Denmark phone Ban : बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए डेनमार्क सरकार ने एक बड़ा और अहम फैसला लिया है। सरकार ने घोषणा की है कि वह जल्द ही 7 से 17 साल की उम्र के बच्चों के लिए स्कूलों और आफ्टर-स्कूल क्लबों में मोबाइल फोन और टैबलेट के इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक लगाएगी।
यह कदम सरकार द्वारा बनाए गए एक विशेष आयोग की सिफारिश पर उठाया गया है। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि मोबाइल फोन और सोशल मीडिया का छोटे बच्चों पर बेहद नकारात्मक असर पड़ रहा है। खास तौर पर 13 साल से कम उम्र के बच्चों के पास स्मार्टफोन या टैबलेट होना ही नहीं चाहिए।
प्राइमरी और सेकेंडरी स्कूल मोबाइल फ्री ज़ोन
सरकार अब कानून में बदलाव करने जा रही है, जिससे देश के सभी ‘फोल्केस्कोल’ यानी प्राइमरी और लोअर सेकेंडरी स्कूल मोबाइल-फ्री ज़ोन बन जाएंगे। इसका मतलब है कि 7 से 17 साल तक के बच्चों को स्कूल और आफ्टर-स्कूल क्लबों में मोबाइल लाने या इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं होगी—ना कक्षा में, ना ब्रेक के दौरान।
हालांकि, जिन बच्चों को खास जरूरतें हैं, उन्हें इस नियम में छूट मिल सकती है।
शिक्षा मंत्री ने कही ये बात
डेनमार्क के बच्चों और शिक्षा मंत्री मैटियास टेस्फाये ने कहा कि मोबाइल बच्चों का ध्यान भटकाते हैं और उनकी मानसिक स्थिति पर बुरा असर डालते हैं। वहीं आयोग के प्रमुख रस्मस मेयर ने कहा कि एक बार जब फोन बच्चे की जिंदगी में आता है, तो वह उस पर हावी हो जाता है। इससे बच्चों में आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान की कमी देखी जा रही है आजकल के बच्चे बहुत कम उम्र में ही सोशल मीडिया की दुनिया में कदम रख रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 94% बच्चे 13 साल की उम्र से पहले ही सोशल मीडिया से जुड़ जाते हैं, जबकि इन प्लेटफॉर्म्स की न्यूनतम उम्र सीमा 13 साल तय की गई है।
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9 से 14 साल के बच्चे हर दिन करीब 3 घंटे सोशल मीडिया पर बिताते हैं, जिससे उनकी दिनचर्या और मानसिक सेहत पर गहरा असर पड़ रहा है। बच्चे न सिर्फ हानिकारक कंटेंट के संपर्क में आ रहे हैं, बल्कि हर समय ऑनलाइन रहने का दबाव और दूसरों से तुलना की मानसिक चुनौती का भी सामना कर रहे हैं। बढ़ते स्क्रीन टाइम के चलते बच्चे अब खेलकूद, परिवार के साथ समय बिताना और अपने शौक पूरे करना जैसे ज़रूरी अनुभवों से दूर होते जा रहे हैं।
सरकार के फैसले को मिल रहा समर्थन
इस फैसले को संस्कृति मंत्री जैकब एंगल-श्मिट का भी समर्थन मिला है। उन्होंने कहा, “स्क्रीन हमारे बच्चों से उनका बचपन छीन रही है।”
हालांकि कुछ स्कूलों के प्रिंसिपल्स ने चिंता जताई है कि पहले से ही उनके स्कूलों में मोबाइल को लेकर नियम हैं, और सरकार की सीधी दखल से उनकी स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है। डेनमार्क अब उन देशों की कतार में शामिल हो गया है जो बच्चों को डिजिटल दुनिया के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए सख्त कदम उठा रहे हैं। फ्रांस ने 2018 में स्कूलों में मोबाइल पर बैन लगाया था, वहीं नॉर्वे में सोशल मीडिया इस्तेमाल की न्यूनतम उम्र 15 साल रखी गई है।