उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक एक्वी मोड में नजर आ रहा है। दरअसल डिप्टी सीएम लगातार सरकारी अस्पतालों का निरीक्षण कर रहे है। साथ ही साफ सफाई को लेकर जिम्मेदारों को फटकार भी लगा रहे है। यही नहीं बीते दिनों उन्होंने अपने अफिशयल फेसबुक पेज पर रायबरेली के जिला अस्पताल में चल रहे गड़बड़ झाले की जांच के आदेश भी दिए। लेकिन डिप्टी सीएम की शख्ती का असर रायबरेली जिला अस्पताल पर पड़ता नहीं दिखाई दे रहा है।
ले रहे रुमाल या कपड़े का सहारा
रायबरेली के जिला अस्पताल में इलाज करवाने के लिए एडमिट मरीजों को गंदगी व बदबू रना पड़ रहा है। साफ सफाई का काम सिर्फ कागजों पर ही चल रहा है। मरीजों को दुर्गध व गंदगी के बचने के लिए रुमाल या कपड़े का सहारा लेना पड़ता है। ताकि वह दुर्गध से बच सके। अब तो लोग कहने को भी मजबूर हो गए है कि जिला अस्पताल है या ये बीमारी का घर। यही नहीं जिला अस्पताल के सीएमएस ने भी ऑन रिकार्ड स्वीकार किया कि जिस फर्म को सफाई का काम सौपा गया है। उसके पास सफाईकर्मी है ही नही सिर्फ कागजों पर ही सफाई होती है। यही नही उन्होंने स्वीकारा की हर महीने लाखों रुपये का खेल संबंधित फर्म द्वारा खेला जा रहा है।

आपको बता दें जिला अस्पताल में सफाई का काम सन 2017 से ऑल ग्लोबल सर्विस प्राइवेट लिमिटेड नाम की फर्म कर रही है। जो लगातार 5 सालों से अपना कब्जा जिला अस्पताल में बनाये हुए है। फर्म के अंडर में सुपर वाईजर मिलाकर कुल 53 कर्मचारी कागजों में काम करते है। पर जमीनी हकीकत में आपको एक शिफ्ट में तीन या चार ही सफाई कर्मी जिला अस्पताल में काम करते देखे जा सकते है और बाकी का पेमेंट उच्चाधिकारियों की रहमो करम पर फर्म के मालिक को मिलता रहता है।
news 1 india ने दिखाई ये खबर
वहीं बीते दिनों news 1 india ने तीन दिन पूर्व ख़बर दिखाई और इस खबर का संज्ञान खुद डिप्टी सीएम ब्रजेश पतःक ने लिया और सीएमओ को 24 घण्टे के अंदर जांच कर रिपोर्ट तलब करने की बात कही, जांच भी हुई और रिपोर्ट भी बनी पर संबंधित फर्म दोषी भी पाई गई पर उस पर कार्यवाही नही हो सकी । यही नहीं खुद जिला अस्पताल के सीएमएस ने भी स्वीकार किया कि संबंधित फर्म द्वारा लाखों का महीनों में सफाई कर्मचारियों के नाम पर वारा न्यारा किया जा रहा है।

मानसून की वजह से बीमारियां बढ़ रही है पर जिला अस्पताल में गंदगी व दुर्गंध की वजह से लोग ज्यादा बीमार व परेशान दिखाई दे रहे है। अब सवाल उठता है कि आखिर किन कारणों से लगातार बीते 5 सालों से एक ही फर्म को सफाई का जिम्मा क्यों दिया जा रहा है? आखिर इसे पीछे कौन सा सिंडिकेट काम कर रहा है? क्या 53 कर्मचारी सिर्फ कागजों पर काम कर रहे हैं? क्या कभी किसी अधिकारी ने इस गंदगी व दुर्गध को लेकर सवाल उठने पर कार्यवाही की? महीने में लाखों रुपये का पेमेंट सरकार से लेने के बाद जिम्मेदार फर्म इतनी बड़ी लापरवाही करके मरीजों को बीमार कर रहा है और जिम्मेदारों को ये गंदगी व दुर्गध क्यो नही दिखाई दे रही ऐसे कई सवाल ज़रूर खड़े होते है।
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