कानपुर। नवरात्रि के पावन महिने का आगाज रविवार से हो गया। पूरे शहर के देवी मंदिरों को सजाया गया है। देररात से मंदिरों में भक्तों के आने का सिलसिला शुरू हो गया, जो बदस्तूर जारी है। मंदिरों के कपाट खुलते हुए श्रद्धालु मातारानी के दर पर माथा टेकने के साथ ही पूजा-अर्चना कर मन्नत मांग रहे हैं। कुछ ऐसा ही नजारा कानपुर का बारा देवी मंदिर का है, यहां प्रदेश के कोन-कोने से भक्त पहुंच रहे हैं। मंदिर में चुनरी बांधने की परंपरा सैकड़ों वर्ष से चली आ रही है। ऐसी मान्यता है कि मंदिर परिसर पर भक्त चुनरी बांधते हैं और मनोकामना पूरी होने पर उसे नवरात्रि पर खोलते हैं। इतना ही नहीं देवी के नाम से 9 मोहल्लों के साथ एक भी चलता है।
कोई आग से खेलता है तो कोई अपने गाल
30 मार्च से नवरात्र का शंखनाद हो गया। चैत्र के नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा की जाती है। ऐसे में कानपुर के साउथ में स्थित बारा देवी मंदिर में सुबह से भक्तों का तांता लगा हुआ हैं। इस मंदिर का सटीक इतिहास तो किसी को नहीं पता, लेकिन कानपुर और आस-पास के जिलों में रहने वाले श्रद्धालुओं की मातारानी के प्रति गहरी आस्था है। बारा देवी मंदिर में आने वाला हर भक्त अपनी मनोकामना मांग कर चुनरी बांधता है, तो कहीं पर श्रद्धालु मां को रिझाने के लिए खतरनाक करतब भी कर दिखाते हैं। कोई आग से खेलता है तो कोई अपने गाल के आरपार नुकीली धातु पार कर दिखाता है।
मूर्ति लगभग 15 से 17 सौ साल पुरानी
मंदिर के पुजारी का कहना है इससे जुड़ी एक कथा बेहद प्रसिद्ध है। एक बार पिता से हुई अनबन पर उनके कोप से बचने के लिए घर से एक साथ 12 बहनें भाग गई। सारी बहनें किदवई नगर में मूर्ति बनकर स्थापित हो गई। पत्थर बनी यही 12 बहनें कई सालों बाद बारा देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुई। कहा जाता है कि बहनों के श्राप से उनके पिता भी पत्थर हो गए थे। असल में इस मंदिर का इतिहास क्या है, इसकी सटीक जानकारी किसी को नहीं है। ंदिर के लोगों की मानें, तो एएसआई की टीम ने जब इसका सर्वेक्षण किया था और यह पाया था कि मंदिर की मूर्ति लगभग 15 से 17 सौ साल पुरानी है।
इलाकों के नाम बारा देवी मंदिर पर ही रखे गए
कानपुर दक्षिण के ज्यादातर इलाकों के नाम बारा देवी मंदिर पर ही रखे गए हैं। इनमें बर्रा 1 से लेकर बर्रा 9 तक के अलावा बिन्गवा और बारासिरोही शामिल हैं। वहीं बर्रा विश्व बैंक का नाम भी देवी के नाम पर ही रखा गया है। मंदिर के पुजारी मंदिर में जिन दंपत्ति को संतान सुख की प्राप्ती नहीं होती। वह मां के दर पर आते हैं और चुनरी बांध कर मन्नत मांगते हैं। मातारानी की कृपा से उनके आंगन में किलकारियों की गूंज सुनाई देती है। अगले नवरात्रि पर बच्चे का पहला मंडन मंदिर परिसर पर ही होता है। मुंडन के बाद दंपत्ति चुनरी खोल लेते हैं।
चुनरी का खास रहस्य
बारा देवी मंदिर में आने वाला हर भक्त अपनी मनोकामना मांग कर चुनरी बांधता है। मन्नत पूरी होने पर वह चुनरी को खोल देता है। मातारानी के दर्शन व मन्नत के तौर पर चुनरी बांधने के लिए देश के अलावा नवरात्रि में विदेश से भी भक्त आते हैं। सुबह आरती के बाद मंदिर के पट खोल दिए जाते हैं। पुजारी की मानें तो नवरात्रि पर हरदिन करीब एक लाख से ज्यादा भक्त मां दर पर माथा टेकते हैं और चुनरी बांधते हैं। भक्त कमल मिश्रा बताते हैं कि वह पिछले बीस सालों से मातारानी के दर पर आते हैं और उनकी कृपा से जीवन में कभी संकट नहीं आया।
अष्टमी के दिन निकलते हैं जवारे
नवरात्र की अष्टमी तिथि पर श्रद्धालु मां बारा देवी को जवारा निकालते हैं। मंदिर के आसपास आस्था का सैलाब उमड़ता है। इस दौरान मां काली और भगवान शिव के तांडव नृत्य को देख लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। बरादेवी को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालु खतरनाक करतब भी कर दिखाते हैं। कोई आग से खेलता है तो कोई अपने गाल के आरपार नुकीली धातु पार कर दिखाता है। नाचते गाते श्रद्धालुओं का जगह-जगह स्वागत कर फूल बरसाए जाते हैं। यहां बड़ों के साथ बच्चों और महिलाओं ने भी सांग लगाती हैं।