लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। यूं तो वेशभूषा और गुण- स्वरूप के आधार पर भगवान महादेव के 108 नाम प्रचलित हैं। पर भक्तों के भोले इतने भोले हैं कि उन्हें जिस भी नाम से पुकार लें, वह वही नाम धारण कर लेते हैं। अगर भगवान शंकर का शिवाला जंगल में है तो जंगलीनाथ हो गए। उनके आगे किसी का घमंड नहीं चलता इसलिए घमंडीनाथ हो गए। झाड़ियों में शिवलिंग मिला तो झारखंडेश्वर हो गए और लिंग टेढ़ा हुआ तो टेढ़ेनाथ हो गए। इतना ही नहीं अगर थाने में शिव का मंदिर है तो भक्तों ने महादेव का नाम थानेश्वर रख दिया। गर खस्तेवाली गली में महादेव विराजमान है तो उनका नाम खस्तेश्वर पड़ गया।
यहां पर शिव मंदिरों का निर्माण करवाया
दरअसल, हिमालय की तराई से लगते प्राचीन जंगलवर्ती क्षेत्रों में पांडवों ने अपने अज्ञातवास का समय व्यतीत किया था। अज्ञातवास के समय पांडवों ने यहां पर शिव मंदिरों का निर्माण करवाया था। मुगल और ब्रिटिश काल में इन मंदिरों की उपेक्षा के चलते इनका अस्तित्व मिट गया। लेकिन समय के साथ विभिन्न किंवदंतियों का रूप लेते यह शिवलिंग पुनः प्रकट हुए और विशाल शिवालों में परिवर्तित हो गए। जितने प्राचीन व भव्य शिवाले इस क्षेत्र में हैं, उतने दूसरे स्थानों पर नहीं मिलते। महादेव के मंदिरों के नाम भी भक्तों ने अजग-गजब रखे। जहां हरदिन हजारों भक्त आते हैं और पूजा-अर्चना कर मन्नत मांगते हैं।
सुलतानपुर में विराजमान हैं झारखंडेश्वरनाथ
सुलतानपुर के कादीपुर में झाड़ियों के बीच शिवलिंग के स्थापित होने से भक्तों ने ही शंकरजी को झारखंडेश्वरनाथ नाम दिया। ये शिव मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। शिव मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। जिसकी प्राचीनता के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है। मंदिर के भीतर स्थापित शिवलिंग स्वयं भू है। सन 1920 में मंदिर का जीर्णोद्धार अंदारायपुर निवासी सूर्यबली मिश्र द्वारा कराया गया। मंदिर को को दिव्य स्वरूप प्रदान करने का जिम्मा झारखंड मंदिर समिति ने अपने हाथ में लिया है।
सीतापुर में विराजमान हैं भूतेश्वरनाथ बाबा
सीतापुर में भूतेश्वरनाथ विराजमान हैं। नैमिषारण्य के पौराणिक चक्रतीर्थ के तट पर स्थित भूतेश्वरनाथ मंदिर के बारे में कहा जाता है कि भूतेश्वरनाथ के आदेश से यह आसुरी शक्तियां धर्मकार्य में बाधा नहीं डालती हैं। इसी कारण भगवान भूतेश्वरनाथ को नैमिषारण्य की परिधि में वास कर रहे 33 कोटि देवी-देवताओं, 3.5 करोड़ तीर्थों, 88 हजार ऋषियों-मुनियों के रक्षक के रूप में कोतवाल भी कहा जाता है। मंदिर का इतिहास सैकड़ों वर्ष प्राचीन है। जानकार बताते हैं कि मंदिर का निर्माण पांडवों ने करवाया था।
बराबंकी में विराजमान हैं सैनिकेश्वर महादेव
सैनिकेश्वर मंदिर बराबंकी के पूर्व सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास कार्यालय के परिसर में स्थित है। महादेव प्रसाद तिवारी ने वर्ष 1951 में सैनिकेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कराया। छोटे से इस मंदिर में शिवोलग काफी ऊंची है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार वर्ष 2008 में राम किशोर यादव, राज कुमार ोसह, ममता रानी बोस, प्रदीप कुमार मिश्र, प्रेम शंकर श्रीवास्तव, उमाकांत, रामसागर यादव, मनोज कुमार, उमाशंकर द्विवेदी व रामराज पाठक ने कराया। इस मंदिर के प्रति सैनिक परिवारों में आस्था है। कार्यालय में आने वाले लोग सैनिकेश्वर महादेवा के दर्शन करते हैं।
रायबरेली के डीह में गल्थरेश्वर बाबा विराजमान
रायबरेली के डीह में गल्थरेश्वर बाबा विराजमान हैं। टीले पर खोदाई के दौरान एक शिवलिंग मिला जो पेड़ के गलथे में फंसा था। ऐसे में इसे गल्थरेश्वर मंदिर कहा जाने लगा। प्राचीन मंदिर का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है। गोपेश्वर मंदिर की स्थापना किसने की और विशाल शिवलिंग कैसे स्थापित हुआ इस बारे में कोई प्रमाण मौजूद नहीं हैं। मान्यता है कि देश में विशाल शिवलिंग के रूप में महादेव कुछ ही स्थानों पर दर्शन देते हैं, जिसमें से गोपेश्वर महादेव मंदिर भी है।
बाबा घमंडीनाथ का शिव मंदिर
गोंड के नवाबगंज में बाबा घमंडीनाथ का शिव मंदिर हैं। लोकमान्यता है कि आसपास के जितने भी देवी देवता हैं इनके आगे किसी का घमंड नहीं चला। पौराणिक कथाओं में जिक्र है कि अज्ञातवास के दौर में पांडुपुत्र भीम ने राक्षस बकासुर का वध किया था। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए भीम ने भगवान शिव की आराधना कर विशाल शिवलिंग की स्थापना की थी। मंदिर में स्थापित शिवलिंग को सबसे बड़ा शिवलिंग माना जाता है। सावन के महिने में लाखों भक्त बाबा के दर पर मत्था टेकते हैं और मन्नत मांगते हैं।
मंदिर के किवाड़ में कभी ताला बंद नहीं किया जाता।
बलरामपुर जिले में सदर विकास खंड के राजापुर भरिया जंगल के बीचोबीच ऐसा एक ऐसा शिव मंदिर है, जहां पुजारी रात में निवास नहीं करते। बाबा जंगलीनाथ मंदिर के किवाड़ में कभी ताला बंद नहीं किया जाता। मान्यता है कि इस मंदिर पर भोलेनाथ की विशेष कृपा है। मंदिर की सुरक्षा नाग-नागिन करते हैं। मंदिर के पुजारी व स्थानीय लोगों के मुताबिक यहां धार्मिक कार्यक्रम दिन में ही निपटाए जाते हैं। कारण मंदिर की सुरक्षा के लिए नाग-नागिन का जोड़ा शाम होते ही आ जाता है। रात में मंदिर प्रांगण में निवास करने वाला कोई व्यक्ति जीवित नहीं बचा।
पृथ्वीनाथ मंदिर गोंडा
महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान भीम ने शिवलिंग की स्थापना की थी। यहां का शिवलिंग साढ़े पांच फीट ऊंचा है। पृथ्वी से प्रकट होने के कारण इसका नाम पृथ्वीनाथ मंदिर पड़ गया। पृथ्वीनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग को एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग माना जाता है। ऐतिहासिक पृथ्वीनाथ मंदिर करीब 5 हजार साल पुराना माना जाता है। मान्यता है कि पांडवों ने चक्रनगरी में अज्ञातवास के दौरान शरण ली थी। यहीं पर भीम ने बकासुर नाम का राक्षस का वध किया था।
थानेश्वर महादेव मंदिर नाम दे दिया
कानपुर के बिठूर में स्थित थानेश्वर महादेव मंदिर कई सालों तक बेनाम ही था। आसपास रह रहे लोगों के मुताबिक 20 साल पहले ध्रुव टीले से थोड़ी दूर पर बने एक प्राचीन मंदिर में चोरों ने हाथ साफ किया था। मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारियों को थोड़ी दूर झाड़ियों में शिवलिंग मिला था जिसको अधिकारियों ने बिठूर थाने के कार्यालय के सामने परिसर में बने एक मंदिर में स्थापित करा दिया। तबसे यह अनाम मंदिर था। पूर्व थानाप्रभारी तुलसीराम पांडेय ने पिछले साल दीपावली के दिन इस मंदिर की साफ-सफाई कराई और इसको थानेश्वर महादेव मंदिर नाम दे दिया।
कोतवालेश्वर मंदिर नाम दे दिया गया
पहले शहर की कोतवाली चौक इलाके में हुआ करती थी। बाद में कोतवाली बड़ा चौराहा के पास शिफ्ट हुई तो चौक में कोतवाली वाले स्थान पर भगवान शिव का मंदिर बना दिया गया। चूंकि यहां पर किसी जमाने में कोतवाली हुआ करती थी इसलिए इस मंदिर को कोतवालेश्वर मंदिर नाम दे दिया गया। सावन और शिवरात्रि पर्व पर पुलिसकर्मी कोतवालेश्वर की पूजा-अर्चना करते हैं। कई थानों के पुलिसकर्मी हरदिन कोतवालेश्वर के दरवार पर आकर हाजिरी लगाते हैं।
खस्तेश्वर मंदिर करीब 145 साल पुराना
चावलमंडी में स्थित खस्तेश्वर मंदिर करीब 145 साल पुराना है। इस मंदिर को नाम मिला राम नारायण खस्ते वाले से। दरअसल इस दुकान के खस्ते इतने ज्यादा फेमस हो गए कि लोगों ने पास में ही स्थित भगवान शिव के मंदिर को खस्तेश्वर मंदिर के नाम से पुकारना शुरू कर दिया और इसका नाम खस्तेश्वर मंदिर ही पड़ गया। इस मंदिर में शिव परिवार, राम- जानकी परिवार व दक्षिणमुखी हनुमान प्रमुख रूप से विराजमान हैं और खस्ते का भोग लगता है।