नई दिल्ली। देश की सर्वोच्च न्यायालय ने सेम सैक्स मैरिज पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. इस फैसले का प्रभाव पूरे LGBTQ समूह पर पड़ सकता है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रजूड़ के अगुवाई में पांच जजों की पीठ ने इस पर अपना फैसला सुनाया. सेम सैक्स मैरिज के मुद्दे को 5 जजों की पीठ 3-2 से खारिज कर दिया
11 मई के दिन सेम सैक्स मैरिज पर हो गया ता फैसला
20 याचिकाओं में समलैंगिक विवाह को कानूनी और सोशल स्टेटस के साथ अपने रिलेशनशिप को मान्यता देने की मांग की गई थी. इस मांग के मुख्य याचिकाकार्ता सुप्रिमो और अभय डांग थे. याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली 5 जजों की बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एसके कौल, एसआर भट्ट, हेमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल थे. संवैधानिक बेंच ने 10 दिन तक लगातार मामले में सुनवाई की थी और 11 मई को फैसला सुरक्षित रखा था. जिसपर 17 अक्टूबर को फैसला सुनाया गया. पांच जजों की बेंच ने 3-2 से ये फैसला सुनाते हुए समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के अधिकार को रद्द कर दिया.
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सेम सैक्स मैरिज के पक्ष में थे चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया
बता दें कि फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी.वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हैट्रोसेक्शुअल लोगों को जो वैवाहिक अधिकार मिलते हैं, वही अधिकार समलैंगिक लोगों को मिलने चाहिए. अगर समलैंगिक कपल को ये अधिकार नहीं मिलता है तो ये मौलिक अधिकार का हनन माना जाएगा. चंद्रचूड़ इन कप्लस के बच्चा गोद लेने की मांग को भी सही ठहराया. वहीं इस फैसले का जस्टिस एसके कौल ने समर्थन किया. लेकिन इससे बाकि तीन जज सहमत नहीं हुए. जिसके कारण फैसले को रद्द करना पड़ा.
कोर्ट कानून नहीं बना सकता लेकिन व्याख्या कर सकता – CJI
इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के CJI ने कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से मान्यता देना संसद का अधिकार है. अदालत कानून नहीं बना सकती, लेकिन उसकी व्याख्या कर सकती है और उसे प्रभावी बना सकती है. स्पेशल मैरिज ऐक्ट को खत्म नहीं कर सकते, लेकिन समलैंगिकों को पार्टनर चुनने का अधिकार है. यह अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की जड़ तक जाता है.