लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। जरायम की दुनिया का बेताज बादशाह, जिसके नाम से लोग थर-थर कांपते थे। अंडरवर्ल्ड की दुनिया में उसे नाम दिया डॉन। अपहरण कर वसूली की और बना किडनैपिंग किया। जी हां हम बात कर रहे हैं माफिया डॉन बबलू श्रीवास्तव की, जो करीब 28 सालों से सलाखों के पीछे बंद हैं। अब कोर्ट के इस आदेश से डॉन के दिन बहुरेंगे। अगर सबकुछ ठीक रहा तो बबलू श्रीवास्तव आने वाले दिनों में जेल से बाहर आ सकता है और खूले आसमान के नीचे बची जिंदगी गुजार सकता है।
28 साल से जेल में बंद है बबलू श्रीवास्तव
बबलू श्रीवास्तव 28 सालों से बरेली की जेल में बंद है। उम्रकैद की सजा काट रहा डॉन समय से पहले जेल से रिहाई चाहता है। डॉन पर हत्या और अपहरण समेत 42 मामलों में दर्ज हैं। बबलू श्रीवास्तव ने अपने को रिहा किए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। जिस पर कोर्ट ने सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को 1993 के हत्या मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे माफिया ओमप्रकाश श्रीवास्तव उर्फ बबलू श्रीवास्तव की समय पूर्व रिहाई पर दो महीने के भीतर विचार करने का निर्देश दिया है। अब फैसला योगी सरकार को करना है। जानकार बताते हैं कि जेल में बबलू का आचरण ठीक रहा है। ऐसे में सरकार उसे रिहा कर सकती है।
बबलू श्रीवास्तव बनना चाहता था आईएएस
बबलू की शुरुआती जिंदगी पर गौर करें तो वह कभी डॉन बनना नहीं चाहता था। पढ़ने में दिमाग बहुत तेज था। वह तो आईएएस अफसर बनने का ख्वाब देख रहा था। लेकिन जब बड़े भाई को सेना की वर्दी पहने देखा तो उसकी चमक से बबलू का मन बदल गया। फिर वह भी सेना की वर्दी पहनने का सपना देखने लगा। परिवार ने पढ़ाई के लिए बबलू को गाजीपुर से लखनऊ भेज दिया। वहां पर उसने लॉ कॉलेज में एडमिशन ले लिया साथ ही सेना की तैयारी करने लगा। कॉलेज में एक दिन अचानक कुछ ऐसा हुआ, जिसने बबलू श्रीवास्तव की सोच और जिंदगी बदल दी।
एक घटना ने बबलू को बना दिया अपराधी
दरअसल बात 1982 की है. बबलू के नीरज जैन नाम के एक दोस्त ने कॉलेज में महामंत्री पद के लिए पर्चा भरा था। दोस्त होने के नाते बबलू भी उसके लिए प्रचार कर रहा था। उन दिनों विरोधी गुट के साथ झगड़े में एक छात्र को चाकू मार दिया गया। इस छात्र को चाकू लगा था वो उस समय जुर्म की दुनिया के जाने-माने नाम अरुण शंकर शुक्ला ’अन्ना’ का करीबी थी। कहा जाता है कि नाराज अन्ना ने बबलू को झूठे केस में फंसाकर जेल की सलाखों के पीछे डलवा दिया। जैसे ही वह जमानत पर बाहर आया तो चोरी के एक और मामले में उसे जेल भिजवा दिया। इस घटना ने बबलू की जिंदगी बदल दी। वह अन्ना से इस कदर खुन्नस खा गया कि बदले की आग में जलने लगा।
बबलू श्रीवास्तव बना जुर्म की दुनिया का किंग
जेल से बाहर आने के बाद बबलू श्रीवास्तव ने अन्ना के विरोधी गैंग से हाथ मिला लिया। उस गैंग को राम गोपाल मिश्र चलाता था। 70-80 के दशक का ये वो दौर था, जब अन्ना और रामगोपाल के बीच दुश्मनी चरम पर थी। हालांकि अन्ना की मां के बीच में पड़ने की वजह से अन्ना और राम गोपाल के बीच की दुश्मनी तो खत्म हो गई। ये बात बबलू को रास नहीं आई. उसने रामगोपाल का गैंग छोड़ अपना खुद का गैंग बना डाला। अपने इस काले धंधे की शुरुआत उसने किडनैपिंग से की। यूपी से लेकर बिहार और महाराष्ट्र तक उसका खौफ था। अपने छोटे-छोटे गैंग के जरिए किडनैपिंग और फिरौती मांगने का काम वह करने लगा। देखते ही देखते दुर्म की दुनिया में वह ’किडनैपिंग किंग’ बन बैठा।
फिर छोड़ा दाउद का साथ
समय के साथ-साथ बबलू के जुर्म की लिस्ट भी बढ़ती जा रही थी। यूपी पुलिस उसके पीछे थी, पकड़़ा न जाए, ये सोचकर वह नेपाल भाग गया। नेपाल में बबलू श्रीवास्तव ने डॉन मिर्जा दिलशाद बेग से हाथ मिला लिया। उसके कहने पर वहां से दुबई भाग गया। वहां पर वह अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के संपर्क में आया। वह दाऊद के साथ मिलकर विदेशों से अवैध हथियार लाने-लेजाने का काम करने लगा। साल 1993 में हुए मुंबई धमाकों के बाद दाऊद उसने दाऊद का साथ छोड़ दिया। साल 1995 में उसे सिंगापुर में गिरफ्तार कर लिया गया। तब से वह बरेली की जेल में बंद है।
कोर्ट ने दिए आदेश
बबलू श्रीवास्तव ने अपनी रिहाई की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की। जिस पर कोर्ट ने सुनवाई की। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति नोंगमेइकापम कोटिश्वर सिंह की पीठ ने राज्य सरकार को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), 2023 की धारा 473 की उप-धारा (1) के तहत छूट देने का अनुरोध करने वाली याचिका पर विचार करने का निर्देश दिया। श्रीवास्तव ने संयुक्त प्रांत कैदी रिहाई परिवीक्षा अधिनियम, 1938 की धारा 2 के तहत राहत मांगी लेकिन याचिका खारिज कर दी गई। शीर्ष अदालत ने कहा कि 1938 अधिनियम की धारा 2 सीआरपीसी की धारा 432 या बीएनएसएस की धारा 473 से अधिक कठोर है। इसने कहा कि जब तक राज्य सरकार यह निष्कर्ष दर्ज नहीं कर लेती कि वह किसी दोषी के पूर्ववृत्त या जेल में उसके आचरण से संतुष्ट है और रिहाई के बाद उसके अपराध से दूर रहने तथा शांतिपूर्ण जीवन जीने की संभावना है, तब तक दोषी को रिहा नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने सरकार को दिया दो माह का समय
न्यायालय ने कहा, जहां तक 1938 अधिनियम की धारा 2 के तहत राहत से इनकार करने का सवाल है, हम राज्य सरकार द्वारा पारित आदेश में गलती नहीं पा सकते। बीएनएसएस की धारा 473 का दायरा 1938 अधिनियम की धारा 2 से पूरी तरह से अलग है। शीर्ष अदालत ने 8 जनवरी को एक आदेश में राज्य सरकार को बीएनएसएस की धारा 473 की उप-धारा (1) के तहत छूट देने के लिए याचिकाकर्ता के मामले पर ‘‘जल्द से जल्द’’ विचार करने का निर्देश दिया। आदेश में कहा गया, चूंकि याचिकाकर्ता 28 साल से अधिक की वास्तविक सजा काट चुका है, इसलिए याचिकाकर्ता के मामले पर विचार किया जाए और अधिकतम दो महीने की अवधि के भीतर उचित आदेश पारित किया जाए।