तिथि होती है. उसके बाद पारण करते हैं. हालांकि जिन लोगों से बर्दाश्त नहीं हो पाता है, वे रात्रि में 12 बजे के बाद पानी पी लेते हैं.
हरतालिका तीज व्रत में क्या न करें
- व्रत के दिन वे कार्य न करें, जिससे आपकी ऊर्जा का ह्रास हो. यदि ऐसा होता है तो आप बीमार पड़ सकती हैं.
- इस दिन अत्यधिक बात करना और गुस्सा करना आपके एनर्जी को कम करेगा. कोशिश करें कि आपका समय भक्ति भजन में व्यतीत हो.
- व्रत वाले दिन सोने की मनाही होती है. शास्त्रों के अनुसार व्रत में सोना वर्जित है.
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो इस दिन पानी पीता है, उसे अगले जन्म में मछली की योनि प्राप्त होती है.
- यह व्रत सुखी दांपत्य जीवन के लिए रख रही हैं तो इस दिन पति के साथ वाद-विवाद जैसी स्थितियों को न पैदा होने दें. यह बात पति पर भी लागू होती है.
- बीमार या गर्भवती महिलाओं को इस व्रत को नहीं रखना चाहिए. स्वास्थ्य कारणों से आप इसे करने में असमर्थ हैं तो यह व्रत पति या फिर परिवार के किसी अन्य महिला सदस्य से करा सकती हैं ताकि आपके व्रत का क्रम न टूटे.
- यदि आप व्रत हैं तो इस दिन अपने मन में किसी के प्रति द्वेष, घृणा जैसी नकारात्मक विचारों को न आने दें. मन, कर्म और वचन से शुद्धता को अपनाएं. तभी व्रत भी सफल होता है.
हरतालिका तीज व्रत की कथा (Hartalika Teej Vrat Katha in Hindi)
हरतालिका तीज के व्रत के माहात्मय की कथा भगवान शंकर ने पार्वती को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के लिए सुनाई थी. जो की इस प्रकार है. हे पार्वती तुमने एक बार हिमालय पर गंगा तट पर अपनी बाल्यावस्था में बारह वर्ष की आयु में अधोमुखी होकर घाेर तप किया था. तुम्हारी इस कठोर तपस्या को देखकर तुम्हारे पिता को बड़ा क्लेश होता था. एक दिन तुम्हारी तपस्या और तूम्हारे पिता के क्लेश के कारण नारद जी तुम्हारे पिता के पास आये. और बोले हे राजन विष्णु भगवान आपकी कन्या सती से विवाह करना चाहते है. उन्होने इस कार्य हेतु मुझे आपके पास भेजा है. और तुम्हारे पिता ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया.
इसके बाद देवर्षि नारद जी भगवान विष्णुजी के पास जाकर बोले की हिमालयराज अपनी पुत्री सती का विवाह आपसे करना चाहते है. विष्णु जी भी इस बात से राजी हो गए. जब तुम घर लोटी तो तुम्हारे पिता ने तुम्हें बताया की तुम्हारा विवाह विष्णुजी से तय कर दिया है. यह बात सुनकर माता सती को अत्यन्त दुख हुआ, और तुम जोर-जोर से विलाप करने लगी.
जब तुम्हारी अंतरंग सखी ने तुम्हारे रोने का कारण पूछा तो तुमने उसे सारा वृतांत सुना दिया. ओर कहा मैं भगवान शंकर से विवाह करना चाहती हूँ. और उसके लिए मैं कठोर तपस्या करके उन्हे प्रसन्न कर रहीं हूँ. और इधर हमारे पिता विष्णुजी के साथ मेंरा सम्बन्ध करना चाहते है. क्या तुम मेरी सहायता करोगी. नहीं तो मैं अपने प्राण त्याग दूँगी.
तुम्हारी सखी बड़ी दूरदर्शी थी. वह तुम्हें एक घनघोर जंगल में ले गयी और कहा की तुम यहा पर भगवान शिव को पाने के लिए घोर तपस्या कर सकती हो. इधर तुम्हरे पिता हिमालयराज तुम्हें घर न पाकर बहुत ही चिन्तित हुए. ओर कहा मैं विष्णुजी से उसका विवाह करने का वचन दे चुका हूँ. ओर वचन भंग की चिन्ता में हिमालयराज मूर्छित हो गए.
इधर तुम्हारी खोज होती रही और तुम अपनी सहेली के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मरी तपस्या करने में लीन हो गई. इसके बाद भाद्रपद शुक्ला की तृतीया को हस्त नक्षत्र में तुमने रेता का शिवलिंग स्थापित करके व्रत किया. और पूजन करके रात्रि को जागरण किया. तुम्हारे इस कठिन तप व्रत से मेरा आसन डोलने लगा. ओर मेरी समाधि टूट गई.
मैं तुम्हारे पास तुरन्त तम्हारे पास पहुचां और वर मॉंगने का आदेश दिया. तुम्हारी मॉंग तथा इच्छानुसार तुम्हें मुझे अर्धागिनी के रूप में स्वीकार करना पड़ा. ओर तुम्हे वरदान देकर मै कैलाश पर्वत पर चला गया. प्रात: होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री को नदी में प्रवाहित करके अपनी सहेली सहित व्रत का पारण किया. उसी समय तुम्हें खोजते हुए हिमालय राज उस स्थान पर पहुँच गए. ओर रोते हुए तुम्हारे घर छोड़ने का कारण पूछा.
तब तुमने अपने पिता को बताया की मै तो शंकर भगवान को अपने पति रूप में वरण कर चुकी हूँ. परन्तु आप मेरा विवाह विष्णुजी से करवाना चाहते थे. इसी लिए मुझे घर छोडकर आना पड़ा. मैं अब आपके साथ घर इसी शर्त पर चल सकती हूँ, की आप मेरा विवाह विष्णुजी से न करके भगवान शंकर जी करेगें. ओर गिरिराज तुम्हारी बात मान गए और शास्त्रोक्त विधि द्वारा हम दोनों को विवाह के बन्धन में बॉंध दिया.
इसलिए इस व्रत को ”हरतालिका” इसलिए कहते है की पार्वती की सखी उसे पिता के घर से हरण कर घनघोर जंगल में ले गई थी. ”हरत” अर्थात हरण करना और ”आलिका” अर्थात सखी, सहेली. तो हरत+आलिका (हरतालिका). और भगवान शंकर जी ने माता पार्वती को यह भी बताया की जो कोई स्त्री इस व्रत को परम श्रद्धा से करेगी उसे तुम्हारे समान ही अचल सुहाग प्राप्त होगा.