हम मंहगाई और आर्थिक मंदी की तरफ तेजी से बढ़ रहे है..भारत में Wholesale price index यानी थोक मंहगाई धर पिछले 30 सालों में सबसे ज्यादा है..कोरोना संक्रमण और बढ़ती मंहगाई की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्थ पर असर पड़ा है.
भारत में आर्थिक मंदी.
यूक्रेन और रुस के युद्ध की वजह से सप्लाई चेन पर असर पड़ा है और इससे खाद्यान्नों और अन्य जरुरत के सामान की कीमत बढ़ी है.. रोजमर्रा की चीजों पर लगने वाले टैक्स लगातार बढ़ता जा रहा है.. जो चिंता बढ़ा देने वाला है..इससे लोगों के खर्च करने की क्षमता पर भी असर पड़ा है..इन सब से अमेरिका जैसा देश भी अछूता नहीं रहा है..
आज, रिज़र्व बैंक ने वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) का 25वां अंक जारी किया, जो वित्तीय स्थिरता के जोखिमों और वित्तीय प्रणाली की आघात सहनीयता पर वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (एफएसडीसी) की उप-समिति के सामूहिक मूल्यांकन को दर्शाता है।
रिज़र्व बैंक की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार
मुख्य बातें:
- यूरोप में युद्ध, सतत उच्च मुद्रास्फीति और कोविड -19 महामारी की एकाधिक लहरों के जवाब में केंद्रीय बैंकों द्वारा फ्रंट-लोडेड मौद्रिक नीति सामान्यीकरण के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था संबंधी संभावना काफी अनिश्चितता से घिरा हुआ है।
- वैश्विक स्पिलओवर से चुनौतियों के बावजूद, भारतीय अर्थव्यवस्था बहाली के पथ पर बनी हुई है, हालांकि मुद्रास्फीति के दबाव, बाहरी स्पिलओवर और भू-राजनीतिक जोखिम से यह परिलक्षित होता है कि इसके सावधानीपूर्वक संचालन और बारीकी से निगरानी की आवश्यकता है।
- बैंकों के साथ-साथ गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों के पास आघातों को झेलने के लिए पर्याप्त पूंजी बफर हैं।
- अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का जोखिम भारित आस्तियों की तुलना में पूंजी अनुपात 6.7 प्रतिशत की नई ऊंचाई पर पहुँच गया, जबकि मार्च 2022 में उनका सकल गैर-निष्पादित आस्ति अनुपात गिरकर 5.9 प्रतिशत पर छह वर्ष के निचले स्तर पर आ गया।
- ऋण जोखिम के लिए समष्टि दबाव परीक्षण से यह पता चलता है कि एससीबी, दबाव भरी गंभीर परिदृश्यों के अंतर्गत भी न्यूनतम पूंजी आवश्यकताओं का पालन करने में सक्षम होंगे।
श्रीलंका में आर्थिक संकट का भारत पर क्या असर ?
श्रीलंका में आर्थिक संकट के कारण अगर कोलंबो बंदरगाह के सामान्य काम-काज पर असर पड़ा तो ये भारत के लिए चिंता की बात होगी..क्योंकि भारत में कंटेनर परिवहन का 30 फीसद हिस्सा और भारत आने जाने वाले 60 फीसदी जहाज कोलंबो बंदरगाह से होकर गुजरते है..
यहा श्रीलंका और भारत के उत्पादों के निर्यात का अहम ठिकाना है..
क्योंकि हर साल भारत से उसे क़रीब 4 अरब डॉलर के सामान का निर्यात होता है. आर्थिक संकट और गहराने की सूरत में भारत के निर्यातकों पर भी इसका गहरा असर पड़ेगा और उन्हें अपने उत्पादों के लिए दूसरे बाज़ार तलाशने होंगे.
व्यापार के अलावा भारत ने श्रीलंका के रियल एस्टेट, निर्माण क्षेत्र, पेट्रोलियम रिफाइनिंग जैसे क्षेत्रों में भी निवेश कर रखा है.इस संकट का सभी पर बुरा प्रभाव पड़ने का डर है..
व्यापार, निवेश और भू-राजनीति के अलावा, श्रीलंका के मौजूदा आर्थिक संकट से पैदा होने वाली राजनीतिक अस्थिरता भी भारत के लिए फ़िक्र की बड़ी वजह बन सकती है..पड़ोसी के इस आर्थिक संकट से भारतभी अछूता नहीं रहने वाला है। भुखमरी और बेरोजगारी को देख लंकावासी भारत में शरण मांग रहे हैं। इस बुरे वक्त से श्रीलंका को बाहर निकालने के लिए भारत भी हर मुमकिन कोशिश कर रहा है..
श्रीलंका में आर्थिक संकट के कारण
देश विदेश में आर्थिक संकट की खबरें कई बार सुनी है अब उसी आर्थिक संकट से श्रीलंका गुजर रहा है..करीब दो महीनें से श्रीलंका में आर्थिक संकट पनप रहा..आखिर क्या कारण है इसका ये सवाल सबसे के मन में आता होगा..इस आर्थिक संकट की शुरूवात कहा से हुई..
दरअसल विशेषज्ञों के मुताबिक पिछले एक दशक के दौरान श्रीलंका सरकार ने सार्वजनिक सेवाओं के लिए विदेशों से बड़ी रकम कर्ज के रूप में ली..
देश की अर्थव्यवस्था पर चोट
जिससे देश पर कर्ज बढ़ता चला गया..बढ़ते कर्ज के अलावा कई दूसरी चीज़ों ने भी देश की अर्थव्यवस्था पर चोट की है..जिसमें भारी बारिश जैसी प्राकृतिक आपदाओं से लेकर मानव निर्मित तबाही तक शामिल है..साथ ही रासायनिक उर्वरकों पर सरकार का प्रतिबंध भी इसका बड़ा कारण है..जिससे किसानों की फसलें बर्बाद हो गई..और बढ़ता कर भी इसका मुख्य कारण रहा..
हालांकि अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने करों में कटौती की एक नाकाम कोशिश की..लेकिन उनका ये कदम उल्टा पड़ा गया और सरकार के राजस्व पर बुरा असर पड़ा..इसके चलते रेटिंग एजेंसियों ने श्रीलंका को लगभग डिफ़ॉल्ट स्तर पर डाउनग्रेड कर दिया जिसका मतलब कि देश ने विदेशी बाज़ारों तक पहुंच खो दी..
सरकारी कर्ज़ का भुगतान करने के लिए फिर श्रीलंका को अपने विदेशी मुद्रा भंडार का रुख करना पड़ा..जिसके चलते इस साल भंडार घटकर 2.2 बिलियन डॉलर हो गया, जो 2018 में 6.9 बिलियन डॉलर था..इससे ईंधन और अन्य ज़रूरी चीज़ों के आयात पर असर पड़ा और कीमतें बढ़ गईं..
इन सबसे ऊपर सरकार ने मार्च में श्रीलंकाई रुपया फ्लोट किया यानी इसकी क़ीमत विदेशी मुद्रा बाज़ारों की मांग और आपूर्ति के आधार पर निर्धारित की जाने लगी..
ये कदम मुद्रा का अवमूल्यन करने के मक़सद से उठाया गया, ताकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कर्ज़ मिल जाए..हालांकि अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले रुपये की गिरावट ने आम श्रीलंकाई लोगों के लिए हालात और ख़राब कर दिए..