Cancer Medicine: भारत में कैंसर की दवाओं की कीमतें लोगों के जीवन पर गहरा असर डालती हैं। हर साल लाखों लोग महंगे मेडिकल खर्चों के कारण गरीबी में चले जाते हैं। दवाओं की खरीद पर औसतन आधा मेडिकल खर्च होता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार के लिए दवाओं की कीमतों को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है।
कैंसर की दवाओं की कीमतें कम करने का कदम
हाल ही में, नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) ने तीन कैंसर की दवाओं – ट्रास्टुजुमैब, ओसिमर्टिनिब, और डुरवालुमैब – की कीमतें कम करने का आदेश दिया है। केंद्रीय बजट 2024-25 में इन दवाओं को कस्टम ड्यूटी फ्री किया गया था और वित्त मंत्रालय ने इन दवाओं पर जीएसटी को 12% से घटाकर 5% कर दिया है। इसका उद्देश्य इन दवाओं की अधिकतम खुदरा कीमत (MRP) को कम करना है।
दवाओं की कीमत कैसे तय होती है?
भारत में दवाओं की कीमतें तय करने के लिए सरकार कई नियमों का पालन करती है। नेशनल लिस्ट ऑफ एसेंशियल मेडिसिन्स (NLEM) नाम की एक सूची बनती है, जिसमें वे दवाएं शामिल होती हैं जो जन स्वास्थ्य के लिए आवश्यक मानी जाती हैं। इस सूची में शामिल दवाओं पर ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (DPCO) लागू होता है, जो उनकी कीमतें सरकार द्वारा नियंत्रित करता है।
NLEM और दवाओं की सूची का अद्यतन
हर कुछ साल में स्वास्थ्य मंत्रालय और विशेषज्ञों द्वारा NLEM को अपडेट किया जाता है। वर्तमान में, NLEM 2022 के अनुसार 384 दवाएं और फार्मुलेशन प्राइस कंट्रोल सिस्टम में आती हैं। DPCO के पैरा 19 के तहत सरकार आवश्यक चिकित्सा सामग्री की कीमतों पर नियंत्रण रखने का अधिकार रखती है। इस प्रावधान का उपयोग कार्डियक स्टेंट और नी इम्प्लांट जैसी चीजों की कीमतें नियंत्रित करने में किया गया है।
मार्केट प्राइस का निर्धारण
भारत में दवाओं की अधिकतम कीमत निर्धारित करने के लिए मार्केट बेस्ड प्राइसिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है। इसका मतलब है कि यदि किसी दवा का बाजार में 1% या उससे अधिक शेयर है, तो उसकी औसत कीमत और 16% रिटेल मार्जिन जोड़कर उस दवा की अधिकतम कीमत तय की जाती है। इस प्रक्रिया से दवाओं की कीमतें अत्यधिक नहीं बढ़ती और कंपनियों को भी मुनाफा होता है।
NPPA की भूमिका
नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) दवाओं की कीमतों पर निगरानी रखती है। जब कोई आवश्यक दवा महंगी होती है, तो NPPA उसके दाम घटाने का आदेश देती है। इसके अलावा, सरकार दवाओं पर लगने वाले टैक्स को कम करके भी दवाओं की कीमतों को कम करती है, जैसे कि हाल ही में कैंसर की तीन दवाओं पर जीएसटी घटाने का निर्णय।
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लागत आधारित से बाजार आधारित प्रणाली में बदलाव
पहले दवाओं की कीमतें लागत आधारित सिस्टम के अनुसार तय होती थीं, जिसमें दवा बनाने की लागत में एक छोटा मुनाफा जोड़कर कीमत तय की जाती थी। लेकिन 2013 में इसे बदलकर बाजार आधारित मॉडल पर कर दिया गया, जिससे दवाओं की कीमतों को बाजार की मांग और आपूर्ति के अनुसार तय किया जाने लगा।
इस प्रकार, भारत में दवाओं की कीमतें नियंत्रित करने के लिए कई उपाय और प्रावधान हैं, जिनका उद्देश्य दवाओं को सस्ती और उपलब्ध बनाना है। कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों की दवाओं को सस्ता करने के लिए हाल के कदम इस दिशा में महत्वपूर्ण हैं।