Lohri 2025: लोहड़ी का पर्व हर साल मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। यह दिन किसानों के लिए खास होता है क्योंकि वे अपनी नई फसलों को अग्नि में समर्पित कर सूर्यदेव का धन्यवाद करते हैं। इसके बाद सभी लोग मिलकर गीत गाते हैं और खुशी मनाते हैं।
लोहड़ी का मतलब क्या है
लोहड़ी नाम का भी एक गहरा मतलब है। इसमें ‘ल’ का मतलब है लकड़ी, ‘ओह’ का मतलब है उपले, और ‘ड़ी’ का मतलब है रेवड़ी। इस दिन लोग मूंगफली, तिल, गुड़, गजक, और मक्के को लोहड़ी की आग पर से वारकर खाते हैं। इस त्योहार की खासियत यह है कि 20 से 30 दिन पहले से बच्चे लकड़ी और उपले इकट्ठा करने लगते हैं। मकर संक्रांति से एक दिन पहले इन लकड़ियों और उपलों को जलाकर त्योहार मनाया जाता है। इस प्रक्रिया को चर्खा चढ़ाना कहते हैं।
क्यों मनाई जाती है लोहड़ी
लोहड़ी के त्योहार के पीछे कई कहानियां जुड़ी हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी दुल्ला भट्टी की है। दुल्ला भट्टी उस समय के एक नायक थे जिन्होंने कई लड़कियों को अमीर सौदागरों से बचाया था। उस दौर में गरीब लड़कियों को अमीर घरों में बेच दिया जाता था। दुल्ला भट्टी ने उनका बचाव किया और उनकी शादियां करवाकर उनका जीवन सुरक्षित किया। इस कारण, लोहड़ी पर दुल्ला भट्टी के सम्मान में गीत गाने की परंपरा है।
आग जलाने की परंपरा
लोहड़ी की सबसे बड़ी खासियत है आग जलाना। माना जाता है कि यह आग नई फसलों और परिवार की सुख समृद्धि के लिए होती है। इस आग के चारों ओर लोग घूमते हैं, तिल, गुड़, और रेवड़ी चढ़ाते हैं, और खुशी में लोकगीत गाते हैं। यह परंपरा रिश्तों को मजबूत करने और साथ में खुशी बांटने का संदेश देती है।