Nand Gopal Nandi controversy: उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर उबाल पर है। इस बार विवाद का केंद्र हैं योगी सरकार के कद्दावर मंत्री नंद गोपाल गुप्ता ‘नंदी’, जिन्होंने ब्यूरोक्रेसी पर खुलेआम गंभीर आरोप लगाए हैं। औद्योगिक विकास मंत्री नंदी ने सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर मुख्य सचिव समेत कई अफसरों पर नियमों की अनदेखी और मनमाने फैसलों का आरोप लगाया है। यह मामला राजनीतिक गलियारों में तेजी से फैल गया है और विपक्ष को सरकार पर हमले का नया मौका मिल गया है। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि मुख्यमंत्री इस विवाद पर क्या रुख अपनाते हैं और क्या नंदी अपने आरोपों को तथ्यात्मक रूप से साबित कर पाएंगे?
मंत्री बनाम ब्यूरोक्रेसी: आरोपों की लंबी फेहरिस्त
Nand Gopal Nandi, जो कि प्रयागराज दक्षिण से विधायक हैं और औद्योगिक विकास, निर्यात प्रोत्साहन, एनआरआई और निवेश प्रोत्साहन जैसे प्रमुख विभागों की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं, ने आरोप लगाया है कि राज्य की नौकरशाही पूरी तरह से पक्षपात कर रही है। उन्होंने दावा किया है कि उनके निर्देशों की अवहेलना हो रही है और कुछ अधिकारी निजी हितों के लिए नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं।
Nand Gopal Nandi का आरोप है कि नोएडा में कुछ बिल्डरों की फाइलें नियमों को दरकिनार कर तत्काल मंगाई जाती हैं, जबकि दूसरी महत्वपूर्ण परियोजनाएं जानबूझकर रोकी जाती हैं। उनका कहना है कि 41/3 जैसे प्रकरणों में कुछ अधिकारियों और प्रभावशाली लोगों की मिलीभगत है, जिससे औद्योगिक विकास की रफ्तार प्रभावित हो रही है।
पत्रकारों से तकरार और सियासी आलोचना
हाल ही में नोएडा में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान नंदी का पत्रकारों से व्यवहार भी विवादों में आ गया। जब एक पत्रकार ने उनसे भ्रष्टाचार के आरोपों पर सवाल पूछा, तो नंदी भड़क उठे और पत्रकार को “ब्लैकमेलर” कह दिया। इस वीडियो ने सोशल मीडिया पर सनसनी मचा दी और विपक्ष ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया।
समाजवादी पार्टी के नेताओं ने नंदी को “तानाशाही मानसिकता” वाला मंत्री बताते हुए मुख्यमंत्री से उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। कांग्रेस ने भी मामले में स्वतंत्र जांच की मांग उठाई है।
नंदी का सियासी सफर और विवादों की पृष्ठभूमि
नंद गोपाल नंदी का राजनीतिक सफर भी कम दिलचस्प नहीं रहा है। 2007 में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी से जीत दर्ज की थी और मायावती सरकार में राजस्व मंत्री बने थे। बाद में उन्होंने समाजवादी पार्टी का रुख किया और अंततः भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गए। 2022 में वे बीजेपी के टिकट पर फिर से जीतकर योगी सरकार में मंत्री बने।
हालांकि, उनका नाम कई विवादों में जुड़ा रहा है। उनके खिलाफ 13 आपराधिक मामले दर्ज हैं और अतीक अहमद से जुड़े उमेश पाल हत्याकांड में भी उनका नाम आरोपों के घेरे में आया था, हालांकि उन्होंने सभी आरोपों से इनकार किया है। 2020 में उनके घर के आसपास के मकानों को भगवा रंग में रंगवाने की घटना भी जमकर विवादों में रही थी।
नोएडा में बिल्डरों से साठगांठ के आरोप
गौतम बुद्ध नगर (नोएडा) में बिल्डरों के साथ कथित साठगांठ को लेकर भी नंदी पर उंगलियां उठ रही हैं। सूत्रों के अनुसार, नंदी के निर्देश पर नोएडा प्राधिकरण से कुछ बिल्डरों की फाइलें खास तवज्जो के साथ मंगाई जाती हैं। वहीं, कुछ मामलों में उनके करीबी सीधे हस्तक्षेप करते हैं।
2022 में एक भूखंड आवंटन विवाद में नंदी ने नोएडा अथॉरिटी के एक ओएसडी को सस्पेंड भी कराया था। तब इसे सरकार की “जीरो टॉलरेंस” नीति का हिस्सा बताया गया था, लेकिन अब वही फैसले शक के घेरे में हैं।
मुख्यमंत्री के फैसले पर टिकी निगाहें
यह मामला अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की चौखट पर है। एक तरफ Nand Gopal Nandi सरकार के कद्दावर मंत्री हैं और दूसरी ओर, ब्यूरोक्रेसी में असंतोष तेजी से बढ़ रहा है। मुख्यमंत्री की चुप्पी अब तक इस मामले को और पेचीदा बना रही है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक जल्द ही इस विवाद पर बड़ा फैसला आ सकता है।
विपक्षी दलों ने इस विवाद को लेकर सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए हैं। समाजवादी पार्टी के नेता रवि गुप्ता ने कहा, “नंदी अपने विभाग की नाकामी को छिपाने के लिए दूसरों पर दोष मढ़ रहे हैं। अगर उनके पास सबूत हैं, तो सार्वजनिक करें।”
सियासत का अगला अध्याय?
Nand Gopal Nandi और ब्यूरोक्रेसी के बीच यह टकराव उत्तर प्रदेश की सत्ता के गलियारों में नई हलचल पैदा कर चुका है। यह विवाद न केवल प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहा है, बल्कि योगी सरकार की छवि और स्थिरता को भी प्रभावित कर सकता है। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ किस पक्ष में खड़े होते हैं और क्या नंदी को उनके आरोपों का समर्थन मिलता है, या उन्हें इसका राजनीतिक खामियाजा भुगतना पड़ेगा। फिलहाल, उत्तर प्रदेश की सियासत एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है।