- देश के प्रधानमंत्री समेत तमाम नेता टेकेंगे संत के चौखट पर माथा
- पंजाब चुनाव को साधने की जुगत
- पूर्व में भी यहां आते रहे है राजनेता
मौसम की तरह राजनीतिक बिसात पर नेता अपनी दांव चला करते हैं लेकिन मौसम और नेताओं में एक बड़ा फर्क होता है , मौसम लोगों के भला के लिए होता है जबकि नेताओं की फितरत सिर्फ और सिर्फ अपने भले की । यूं तो राजनीति में धर्म का प्रयोग पहले से चला रहा है लेकिन हाल फिलहाल की बात करें तो धर्म के सहारे राजनीति की डगर न केवल सुरक्षित माना जा रहा है बल्कि गारेण्टेड भी । बनारस के दक्षिणी छोर पर बसा सीर गोवर्धन गांव यूं तो पूरे साल शांत रहता है लेकिन माघ मास की पूर्णिमा तिथि को यहां पर न केवल रैदासियों का मेला लगता है बल्कि विभिन्न पार्टियों के नेता भी इन रैदासियों के बीच अपनी गोट बैठाने की पूरी शिद्दत के साथ जुगत भी करते हैं ।
इस वर्ष 16 फरवरी को संत रविदास की जयंती मनायी जा रही है । संत रविदास का जन्म बनारस के इसी सीर गोवर्धन गांव में हुआ था । संत रविदास अपने कर्म को ही अपनी पूजा मानते हुए जूते को बनाने का पैतृक काम किया करते थे । संत रविदास के भक्त देश-विदेश में लाखों की संख्या में हैं लेकिन सबसे ज्यादा भक्त या फिर अनुयाई पंजाब प्रांत से जुड़े हुए हैं यही वजह है कि लगभग एक हफ्ता बनारस का गांव पंजाब मय हो जाता है ।
प्रतिवर्ष रविदास जयंती के दिन लगभग दो लाख भक्तों से पटा हुआ यह गांव राजनीतिक पार्टियों के लिए वोट बैंक साधने का अच्छा साधन माना जाता है यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लगायत देश के शीर्षस्थ नेता रविदास के इस दरबार में अपने वोट की राजनीति को और धार देने के लिए आ चुके हैं ।
बेगमपुरा की कल्पना
संत रविदास ने ‘ बेगम ‘ समाज की कल्पना संयोजे हुए ताउम्र काम किया । संत रविदास का मानना था कि वह वो एक ऐसे समाज की संरचना करें जिसे ‘ बेगमपुरा ‘ के नाम से जाना जाए जहां किसी को किसी बात की कोई गम ना हो लेकिन बनारस में 15 दिनों तक बसने वाले इस बेगमपुरा में राजनीतिक बिसात की तमाम उतार चढ़ाव देखे जा सकते हैं । राजनेता अपनी अदाओं के तहत अपनी चाल लिये न केवल गुरु दरबार में अपनी हाजिरी लगाते हैं बल्कि पंगत में बैठकर लंगर का स्वाद चख समरसता का संदेश भी देने का प्रयास करते हैं यह अलग ही बात है कि समरसता का यह संदेश स्वार्थ से पूरित होता है ।
रविदास और रैदासी
‘ मन चंगा तो कठौती में गंगा ‘ को सूत्र वाक्य मानने वाले संत रविदास का जन्म संवत 1443 में माघ पूर्णिमा के दिन वाराणसी के सीर गोबर्धन गांव में हुआ था। जूते बनाने का काम करने वाले संत रविदास ने इस नश्वर शरीर का त्याग 1540 में किया था। इनके कही बातों का पालन करने वाले अनुयायी रैदासी कहलाये । एक अनुमान के अनुसार संत के अनुयायियों की संख्या 50 लाख के आसपास है। जो उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा , पंजाब के साथ ही बड़ी संख्या में विदेशों में है।
ये लगा चुके है संत दरबार में हाजिरी
सीरगोवर्धनुपर स्थित रविदास जन्म स्थान पर नेतायों के आमद की शुरआत बसपा सुप्रीमो मायावती ने किया था। जिन्होंने मन्दिर के गुम्बद के लिए सोना भी दी थी । जिसके बाद पूर्व राष्ट्रपति डॉ. केआर नारायणन, ज्ञानी जैल सिंह, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस कड़ी को विस्तार दिया । 2014 में पीएम नरेंद्र मोदी ने भी इस मंदिर में 2 बार अपनी उपस्थिति दर्ज कराई । 2019 के चुनावी संग्राम के दौरान प्रियंका गांधी वाड्रा ने लंगर चखी और अनुयायियों के बीच अपनी बात भी रखी थी ।
(डॉ संतोष ओझा)