नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र पहाड़ी नगर है। सिरोही जिले के नीलगिरि की पहाडिय़ों की सबसे ऊंची चोटी पर बसे माउंट आबू की भौगोलिक स्थिति और वातावरण राजस्थान के अन्य शहरों से बहुत अलग है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, हिंदू धर्म के तैंतीस करोड़ देवी-देवता इस पर्वत पर भ्रमण करते हैं। जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर भी यहां आए थें। उसके बाद से माउंट आबू जैन अनुयायियों के लिए एक पवित्र और पूजनीय तीर्थस्थल बना हुआ है। यहीं पर भगवान शंकर और भगवान विष्णु एक साथ वास करते हैं।
सर्प पर टिका है पर्वत
ये पर्वत समुद्र तल से 1220 मीटर की ऊंचाई पर है। माउंट आबू हिंदू और जैन धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल है। यहां के ऐतिहासिक मंदिर और प्राकृतिक खूबसूरती सैलानियों को अपनी ओर खींचती है। माउंट आबू प्राचीन काल से ही साधु संतों का निवास स्थान रहा है। दुनिया का ये इकलौता मंदिर है जहां भगवान विष्णु से पहले इस मंदिर में भगवान शंकर की पूजा होती है। आबूराज इसलिए कहा जाता है क्योंकि अर्बुद पर्वत अर्बुद सर्प पर टिका हुआ है। नाग का नाम होने की वजह से ही आबूराज कहा जाता है।
स्कंद पुराण में विवरण
अर्बुद पर्वत वह जगह है, जहां 33 करोड़ देवी देवताओं की एक साथ अरावली पर्वत पर अराधना की गई थी। इसका विवरण स्कंद पुराण के अर्बुद खंड में मिलता है। वास्थान जी तीर्थ-यानि-भगवान शंकर और भगवान विष्णु की अराधना का एक तीर्थ। भगवान विष्णु और भगवान शंकर यहां एक साथ वास करते है। यहां भगवान शंकर के साथ भगवान विष्णु तो है लेकिन अराधना सबसे पहले भगवान शिव की पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि जो भी इस तीर्थ पर आकर कुछ भी मांगता है या मन्नते करता है उसे भगवान शंकर के साथ भगवान विष्णु का संयुक्त आशीर्वाद मिलता है। यही वो जगह है जहां भगवान शंकर की पूजा पहले करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा होती है।
यहीं पर भगवान विष्णु 11 दिनों तक रहे
पौराणिक कथा ये है कि बह््रा,विष्णु और महेश के संयुक्त अवतार भगवान दत्तात्रेय और कई ऋषि मुनियों की तपस्या के बाद 33 करोड़ देवी देवताओं का अरावली पर्वत पर आने का निमंत्रण दिया गया था। 33 करोड़ देवी देवताओं का एक साथ जुटने का प्रमाण पृथ्वी पर सिर्फ एक बार यही मिलता है और वो भी यही अरावली पर्वत पर। 33 करोड़ देवी देवता अरावली पर्वत पर 11 दिन तक रहे। अर्बुद पर्वत पर भगवान शिव के मेहमान बनकर आए भगवान विष्णु। भगवान शंकर प्रसन्न हो गए। रात भर दोनों ने अर्बुदांचल की परिक्रमा की। रातभर भगवान विष्णु भगवान शंकर के मेहमान बने।
पहले भक्त करते हैं भगवान शंकर की पूजा
इस बात से भगवान विष्णु प्रसन्न हो गए और उन्होने घोषणा की कि कृयहां आपकी पूजा मुझसे पहले होगी। सबसे पहले यहां भगवान शंकर की पूजा होगी और उसके बाद मेरी । जानकार बताते हैं कि भगवान शंकर के सेवाभाव से भगवान विष्णु काफी प्रसन्न हो गए थे और उन्होंने ये व्यवस्था कायम की थी कि यहां पर सबसे पहले पूजा भगवान शंकर की होगी। आरती भी भगवान शंकर की पहले होती है और उसके बाद भगवान विष्णु की। सदियों पुरानी ये व्यवस्था आजतक चली आ रही है। आज भी भक्त सबसे पहले भगवान शिव के दर पर जाकर माथा टेकते हैं।
मनचाही सिद्धियां बहुत जल्दी प्राप्त हो जाती
कहते है शिवरात्रि, महाशिवरात्रि और सावन के हर सोमवार के दिन यहां भगवान शंकर और भगवान विष्णु की संयुक्त शक्तियां वास करती है। साधकों को यथोचित फल के साथ उनके दर्शन भी होते है और शक्तियां भी प्राप्त होती है। तभी वास्थानेश्वर जी को सिद्धियों का पीठ कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि साधकों,तपस्वियों को यहां मनचाही सिद्धियां बहुत जल्दी प्राप्त हो जाती है। आबूराज में बड़े बड़े तपस्वियों और संतों ने तपस्या करके कई अनूठी सिद्धियां हासिल की है।
मनोवांछित फल की प्राप्ति
आबूराज के दर्शन की बड़ी महिमा है। ऐसी मान्यता है कि आबूराज की परिक्रमा करने वाले को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। श्रद्धालुओं या दर्शनार्थियों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। तभी से इस जगह को कामनाओं का वास यानि जहां सभी मनोकामनाएं पूरी होती है ३कहा जाता है। स्कंद पुराण में माउंटआबू को अर्धकाशी कहा गया है। भगवान शंकर ने यहां खुद कहा है कि मैं अचलगढ़ और आबूराज में संयुक्त रुप से विराजता हूं।