RSS प्रमुख मोहन भागवत ने दशहरे के अवसर में लोगों को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने धर्म आधारित जनसंख्या असंतुलन को लेकर बात उठाई। उन्होंने कहा है कि देश को एक व्यापक जनसंख्या नीति की आवश्कता है। उन्होंने आगे कहा कि धर्म आधारित जनसंख्या के असंतुलन के मामले को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। क्योंकि जनसंख्या में असंतुलन से भौगोलिक सीमा में भी बदलाव होता है।
1947 की दिलाई याद
उन्होंने अपने संबोधन में 1947 में भारत पाकिस्तान के विभाजन को याद दिलाते हुए कहा कि जनसंख्या के असंतुलन के कारण भारत गंभीर परिणाम भुगत चुका है। इस दौरान उन्होंने दक्षिण सूडान, ईस्ट तिमोर और कोसोवो का भी उदाहरण दिया और कहा कि जनसंख्या में असंतुलन के कारण ही ये नए देश बने हैं। इसी बीच RSS प्रमुख ने जन्म दर के साथ-साथ कथित जबरन धर्म परिवर्तन और सीमा पार से अवैध प्रवासियों के भारत आने का भी जिक्र किया।
वहीं RSS के प्रमुख मोहन भागवत ने भागवत ने एक पुस्तक विमोचन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि समाज के हित में सोचने वाले हर व्यक्ति को ये बताना चाहिए कि वर्ण और जाति व्यवस्था अतीत की बात है। वर्ण और जाति जैसी अवधारणाओं को भूल देना जाना चाहिए।
अल्पसंख्यकों में डर पैदा किया जाता है
क्योंकि अल्पसंख्यकों को खतरे में डालना न तो संघ का स्वभाव है और न ही हिंदुओं का। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने आरएसएस पर समाज को विभाजित करने और लोगों को एक दूसरे के खिलाफ लड़ने की कोशिश करने का आरोप लगाया है।
लेकिन असल बात तो ये है कि “अल्पसंख्यकों के बीच यह डर पैदा किया जाता है कि हमारे या हिंदुओं के कारण उन्हें खतरा है। लेकिन ऐसा न पहले हुआ है और न ही भविष्य में होगा।
आत्मरक्षा उन सभी के लिए एक कर्तव्य बन जाती है जो नफरत फैलाते है। जो अन्याय और अत्याचार करते हैं और समाज के प्रति गुंडागर्दी और दुश्मनी के कृत्यों में संलग्न हैं। हम ‘न धमकी देता है और न ही धमकाता है’। हिंदू किसी के विरोधी नहीं है। वह संघ भाईचारे, सौहार्द और शांति रखने का संकल्प लेता है।
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