कानपुर ऑनलाइन डेस्क। Story of Kanpur’s Bivighar on the occasion of Republic Day 2025 भारत की आजादी में पुरूषों के कंधे से कंधा मिलाकर महिलाओं ने अहम रोल निभाया। अंग्रेजों की गोलियां सीने में खाई। जिंदा चिता में जलाई गई। फांसी के फंदे पर भी झूली। पर डरी नहीं। जंग-ए-आजादी में जब भी मौका मिला, तब आगे बढ़कर अपना कर्तव्य निभाया। ऐसी ही एक जांबाज महिला क्रांतिकारी हुसैनी खानम बेगम थीं, जिन्होंने अंग्रेजों से बेइंतहा नफरत करती थीं। मौका मिला तो उन्होंने एक साथ 3 अंग्रेज अफसर, 124 बच्चे और 73 महिलाओं की तलवार से सिर काट कर हत्या कर दी। जांबाज योद्धा ने सभी के शवों को कुएं के अंदर दफन करवा दिया था। इसे तब कानपुर की बीवीघर कांड नाम दिया गया था। नरसंहार से लंदन हिल गया था। बागियों के खात्में के लिए एक लाख से अधिक सैनिकों को कानपुर की घेराबंदी के लिए भेजा गया।
बिठूर से फूंका गया जंग-ए-आजादी का बिगुल
कानपुर का बिठूर कस्बे को क्रांतिकारियों का गढ़ कहा जाता है। 1857 को यहीं से जंग-ए-आजादी का बिगुल फूंका गया था। यहां मराठा क्रांतिकारी नानाराव पेशवा ने अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ लड़ाई का ऐलान किया, जो पूरे देश में आग की तरह फैल गया। इस दौरान सैकड़ों सपूत सिर पर कफन बांधकर निकल पड़े और जो भी आया उसे मारते गए। ऐसे ही एक इलाका शहर के बीचो-बीच बने नानाराव पार्क है, जिसका असली नाम तात्या टोपे मेमोरियल गार्डन है। यहीं से नाना के सैनिकों ने जंग-ए-आजादी की लड़ाई की शुरूआत की थी और दुश्मनों को सबक सिखाया था। नाना के जांबाज महिला सिपाही हुसैनी खानम बेगम ने अंग्रेज अफसर, उनकी पत्नियों और बच्चों की हत्या कर शवों को कुएं के अंदर दफन कर दिया था। इसी से गुस्साए अंग्रेजों ने यहीं पर बरगद की टहनियों पर 135 क्रांतिकारियों को लगटा दिया था। कुआं और बरगद तो अब पार्क के अंदर नहीं रहा, लेकिन वह निशानियां आज भी यहां मौजूद हैं।
बाद में लोग इसे बीवीघर कहने लगे
शहर में जहां आज फूलबाग है, वहां पर बीबीघर नाम का एक छोटा सा भवन था। इसे एक अंग्रेज अफसर ने अपनी हिंदुस्तानी बीबी (प्रेयसी) के लिए बनवाया था, जिसे बाद में लोग बीबीघर कहने लगे। इसमें छह गज लंबा आंगन था। इसके दोनों ओर 20 फीट लंबे व 16 फीट चौड़े दो कमरे थे। इन कमरों के सामने बरामदे थे। कमरों के दोनो ओर स्नानघर बने थे। इसके परिसर में ही एक कुआं भी था। 1857 की क्रांति से पहले तक बीबीघर में एक यूरेशियन परिवार रहता था जो विद्रोह का बिगुल बजते ही चला गया था। 27 जून 1857 को सत्तीचौरा घाट हत्याकांड मे बचाए गए अंग्रेज पुरूष, मलिला और बच्चों को सवादा कोठी से लाकर बीबीघर में रखा गया था। इतिहासकारों के मुताबिक उस समय बीबीघर मे तीन अंग्रेज अफसर, 73 महिलाएं व 124 बच्चे थे। इनकी देखभाल और सुरक्षा का जिम्मा पेशवा बाजीराव द्वितीय के आश्रय में रहीं बेगम हुसैनी खानम को सौंपा गया। अंग्रेजों की सुरक्षा के लिए नाना साहब पेशवा के सैनिकों का पहरा लगा दिया गया।
बुलवाए जल्लाद और सभी का किया कत्ल
अंग्रेजों ने नानाराव का हराने के लिए 15 जुलाई 1857 को जनरल हैवलाक सेना के साथ कानपुर के लिए रवाना कर दिया। जंग हुई और आखिरकार 17 जुलाई 1857 को अंग्रेजी फौजों ने कानपुर पर पूरी तरह कब्जा कर लिया। नाना साहब 16 जुलाई की रात में ही कानपुर से पलायन कर गए। इस घटना से गुस्साई बेगम हुसैनी खानम ने पांच जल्लाद बुलाए। खुद तलवार थामी और जल्लादों के साथ मिलकर रात को बीबीघर में बंद अंग्रेजों का कत्ल कर दिया। सभी के शव अहाते के कुएं मे डलवा दिए गए। इसके बाद अंग्रेजों ने बीबीघर को ढहा दिया और कुएं को पाट दिया। वर्तमान में यहां तात्याटोपे की प्रतिमा स्थापित है। इतिहासकार बताते हैं कि, मेरठ से शुरू हुए 1857 विद्रोह की आग कानपुर तक पहुंच गई थी। क्रांतिकारियों के लगातार हमले से अंग्रेजों ने कानपुर को छोड़ दिया था। कानपुर का नानाराव ने आजाद भी करा लिया। नवाबगंज को कलेक्टर घोषित किया। कलेक्टर से लेकर जज तक की नियुक्ति भी कर दी थी।
135 क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाया
इतिहासकार बताते हैं, बीबीघर कांड को लेकर इंग्लैंड में भारी आक्रोश था, वहां सड़कों पर होने वाले नाटक में नानाराव के पुतले को फांसी पर लटकाया जाता था। बढ़ते दबाब को देखते हुए अंग्रेजों ने कईबार नकली नानाराव को पकड़कर फांसी पर लटका दिया, लेकिन असली नानाराव कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे। इसी दौरान अंग्रेजी हुकूमत ने करीब 135 क्रांतिकारियों को नानाराव पार्क में मौजूद बरगद के पेड़ पर एक साथ फांसी दे दी। इतिहासकार के मुताबिक, बरगद पर लटकाए गए क्रांतिकारियों के सबूत इतिहास में कहीं भी मौजूद नहीं है। क्रांतिकारियों को पेड़ पर लटकाने का किस अंग्रेज अफसर ने दिया इसका भी कहीं जिक्र नहीं है। इतिहाकार बताते हैं, इतिहास के पन्नों में बीबीघर और सतीचौरा घाट पर हुए नरसंहार का जिक्र तो है, लेकिन बूढ़े बरगद पर क्रांतिकारियों को लटकाए जाने का साक्ष्य कही नहीं है।