लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। एक वक्त पूर्वांचल में माफिया, डॉन और अपराधियों की फसल की खेती हुआ करती थी। जरायम की दुनिया में इस क्षेत्र से बड़े-बड़े धुरंधर निकले, जिनके नाम से आमजन से लेकर खासजन की पतलून गीली हो जाया करती थी। इन्हीं माफियाओं में एक-47 धारी श्रीप्रकाश शुक्ला था, जिसे आजाद भारत का सबसे खतरनाक अपराधी करार दिया गया। सनक ऐसी की तत्कालीन मुख्यमंत्री की सुपारी ली। मौका मिला तो मंत्री का काम तमाम करने की साजिश रची। वक्त आया तो दिनदहाड़े होटल के अंदर जाकर एक-47 रायफल से ताबड़तोड़ फायरिंग की सनसनी मचा दी। तब कुख्यात बदमाश के खात्में के लिए यूपी एसटीएफ का गठन हुआ और आखिरकार श्रीप्रकाश शुक्ला एनकाउंटर में मारा गया। डॉन को ठोकने वाले उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के पूर्व अधिकारी राजेश पांडेय ने ’वर्चस्व’ नाम की एक पुस्तक लिखी है, जिसमें श्रीप्रकाश की जिंदगी की पूरी कहानी मौजूद है।
कौन था श्रीप्रकाश शुक्ला
श्रीप्रकाश शुक्ला का जन्म दशहरा के दिन हुआ था। श्रीप्रकाश शुक्ला का पालन-पोषण गोरखपुर से हुआ और वह गांव कभी-कभार ही आता था। 90 के दशक में उसके परिवार की गिनती क्षेत्र के संभ्रांत परिवारों में होती थी। 90 के दशक में जब गोरखपुर में इक्का-दुक्का इंग्लिश मीडियम स्कूल हुआ करते थे, तब उसके पिता ने श्रीप्रकाश शुक्ला का दाखिला इंग्लिश मीडियम स्कूल में करवाया था। हालांकि श्रीप्रकाश को इंग्लिश रास नहीं आई और जल्द ही उसका दाखिला गोरखपुर के पास दाउतपुर गांव में लोकनायक ज्ञानभारती विद्या मंदिर स्कूल में करवाना पड़ा। तभी गांव में विवाद हो जाता है। श्रीप्रकाश शुक्ला गांव के युवक की हत्या कर देता है। पुलिस उसे जेल भेजती है। जेल में रहकर श्रीप्रकाश शुक्ला ने जरायम की दुनिया का ककहरा सीखा।
इस तरह से किए कई मर्डर
श्रीप्रकाश शुक्ला के एनकाउंटर में शामिल रहे पूर्व आईपीएस राजेश पांडेय ने मीडिया को दिए इंटरव्यू के दौरान बताया, 19997 में लखनऊ के सबसे बड़े लॉटरी व्यवसायी बबलू श्रीवास्तव की श्रीप्रकाश शुक्ला ने शाम को गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके 10 दिन बाद आलमबाग इलाके में टेढ़ी पुलिया चौराहे पर ट्रिपल मर्डर हो गया। फिर 31 मार्च को दिन के दस बजे वीरेंद्र प्रताप शाही की गोलियों की बौछार करके हत्या कर दी। फिर मई 1997 में लखनऊ के नामी बिल्डर मूलराज अरोड़ा को हजरतगंज ऑफिस से गन प्वॉइंट पर अगवा कर लिया और करीब-करीब 2 करोड़ की फिरौती वसूली। श्रीप्रकाश यहीं पर नहीं रुका। 1 अगस्त 1997 को लखनऊ में विधानसभा के पास बने दिलीप होटल में तीन लोगों की हत्या कर दी। गोलीबारी में भानु मिश्रा नाम का शख्स जीवित बच गया था।
नाम रखा अशोक सिंह
भानु मिश्रा ने उस वक्त पुलिस को बताया था कि उसे अशोक सिंह नाम का शख्स रेलवे टेंडर न लेने की धमकी दे रहा था। यही से पहली बार पुलिस को स्पष्ट हुआ कि अशोक सिंह ही श्रीप्रकाश शुक्ला है। हद तो तब हो गई जब उसने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या की सुपारी ले ली। इसी के बाद यूपी एसटीएफ का गठन किया गया। श्रीप्रकाश शुक्ला के खात्में के लिए तेज-तर्राक अफसरों को लगाया गया। पूर्व आईपीएस राजेश पांडेय बताते हैं कि श्रीप्रकाश शुक्ला की फोटो पुलिस के पास नहीं थी। ऐसे में उसकी पहचान नहीं हो पा रही थी। पुलिस और एसटीएफ उसकी तस्वीर को लेकर दिन-रात एक किए हुए थे।
भांजी ने श्रीप्रकाश शुक्ला की दी फोटा
पूर्व आईपीएस राजेश पांडेय बताते हैं, श्रीप्रकाश शुक्ला ने गोरखपुर में एक शादी अटैंड की थी। शादी में शामिल रहे फोटोग्राफर से पूछताछ की तो उसने बताया कि सभी फोटो जला दी हैं। सौभाग्य से, श्रीप्रकाश शुक्ला का एक बहनोई लखनऊ के हजरतगंज में रहता था। पता चला कि श्रीप्रकाश शुक्ला एक बर्थडे पार्टी में शामिल हुआ था। हमने बहनोई को डरा-धमकाकर पूछताछ की लेकिन कुछ नतीजा नहीं निकला। इसी बीच, एक लड़की आई और उसने बताया कि छह माह पहले मेरे बर्थडे में श्रीप्रकाश शुक्ला आया था और उसका फोटो भी है। उसने 3-4 फोटो दिखाईं और श्रीप्रकाश के बारे में बताया। लड़की श्रीप्रकाश शुक्ला की सगी भांजी थी। फोटो मिलने के बाद हमने ऑपरेशन को आगे बढ़ाया। हमने अखबार में श्रीप्रकाश शुक्ला की फोटो छपवा दी।
अंजू नाम की लड़की से प्यार करता था
अखबारों में फोटो छपने के बाद श्रीप्रकाश की पहचान उजागर हो गई थी। इस बात से वह परेशान रहने लगा। वहीं, यूपी एसटीएफ उसके पीछे हाथ धोकर पड़ी हुई थी। श्रीप्रकाश को मोबाइल की भी लत लग गई थी। बताया जाता है एक समय में उसके पास 14 सिम कार्ड हुआ करते थे। श्रीप्रकाश मोबाइल से पहले पेजर का भी इस्तेमाल किया करता था। नेपाल से वह भारत में पीसीओ से फोन किया करता था। श्रीप्रकाश शुक्ला गोरखपुर की रहने वाली अंजू नाम की लड़की से प्यार करता था। दोनों फोन में कई-कई घंटे बात किया करते थे। एसटीएफ को इसकी जानकारी हुई और टीम एक्टिव हुई। पूर्व आईपीएस राजेश पांडेय बताते हैं कि लड़की गोरखपुर स्थित एक पीसीओ में आकर श्रीप्रकाश शुक्ला से बात किया करती थी। इसके अलावा वह घर के नंबर से भी डॉन से बातें करती।
नंबर को एसटीएफ ने ट्रेस किया तो
पूर्व आईपीएस राजेश पांडेय बताते , श्रीप्रकाश शुक्ला दिल्ली में था। वह बिहार जाने वाला था। तभी अंजू ने श्रीप्रकाश शुक्ला को फोन किया और दिल्ली आने की बात कही। एसटीएफ अंजू का फोन रिकार्ड पर लगाए हुए थे। दोनों के बीच हो रही बातों को सुन रही थी। श्रीप्रकाश शुक्ला के नंबर को एसटीएफ ने ट्रेस किया तो वह नोएडा का निकला। श्रीप्रकाश शुक्ला ने लड़की से कहा था कि एक काम निपटा दूं। इसके बाद वह उसके साथ शादी कर लेगा। श्रीप्रकाश शुक्ला प्रेमिका के साथ नेपाल भागने का प्लान बना चुका था। उधर, प्रेमिका गोरखपुर से दिल्ली भी गई। एसटीएफ की टीम भी उसके साथ गई पर श्रीप्रकाश शुक्ला हाथ नहीं लगा। दिल्ली पहुंचकर लड़की ने पीसीओ में फोन लागाकर दिल्ली आने की जानकारी श्रीप्रकाश शुक्ला तक पहुंचाई। श्रीप्रकाश शुक्ला ने दूसरे पीसीओ के जरिए अपनी प्रेमिका से बात की। एसटीएफ लड़की के मोबाइल को सर्विलांस में लिए हुए थे। एसटीएफ को पक्की खबर मिल चुकी थी कि श्रीप्रकाश दिल्ली-नोएडा में ही है।
तब नहीं पहुंचा श्रीप्रकाश
सितंबर 1998 में श्रीप्रकाश शुक्ला ने दिल्ली के वसंत कुंज इलाके से भद्दी-भद्दी गालियां देते हुए लखनऊ के एक आरिफ बिल्डर को धमकाते हुए 1 करोड़ की रकम की मांगी थी। एसटीएफ की एक टीम आनन-फानन में दिल्ली पहुंची। पूर्व आईपीएस राजेश पांडेय बताते हैं, दूसरे दिन दिल्ली से फिर से श्रीप्रकाश शुक्ला ने लखनऊ के बिल्डर को धमकाया था। नंबर ग्रेटर कैलाश के एक पीसीओ का था। बातचीत में पता चला कि श्रीप्रकाश को 22 सितंबर 1998 को फ्लाइट से लखनऊ जाना है.। 22 सितंबर की सुबह साढ़े तीन बजे एसटीएफ के लोग दिल्ली हवाई अड्डे पर तैनात हो गए और फ्लाइट को सुबह साढ़े 5 बजे टेक ऑफ करना था लेकिन उस दिन श्रीप्रकाश शुक्ला गया ही नहीं।
फिर ऐसे मारा गया श्रीप्रकाश शुक्ला
हालांकि टिकट उसके नाम से बुक नहीं था। उसके फोन को फिर सुना जाने लगा। उसे गाजियाबाद किसी काम से जाना था। एसटीएफ की टीम ग्रेटर कैलाश पहुंची और उस पीसीओ के ट्रैक कर लिया, जहां से श्रीप्रकाश शुक्ला बात कर रहा था। पूछताछ पर पता चला कि वह पीसीओ में नीले रंग से सीलो कार से आया था। एसटीएफ ने कार का पीछा किया तो वह गाजियाबाद की ओर जा रही थी। कार श्रीप्रकाश चला रहा था और उसके साथ उसके साथी अनुज प्रताप सिंह और सुधीर त्रिपाठी बैठे थे। जब कार इंदिरापुरम पर पहुंची तो उसे आभास हो गया कि उसका पीछा किया जा रहा है। उसने अपनी गाड़ी कौशाम्बी की ओर मोड़ ली। अचानक उसने कच्चे रास्ते पर गाड़ी उतार दी। एसटीएफ ने उसका रास्ता रोक लिया. दोनों से कई राउंड की फायरिंग हुई और अंत में श्रीप्रकाश शुक्ला अपने साथियों के साथ मारा गया।