कानपुर। स्वतंत्रता आंदोलन में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लोगों को अधिक से अधिक जोड़ने के लिए स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने धर्म का सहारा लिया था। उन्होंने सन् 1894 में गणेशोत्सव पर्व सार्वजनिक रूप से मनाने की परंपरा महाराष्ट्र से शुरू की। बताया जाता है कि गणेशोत्सव की नींव आजादी की लड़ाई के दौरान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने रखी थी। 1890 के दशक में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान तिलक अक्सर ये सोचते थे कि किस तरह से आमजन को एकजुट किया जाए। इसके लिए उन्होंने धार्मिक मार्ग को चुना था।
इसके बाद उनका कारवां आगे बढ़ता गया और कानपुर में भी लोग उनके साथ जुड़ते गये। कानपुर के लोगों के आग्रह पर घंटाघर में गणेश मंदिर बनवाने की सहमति बनी और तिलक ने भूमि पूजन भी कर दिया, लेकिन ब्रिटिश हुकूमत विरोध में आ गई। इस पर तिलक ने तरकीब निकाली और मकान के रूप में गणेश मंदिर का निर्माण करवाया।
महाराष्ट्र में पेशवाओं ने लंबे समय से गणपति की पूजा की परंपरा शुरू कर दी थी। इस बीच तिलक के मन में खयाल आया कि क्यों न गणेशोत्सव को घरों की बजाय सार्वजनिक स्थल पर मनाया जाए, तब 1894 में इस महापर्व की नींव रखी गई।
सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाने का श्रेय बाल गंगाधर तिलक को दिया जाता है। इसके बाद उन्होंने गणेशोत्सव को अखिल भारतीय पटल पर ले जाने का मन बनाया और देशभर में लोग धीरे धीरे उनके साथ जुड़ने लगे। इसी क्रम में कानपुर के लोगों ने भी घंटाघर में गणेश मंदिर बनाने की इच्छा बाल गंगाधर तिलक से जाहिर कर दी और अनुरोध पर तिलक ने मंदिर का भूमि पूजन भी कर दिया, लेकिन ब्रिटिश हुकूमत ने विरोध कर दिया।
कानपुर में धूमधाम से गणेशोत्सव की परंपरा शुरू हुई
मंदिर के संरक्षक खेमचंद्र गुप्त ने बताया कि उनके बाबा लाला रामचरण और लाला ठाकुर प्रसाद ने वर्ष 1908 में बाल गंगाधर तिलक के सामने मंदिर निर्माण की इच्छा जाहिर की। जिसके बाद बाल गंगाधर तिलक ने 1918 में शहर आए और मंदिर का भूमि पूजन किया। मंदिर स्थल के पास ही मस्जिद होने के चलते ब्रिटिश हुकूमत ने मंदिर निर्माण पर रोक लगा दी। ऐसे में तिलक ने तरकीब निकाली कि मंदिर तो बनाया जाये लेकिन मंदिर की जगह मकान का रूप दे दिया जाये। इसके बाद उनके निर्देश पर मकान की शक्ल में मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ और अंग्रेजों को भनक तक नहीं लगने पाई। जिसके बाद मकान के रूप में मंदिर का निर्माण वर्ष 1923 में पूरा हो गया। मंदिर में संगमरमर की मूर्ति के अलावा पीतल के गणेश भगवान के साथ उनके बेटे शुभ-लाभ और ऋद्धि- सिद्धि भी स्थापित हैं। मंदिर के दूसरे खंड पर गणेश भगवान के नौ रूपों को स्थापित किया गया है। प्राचीन मंदिर में भगवान गणेश की दस सिर वाली अद्भुत प्रतिभा भी स्थापित है। इसके बाद से कानपुर में धूमधाम से गणेशोत्सव की परंपरा शुरू हो गई जो आज भी जारी है।