शामली: शामली जिला पश्चिमी यूपी के जाट लैंड का एक महत्वपूर्ण जिला है। साल 2011 में शामली को मायावती सरकार ने मुजफ्फरनगर से अलग कर नया जिला बनाया गया था। हालांकि, उस वक्त मायावती सरकार ने जिले का नाम प्रबुद्धनगर रखा था जिसको बाद में अखिलेश यादव सरकार में शामली कर दिया गया था। जिला बनने से पहले शामली तहसील हुआ करता था और ये मुजफ्फरनगर के अंतर्गत आता था। इस इलाके में गन्ने की खेती बड़े पैमाने पर होती है। शामली जिले में 3 विधानसभा शामली, कैराना और थाना भवन सीट है।
थाना भवन- यह सीट सबसे अहम सीट मानी जाती है। इसी वजह से सभी राजनीतिक दलों की नजरें इस सीट पर खासतौर पर रहती हैं। इस सीट को जीतने के लिए सभी राजनीतिक दलों ने अपनी बिसात बिछाना शुरू कर दी है। ये सीट मुस्लिम बहुल सीट है साथ ही इस सीट पर जाट वोटर्स का भी अच्छा खासा दबदबा है और दोनों का गठजोड़ किसी की भी नैय्या को पार लगा सकता है। 2012 और 2017 में लगातार दो बार से इस सीट पर बीजेपी कमल खिला रही है। योगी सरकार में गन्ना मंत्री सुरेश राणा ने लगातार दो बार इस सीट पर पर जीत दर्ज कर चुके हैं।
लेकिन इस बार अन्य विपक्षी दलों ने इस सीट पर बीजेपी के तिलिस्म को भंग करने के लिए कमर कस ली है। 10 फरवरी को इस सीट पर मतदान होना है।बीजेपी ने तीसरी बार इस सीट से सुरेश राणा पर दांव लगाया है, बसपा ने जहीर मलिक, सपा-आरएलडी गठबंधन ने असरफ अली, कांग्रेस ने सत्या संयम सैनी को टिकट दिया है।
इस सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो बीजेपी और सपा के उम्मीरदवार इस सीट से सबसे अधिक तीन-तीन बार विजय हुए हैं। 1993 में बीजेपी ने खाता खोला और जगत सिंह ने इस सीट पर जीत दर्ज की। 1996 में सपा के आमिर आलम खान विधायक बने। 2000 में हुए उपुचनाव में सपा के जगत सिंह को जीत मिली। 2002 के चुनाव फिर सपा काबिज हुई और किरन पाल विधायक बने। 2007 में आरएलडी के अब्दुल वारिश खान जीते। 2012 और 2017 में लगातार दो बार सुरेश राणा विधायक बने।
सीट का जातीय समीकरण के चलते मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार
उत्तर प्रदेश के शामली जनपद की थानाभवन विधानसभा सीट की गिनती मुस्लिम बहुल सीटों में होती है, थानाभवन विधानसभा सीट पर कुल 3,10,389 मतदाता हैं। जिसमें अनुमानित तौर पर सबसे ज्यादा 93,000 मुस्लिम मतदाता हैं। वहीं 42,000 जाट है. जबकी 60,000 दलित, 20,000 ठाकुर, 14,000 ब्राम्हण, 11,000 कश्यप और 21,000 सैनी मतदाता हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो अगर जाट मतदाताओं ने रालोद पर भरोसा जताया तो रालोद-सपा गठबंधन को इस सीट पर फायदा हो सकता है। हालांकि बसपा की तरफ से मुस्लिम समुदाय को टिकट दिए जाने के बाद मुकाबले के त्रिहकोणीय होने के आसार हैं।
शामली- शामली विधानसभा सीट उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है। विधानसभा शामली से अभी तक दो बार जाट विधायक बने हैं। नए परिसीमन में वर्ष 2012 में जिले की शामली विधानसभा अस्तिव में आई। पहली बार शामली विधानसभा से पंकज मलिक कांग्रेस से विधायक चुने गए। पंकज मलिक ने समाजवादी पार्टी के वीरेंद्र सिंह को हराया था। अब पंकज मलिक समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं। पंकज एक जाट नेता हैं और इस सीट पर सबसे ज्यादा मतदाता जाट और मुस्लिम हैं। हालांकि 2017 में भाजपा की लहर का असर देखने को मिला और तेजेंद्र निर्वाल ने जीत दर्ज की और विधायक बने।
शामली शहर में रेलवे फाटक पर फ्लाईओवर का नहीं बनना इस बार एक बड़ा मुद्दा बन सकता है यहां रेलवे फाटक नहीं होने से करीब 30 से 45 मिनट तक का जाम लग जाता है जिससे लोगों को बेहद परेशानी का सामना करना पड़ता है। हर चुनाव से पहले नेता इस समस्या का समाधान करने का वादा करते हैं लेकिन सच बात ये है कि अभी तक इस समस्या के समाधान के लिए भी काफी समय से राजनीतिक दलों पर दबाव बनाते रहे हैं। गन्ने का रेट भी यहां के किसानों का बड़ा मुद्दा है और बिजली के महंगे रेट से भी लोगों को परेशानी है।
कैराना- कैराना विधानसभा सीट यूपी की चर्चाओं में रहने वाली सीट है, जहां 2017 में समाजवादी पार्टी के नाहिद हसन ने बीजेपी की मृगांका सिंह को 21162 वोटों के मार्जिन से हरा कर जीत दर्ज की थी। 2017 में कैराना में कुल 47.26 प्रतिशत वोट पड़े। साल 2012 में इस सीट से बीजेपी के हुकुम सिंह ने कमल खिलाया था। हुकुम सिंह का इस क्षेत्र में अच्छा खासा दबदबा माना जाता है। मृगांका सिंह हुकुम सिंह के बेटी हैं। 2017 में बीजेपी ने मृगांका सिंह को उम्मीदवार बनाया था लेकिन बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था। इस बार फिर एक बार बीजेपी ने मृगांका सिंह को टिकट दिया है और भरोसा जताया है।
(आकांक्षा त्रिपाठी)