सुरेश यादव कांग्रेस से बाहर: पार्टी में मच गई खलबली, सियासी तूफान के लिए तैयार

उत्तर प्रदेश के फूलपुर विधानसभा उपचुनाव में सपा और कांग्रेस के बीच छिड़ी खींचतान ने राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है। कांग्रेस के गंगापार जिलाध्यक्ष सुरेश यादव की मनमानी ने पार्टी के भीतर मतभेदों को उजागर किया है, जिससे इंडिया गठबंधन की एकता पर खतरा मंडरा रहा है।

Phulpur

Phulpur by-election: फूलपुर विधानसभा उपचुनाव के चलते उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में सियासी हलचल तेज हो गई है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच बढ़ती खींचतान ने दोनों दलों की स्थिति को कमजोर कर दिया है। पहले से ही भारतीय गठबंधन के तहत कांग्रेस ने इस सीट पर दावा किया था, लेकिन समाजवादी पार्टी ने अचानक अपना प्रत्याशी उतार दिया। इस फैसले से कांग्रेस में खलबली मच गई है, और अब पार्टी आलाकमान पर सुरेश यादव के खिलाफ कार्रवाई का दबाव बढ़ रहा है।

सुरेश यादव पर पार्टी विरोधी काम करने का आरोप

कांग्रेस के गंगापार जिलाध्यक्ष सुरेश यादव, जिन्होंने हाल ही में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन किया था, अब दोबारा कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर नामांकन करने की तैयारी कर रहे हैं। यह कदम कांग्रेस आलाकमान के लिए एक (Phulpur) बड़ा झटका साबित हो सकता है। पार्टी के कई नेता इस बात को लेकर चिंतित हैं कि सुरेश यादव का यह कदम पार्टी के प्रति निष्ठा का उल्लंघन है। उनके नामांकन से ना सिर्फ पार्टी के भीतर की दरारें उजागर हुई हैं, बल्कि इंडिया गठबंधन पर भी सवाल उठने लगे हैं।

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सपा के लिए चुनौती, कांग्रेस के लिए संकट

सुरेश यादव की सोशल मीडिया पर सक्रियता, जिसमें उन्होंने ‘Phulpurकी माटी का लाल, करेगा कमाल’ का नारा दिया है, इस बात को दर्शाता है कि वह अपनी ताकत दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, इस पोस्टर में प्रियंका और राहुल गांधी की तस्वीरें ही (Phulpur) शामिल की गई हैं, जबकि अन्य प्रमुख नेताओं का नाम और तस्वीरें गायब हैं। यह संकेत करता है कि शायद सुरेश यादव अपने बल पर इस चुनाव में उतरना चाहते हैं, जो पार्टी की सामूहिकता को नुकसान पहुंचा सकता है।

क्या कांग्रेस आलाकमान करेगा सख्त कार्रवाई?

अब सवाल यह है कि क्या कांग्रेस आलाकमान सुरेश यादव के खिलाफ कोई ठोस कदम उठाएगा, या फिर उन्हें मूक दर्शक बना रहेगा। पार्टी के भीतर की खींचतान और सुरेश यादव के स्वतंत्र कदम से यह स्पष्ट होता है कि कांग्रेस को अपने ही नेताओं की निष्ठा पर सवाल उठाने की आवश्यकता है। अगर यह स्थिति जारी रही, तो इसका नुकसान न केवल कांग्रेस बल्कि इंडिया गठबंधन को भी भुगतना पड़ेगा।

इस सब के बीच, चुनावी रणभूमि में सपा और कांग्रेस के बीच की यह तकरार आने वाले दिनों में राजनीतिक समीकरणों को पूरी तरह से बदल सकती है।

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