लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। शाही जामा मस्जिद हिंसा के बाद संभल के अंदर प्राचीन धरोहरें एक-एक कर बाहर आ रही हैं। चंदौसी में सैकड़ों साल पुरानी बावड़ी की खुदाई के दौरान टॉयलट शीट मिली है। बताया जा रहा है कि ये सीट राजाओं के जमाने की है। एसआईए ने सीट को अपने कब्जे मे ले लिया है। खुदाई के वक्त एक घड़ा भी मिला है, जो सैकड़ों वर्ष पूराना बताया जा रहा है।
मिट्टी में दबी थी टॉयलेट सीट
संभल में पिछले कईदिनों से बावड़ी की खुदाई का कार्य जारी है। फिलहाल बावड़ी से लगातार मिट्टी हटवाई जा रही है और खुदाई भी जारी है। अब जैसे-जैसे बावड़ी की गहराई में खुदाई हो रही है, वैसे-वैसे प्राचीन विरासत का इतिहास सामने आ रहा है। बावड़ी की खुदाई के दौरान प्राचीन जमाने की टॉयलट शीट मिली है। ये टॉयलट शीट पहली मंजिल पर मिली है, जो मिट्टी में दबी हुई थी। माना जा रहा है कि टॉयलट शीट का इस्तेमाल बावड़ी में आने वाले लोग या राजा-रानी किया करते होंगे।
मिला प्राचीन घड़ा
बावड़ी की खुदाई के वक्त एक घड़ा भी मिला है। जानकार बताते हैं कि जब राजा-रानी यहां पर ठहरते थे, तब इसी घड़े का वह इस्तेमाल किया करते थे। घड़ा करीब 150 से अधिक वर्ष पूराना बताया जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ बावड़ी में बने कुएं की भी तलाश की जा रही है। बावड़ी की पहली मंजिल देखकर अंदाजा लगाया जा रहा है कि ये बावड़ी अपने समय में कितनी भव्य और विशाल रही होगी। माना जा रहा है कि एएसआई सर्वे में और भी प्राचीन चीज बावड़ी से मिल सकती है।
ये विशालकाय भवन जमीन में दफ्न
माना जा रहा है कि बावड़ी को दबाने के लिए बावड़ी को अराजत तत्वों ने काफी नुकसान पहुंचाया है। इतने सालों से ये विशालकाय भवन जमीन में दफ्न था। ऐसे में यहां खुदाई के दौरान काफी कुछ मिल सकता है। बता दें, संभल जिले में जो बावड़ी मिली है, वह 150 साल पुरानी बताई जा रही है। माना जा रहा है कि यह बावड़ी लगभग कईएकड़ एरिया में फैली हुई है। अब तक मिली बावड़ी में यह सबसे अद्भुत और विशाल बावड़ी है। फिलहाल एएसआई के नेतृत्व में खुदाई का कार्य जारी है और एक-एक कर अनमोल रत्न बाहर आ रहे हैं।
फिर शुरू हुआ खुदाई का कार्य
स्थानीय लोग बताते है कि बिलारी के राजा के नाना के समय बावड़ी बनी थी। इसका सेकंड और थर्ड फ्लोर मार्बल से बना है। ऊपर का तल ईटों से बना हुआ है। इसमें एक कूप भी है और लगभग चार कक्ष भी बने हुए हैं। बावड़ी करीब 150 साल पूरानी है। सनातन सेवक संघ के राज्य प्रचार प्रमुख कौशल किशोर ने संभल जिला प्रशासन को इलाके में एक शाही बावड़ी के अस्तित्व के बारे में बताया था. जिसके बाद खुदाई शुरू की गई थी।
12 कमरे, एक कुआं और सुरंग
बावड़ी को लेकर दावे किए जा रहे हैं कि इसका निर्माण 1857 में हुआ था। इसके अंदर 12 कमरे, एक कुआं वो सुरंग है। बता दें, संभल, उत्तर प्रदेश, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध क्षेत्र है, जिसमें कई प्राचीन धरोहरें मौजूद हैं। बावड़ी न केवल जल संरक्षण के लिए उपयोगी थी, बल्कि इसे एक धार्मिक और सामाजिक स्थल के तौर पर भी इसकी पहचान रही होगी। समय के साथ बावड़ी का रखरखाव कम हो गया और यह क्षतिग्रस्त स्थिति में पहुंच गई, बाद में इस पर अतिक्रमण कर लिया गया।
संभल के चारों कोनों पर श्मशान
गजेटियर के मुताबिक़ संभल में 19 कुंए थे। यहां तालाब या सरोवर को ही तीर्थ मानने की परंपरा रही है। गजेटियर के मुताबिक़ संभल में 68 तालाब थे। इन सबकी पहचान कर इनका जीर्णोद्धार करने की योजना है। कहते हैं कि जिसका अंतिम संस्कार संभल में होता हैं उसे मुक्ति मिलती है। संभल के चारों कोनों पर श्मशान है. जिन पर अतिक्रमण हो चुका है। इनका भी काया कल्प किया जाएगा। जो मंदिर संभल में हैं उन सबका विकास करने की योजना है।
कभी रूकती हैं यहां पर सेनाएं
कभी ये बावड़ी सहसपुर स्टेट की मिल्कियत हुआ करती थी। सैनिकों की टुकड़ियां इस बावड़ी में रुकती थीं। बावड़ी जमीन के इतने अंदर थी कि उस पर तोप-गोलों का असर भी संभव नहीं था। बाद में इस बावड़ी का इस्तेमाल आसपास खेतीबाड़ी के लिए किया जाने लगा। ये बावड़ी 150 साल से ज्यादा पुरानी है, जो बीते 29 साल से बंद पड़ी थी। राजा लल्ला बाबू ने 1990 में रियासत की ज्यादातर जमीनें किसी मेहंदीरत्ता नामक प्रॉपर्टी डीलर को बेच दीं। इसमें सिर्फ चंदौसी की बावड़ी वाला हिस्सा छोड़ दिया गया। बावड़ी के चारों तरफ मकान खड़े हो गए। धीरे-धीरे ये बावड़ी कूड़ा-करकट से पाट दी गई। फिर वो जमीन में दबती चली गई।
करीब 400 गांव आते थे
सहसपुर राजघराने की रियासत में यूपी के बदायूं, मुरादाबाद, संभल और बिजनौर जिले के करीब 400 गांव आते थे। इसका इतिहास सन 1500 से भी पुराना है। संभल जिले के कस्बा चंदौसी में जो बावड़ी मिली, वो इसी रियासत का हिस्सा है। इस पूरी रियासत के मालिक कस्बा बिलारी निवासी राजा जगत सिंह और उनकी पत्नी रानी प्रीतम कुंवर थे। साल 1934 में अलीगढ़ जाते वक्त एक कार दुर्घटना में राजा जगत सिंह की मौत हो गई। 1982 में रानी प्रीतम कुंवर का निधन हो गया। रानी प्रीतम कुंवर ने निधन से पहले ये पूरी रियासत अपनी बहू रानी सुरेंद्रबाला के नाम कर दी थी। बाद में ये संपत्ति सुरेंद्रबाला के दत्तक पुत्र विष्णु कुमार उर्फ लल्ला बाबू के हिस्से में आ गई