लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) पर्व पर सुबह से गंगा के तट पर भक्तों का तांता लगा हुआ है। काशी में सुबह 4 बजे से ही 80 घाटों पर पैर रखने की जगह नहीं है तो वहीं कानपुर के 36 तटों पर भक्त गंगा में डुबकी लगाकर पुण्ण कमा रहे हैं। सबसे अद्भुत नजारा बिठूर के घाट पर दिखा। यहां के ब्रम्हकुटी पर अब तक करीब एक लाख भक्तों ने गंगा स्नान के साथ ब्रम्हा जी की पूजा-अर्चना कर चुके हैं। इनसब के बीच हापुड़ के गढ़ मुक्तेश्वर मेल का एक वीडियो तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। जिसमें दिव्यांग को मेला इंचार्ज इंस्पेक्टर महेंद्र सिंह पीठ पर लादकर गंगा किनारे तक ले गए और स्नान करवाया।
बिठूर में उमड़ा आस्था का सैलाब
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) का त्योहार प्रदेश भर में आस्था विश्वास के साथ मनाया जा रहा है। धार्मिक नगरी अयोध्या, वाराणसी और कानपुर में सुबह से अब तक लाखों श्रद्धालु सरयू और गंगा में डुबकी लगा चुके हैं। स्नान के लिए प्रदेश के अलग-अलग जिलों में सुबह चार बजे से ही लोगों का जमाव घाटों पर शुरू हो गया था। कानपुर के ऐतिहासिक बिठूर घाट पर भक्त देररात से पहुंचना शुरू कर दिया था। सुबह की पहली किरण के वक्त गंगा में डुबकी लगाई और ब्रह्मावर्त घाट भगवान ब्रम्हा जी की पूजा-अर्चना की। बताया जा जाता है कि इसी स्थान पर भगवान ब्रम्हा जी ने सृष्टि की रचना की थी।
पुष्कर के पवित्र सरोवर में भक्तों का तांता
पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा का अवतरण पुष्कर के पवित्र सरोवर में हुआ था। इस दिन ब्रह्माजी ने अपनी रचना शक्ति का उपयोग करके जीवों, पृथ्वी और प्रकृति का सृजन किया था, जिससे सृष्टि में जीवन का संचार हुआ। कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के अवसर पर लाखों की संख्या में तीर्थयात्री ब्रह्मा की नगरी पुष्कर आते हैं। पवित्र पुष्कर सरोवर में स्नान करने के पश्चात ब्रह्मा जी के मंदिर में पूजा-अर्चना कर दीपदान करते हैं और देवों की कृपा पाते है।
बिठूर में ब्रह्मा जी ने की थी सृष्टि की रचना
बिठूर के विषय में कहा जाता है कि ब्रह्मा ने वहीं पर सृष्टि रचना की थी और सृष्टि रचना के पश्चात अश्वमेध यज्ञ किया था। उस यज्ञ के स्मारक स्वरूप उन्होंने घोड़े की एक नाल वहां स्थापित की थी, जो ब्रह्मावर्त घाट के ऊपर अभी तक विद्यमान है। ब्रह्मावर्त घा को बिठूर का सबसे पवित्रतम घाट माना जाता है। भगवान ब्रह्मा के अनुयायी गंगा नदी में स्नान करने बाद खड़ाऊ पहनकर यहां उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने यहां एक शिवलिंग स्थापित किया था, जिसे ब्रह्मेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।
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दर्शनार्थियों की कतारें लगी
कानपुर की तरह ही अयोध्या में पर्व की पूर्व संध्या पर सरयू के स्नान घाट से प्रमुख मंदिरों में दर्शन-पूजन के लिए दर्शनार्थियों की कतारें लगी रहीं। कार्तिक पूर्णिमा स्नान के लिए 10 लाख से अधिक श्रद्धालुओं के उमड़ने की संभावना है। उधर सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए गए हैं। ड्रोन के साथ ही सादी वर्दी में सुरक्षा कर्मी पूरी स्थिति पर नजर रखे हुए हैं। वाराणसी में गंगा घाटों पर भारी भीड़ है। इसी तरह प्रदेश के अन्य जिलों में भी श्रद्धालुओं (Kartik Purnima) ने गंगा में डुबकी लगाई।
सनातन धर्म में विशेष स्थान
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) का सनातन धर्म में विशेष स्थान है। इसे ‘त्रिपुरी पूर्णिमा’ या ‘गंगा स्नान पूर्णिमा’ भी कहा जाता है। इस दिन स्नान, दान, दीपदान और पूजा का विशेष महत्व है। कार्तिक पूर्णिमा तिथि 15 नवंबर 2024 को सुबह 06 बजकर 19 मिनट से शुरू हो रही है। इस तिथि का समापन 16 नवंबर 2024 को सुबह 02 बजकर 58 पर होगा। इस पूर्णिमा पर 30 वर्ष बाद शश राजयोग का निर्माण हो रहा है जो बेहद लाभकारी है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के रूप में मत्स्य अवतार का जन्म हुआ था, जो सृष्टि के विनाश और पुनर्सृजन की कथा से जुड़ा है। भगवान विष्णु के दस अवतारों में पहला अवतार मत्स्य अवतार माना जाता है।
और विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था, जो देवताओं के लिए संकट बन चुका था। त्रिपुरासुर के संहार के बाद देवताओं ने भगवान शिव का धन्यवाद किया और तभी से यह दिन भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना का माना गया है। उसी दिन देवताओं ने शिवलोक यानि काशी में आकर दीपावली मनाई। तभी से ये परंपरा काशी में चली आ रही हैं। माना जाता है कि कार्तिक मास के इस दिन काशी में दीप दान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है। इस दिन शिवजी की पूजा करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।