Dihuli Massacre Case उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में 44 साल पहले हुए दिहुली नरसंहार मामले में अदालत ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। 24 दलितों की निर्मम हत्या के इस मामले में कोर्ट ने तीन दोषियों,रामसेवक, कप्तान सिंह और रामपाल को फांसी की सजा सुनाई। विशेष न्यायाधीश इंदिरा सिंह ने तीनों अपराधियों को दोषी करार देते हुए उन पर 50-50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया।
सजा सुनते ही रोने लगे दोषी
फैसला सुनते ही तीनों दोषी कोर्ट में फूट-फूटकर रोने लगे। इस मामले में कुल 17 आरोपी थे, जिनमें से 13 की मौत हो चुकी है। वहीं, एक अन्य आरोपी ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना अभी भी फरार है। कोर्ट ने उसके खिलाफ स्थायी वारंट जारी कर दिया है।
डकैतों ने गोलियों से मौत दी
18 नवंबर 1981 की शाम को दिहुली गांव में संतोष और राधे के गिरोह ने आतंक मचा दिया था। एक केस में गवाही देने से नाराज इन डकैतों ने पूरे गांव पर गोलियां बरसाईं, जिसमें 24 निर्दोष लोगों की जान चली गई। इस घटना में दो नाबालिग और सात महिलाएं भी मारी गईं।
हत्या के बाद डकैतों ने गांव में जमकर लूटपाट भी की। बदमाश पुलिस की वर्दी पहनकर आए थे, जिससे लोग संभल ही नहीं पाए और गांव में दहशत फैल गई।
गवाहों की गवाही से फंसे अपराधी
इस हत्याकांड के गवाह लायक सिंह, वेदराम, हरिनारायण, कुमर प्रसाद और बनवारी लाल थे, लेकिन अब ये सभी इस दुनिया में नहीं हैं। हालांकि, उनकी गवाही से अभियोजन पक्ष को मजबूती मिली। खासकर कुमर प्रसाद की चश्मदीद गवाही ने केस को निर्णायक मोड़ दिया।
अदालत में ऐसे साबित हुआ जुर्म
रामसेवक और कप्तान सिंह को हत्या (धारा 302), जानलेवा हमला (धारा 307), घातक हथियारों से लैस होकर उपद्रव मचाने (धारा 148), गैरकानूनी सभा (धारा 149), घर में घुसकर अपराध करने (धारा 449 और 450) का दोषी पाया गया।
रामपाल पर आपराधिक साजिश (धारा 120बी), हत्या (धारा 302) और अपराधियों को शरण देने (धारा 216ए) का दोष साबित हुआ।
प्रधानमंत्री को करना पड़ा था दौरा
इस नरसंहार से सरकार भी हिल गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, गृह मंत्री बीपी सिंह और मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी गांव पहुंचे थे। विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने पीड़ितों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए पदयात्रा भी की थी।
आज, 44 साल बाद, इस मामले में अदालत का फैसला आया है। हालांकि, इस दर्दनाक घटना की यादें अब भी कई लोगों के दिलों में जिंदा हैं।