नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। संभल के शाही मस्जिद का विवाद अभी थमा नहीं था कि राजस्थान के अजमेर शरीफ को लेकर दंगल छिड़ गया है। हिन्दुसेना ने ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर दावा करते हुए अदालत में याचिका दायर की थी। कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए सभी पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने के आदेश दिए हैं। जिसके बाद से देश का सियासी पारा अपने पूरे सवाब पर है। विपक्ष बीजेपी पर हमलावर है तो दरगाह की तरफ से भी बयान जारी हुआ है।
हिन्दु सेना ने कोर्ट में दाखिल की याचिका
दरअसल, हिन्दु सेना की तरफ से अजमेर की सिविल कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई। याचिका में हिन्दू सेना की तरफ से अजमेर शरीफ दरगाह को महादेव का मंदिर बताया गया है। कोर्ट ने अर्जी को स्वीकरी करते हुए सभी पक्षकारों को नोटिस जारी किया है। अब मामले की अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी। वहीं हिंदू सेना के दावे को लेकर ऑल इंडिया सज्जादानशीन काउंसिल के अध्यक्ष सैयद नसीरूद्दीन चिश्ती ने नाराजगी जताई है। औवेसी भी बोले और उन्होंने इस मामले को लेकर 1991 पूजा स्थल एक्ट का हवाला देते हुए पीएम को घेरा।
इस किताब का दिया गया हवाला
हिन्दुसेना की तरफ से जो याचिका दाखिल गई है, उसमें रिटायर्ड जज हरबिलास सारदा द्धारा 1911 में लिखी पुस्तक ‘अजमेरः हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव’ का हवाला दिया गया है। हिन्दुसेना का दावा है कि दरगाह में जो मलबा इस्तेमाल किया गया है, वह मंदिर का है। इसके अलावा गर्भगृह और परिसर में एक जैन मंदिर होने की बात कही गई है। हिन्दुसेना का कहना है कि दरगाह के नीचले तल पर भगवान महादेव का मंदिर है। ऐसे में हमारी मांग है कि दरगाह का सर्वे हो और सच बाहर आए।
शिवलिंग होने का किया दावा
याचिकाकर्ता के वकील रामस्वरूप बिश्नोई भी मीडिया से मुखातिब हुए। उन्होंने रिटायर्ड जज हरविलास शारदा की पुस्तक का हवाला देते हुए बताया कि, दरगाह के निर्माण में हिंदू मंदिर के मलबे का इस्तेमाल किया गया था। किताब में दरगाह के भीतर एक तहखाने का विवरण दिया गया है, जिसमें कथित तौर पर एक शिव लिंग होने का दावा है। पुस्तक में दरगाह की संरचना में जैन मंदिर के अवशेषों का भी उल्लेख किया गया है और इसके 75 फीट ऊंचे बुलंद दरवाजे के निर्माण में मंदिर के मलबे के तत्वों का भी इसमें वर्णन है।
ASI से सर्वे कराए जाने की मांग
हिन्दुसेना का कहना है कि दरगाह पर स्थित शिवलिंग की पूजा-अर्चना पारंपरिक रूप से एक ब्राह्मण परिवार करता है। दरगाह के 75 फीट ऊंचे बुलंद दरवाजे की संरचना में जैन मंदिर के अवशेषों की उपस्थिति का संकेत देता है। याचिका में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से दरगाह का सर्वेक्षण करने का भी अनुरोध किया गया है, जिसमें उस क्षेत्र में फिर से पूजा-अर्चना की जा सके जहां शिव लिंग बताया जाता है। हिन्दुसेना की तरफ से विष्णु गुप्ता वादी हैं। उन्होंने दरगाह को लेकर कई जानकारियां मीडिया से साझा की हैं। उन्होंने दावा किया है कि दरगाह में शिवलिंग हैं।
दरगाह में बताया शिव मंदिर
वादी के वकील योगेश सिरोजा ने बताया कि वाद पर दीवानी मामलों के न्यायाधीश मनमोहन चंदेल की अदालत में सुनवाई हुई। सिरोजा ने कहा, दरगाह में एक शिव मंदिर होना बताया जा रहा है। उसमें पहले पूजा पाठ होता था। पूजा पाठ दोबारा शुरू करवाने के लिये वाद सितंबर 2024 में दायर किया गया। अदालत ने वाद स्वीकार करते हुए नोटिस जारी किए हैं। उन्होंने बताया कि इस संबंध में अजमेर दरगाह कमेटी, अल्पसंख्यक मंत्रालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) कार्यालय-नयी दिल्ली को समन जारी हुए हैं। मामले की अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी। तब सभी पक्षों को कोर्ट में अपना जवाब दाखिल करना होगा।
पूजा पाठ करने का अधिकार दिया जाए
वादी विष्णु गुप्ता ने कहा, ‘हमारी मांग थी कि अजमेर दरगाह को संकट मोचन महादेव मंदिर घोषित किया जाये और दरगाह का किसी प्रकार का पंजीकरण है तो उसको रद्द किया जाए। उसका सर्वेक्षण एएसआई के माध्यम से किया जाए और वहां पर हिंदुओं को पूजा पाठ करने का अधिकार दिया जाए। वहीं दरगाह की देखभाल करने वालों की देखरेख करने वाली अंजुमन समिति के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने ऐसे विवादों के निहितार्थों के बारे में चिंता जाहिर की। उन्होंने 1991 के प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट का हवाला देते हुए सरकार से दखल देने की अपील की है।
पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता
चिश्ती ने कहा कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। चिश्ती ने दरगाह के 800 से अधिक वर्षों के लंबे इतिहास को रेखांकित किया और दरगाह पर एएसआई के अधिकार क्षेत्र को विवादित बताया, जो अल्पसंख्यक मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में है। वहीं ओवैसी से लेकर चंद्रशेखर आजाद के बयान भी सामने आए हैं। प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने कोर्ट पर आरोप लगाए हैं और सुप्रीम कोर्ट से दखल देने की मांग की है।
मौलाना शहाबुद्दीन रजवी का आया बयान
इनसब के ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने कहा कि संभल की जामा मस्जिद का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि दरगाह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी का मामला सामने आ गया है। कोर्ट में अर्जी दाखिल करने वाले ने दरगाह शरीफ के अंदर शिव मंदिर होने का दावा किया है, जो सरासर गलत और झूठ है। मौलाना ने कहा कि चंद सांप्रदायिक ताकतें देश के माहौल को खराब करना चाहती हैं। 2015 से खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर साल उर्स के मौके पर केंद्र सरकार की तरफ से चादर भेजकर अकीदत का नजराना पेश करते हैं।
महान सूफी संत थे मोइनुद्दीन चिश्ती
बता दें, राजस्थान के अजमेर शहर में एक प्रसिद्ध सूफी दरगाह है। यह दरगाह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की समाधि है, जो एक महान सूफी संत माने जाते हैं। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लाम के सूफी चिश्ती सिलसिले का प्रसार किया था और उनकी शिक्षा में मानवता, प्रेम और समर्पण का संदेश निहित है। मुगल सम्राट अकबर ने भी नियमित रूप से आकर ख्वाजा साहब से आशीर्वाद प्राप्त किया था। यह दरगाह हर धर्म, जाति, और संप्रदाय के लोगों के लिए एक श्रद्धा स्थल है। अजमेर में यहां हर ‘उर्स’ का आयोजन होता है, जो ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के निधन का प्रतीक है, और जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
लोग चढ़ाते हैं चादर
अजमेर शरीफ दरगाह पर चादर चढ़ाना एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा है, जिसे श्रद्धा, सम्मान, और मन्नत के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। चादर चढ़ाने की यह रस्म सूफी परंपरा का हिस्सा है और इसका उद्देश्य ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करना होता है। दरगाह पर चादर चढ़ाकर लोग ख्वाजा साहब के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। इसे संत के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता का प्रतीक माना जाता है। लोग मानते हैं कि दरगाह पर चादर चढ़ाने से उनकी मन्नत पूरी होती है। अजमेर शरीफ दरगाह पर चादर चढ़ाने के लिए सभी धर्मों के लोग आते हैं।