President Draupadi Murmu reference: 13 मई 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अनुच्छेद 143(1) के तहत सर्वोच्च न्यायालय को राष्ट्रपति संदर्भ भेजा। इसमें उन्होंने राष्ट्रपति और राज्यपालों की शक्तियों से जुड़े 14 महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रश्नों पर न्यायालय की राय मांगी है। यह संदर्भ तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में 8 अप्रैल 2025 के सुप्रीम कोर्ट फैसले के बाद आया है, जिसने राज्य विधेयकों की मंजूरी पर समय सीमा तय करने का आदेश दिया था। राष्ट्रपति ने इस फैसले की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए हैं और इस बात पर चर्चा की है कि क्या न्यायालय के पास ऐसे निर्णय लेने का अधिकार है, जब संविधान में इस संबंध में स्पष्ट समयसीमा नहीं दी गई है। यह मामला केंद्र और राज्यों के बीच संवैधानिक शक्तियों के संतुलन को लेकर महत्वपूर्ण बहस का कारण बन गया है।
President of India Droupadi Murmu under Article 143 (1) of the Constitution of India has sent a reference to the Supreme Court following its recent ruling that set timelines for Governors and the President to grant assent to bills passed by legislatures.
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— Bar and Bench (@barandbench) May 15, 2025
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर उठे सवाल
8 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में कहा था कि राज्यपाल और राष्ट्रपति विधेयकों को अनिश्चित काल तक लंबित नहीं रख सकते। उन्होंने यह भी कहा कि लंबित विधेयकों को एक निर्धारित अवधि के बाद “स्वीकृत” माना जाएगा। इस आदेश ने राष्ट्रपति और राज्यपालों की विवेकाधीन शक्तियों पर सवाल खड़े कर दिए। अनुच्छेद 200 और 201 के तहत ये अधिकारी विधेयकों को मंजूरी देने की प्रक्रिया संचालित करते हैं, लेकिन संविधान में कोई समयसीमा निर्दिष्ट नहीं है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस फैसले को संवैधानिक असंतुलन पैदा करने वाला बताया है और अनुच्छेद 142 के उपयोग पर आपत्ति जताई है, जो न्यायालय को पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने की शक्ति देता है।
President Draupadi Murmu संदर्भ में उठाए गए प्रमुख प्रश्न
President Draupadi Murmu ने 14 प्रश्नों में यह स्पष्टता मांगी है कि क्या राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना अपने विवेकाधीन अधिकार का प्रयोग कर सकते हैं। उन्होंने यह भी पूछा है कि अनुच्छेद 131, 142, 143, 145(3), 200, 201 और 361 के दायरे में न्यायालय की सीमाएं क्या हैं। खासकर “मान्य अनुमोदन” की अवधारणा पर उन्होंने गंभीर आपत्ति जताई, जिसे उन्होंने संवैधानिक अधिकारियों की स्वतंत्र सोच को कमजोर करने वाला बताया है।
राजनीतिक और संवैधानिक असर
President Draupadi Murmu के इस संदर्भ को केंद्र सरकार और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने समर्थन दिया है। धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसले की आलोचना की थी, जिसमें अनुच्छेद 142 के तहत न्यायालय की शक्तियों को प्रमुखता दी गई। अब मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता में जल्द ही पांच न्यायाधिशों की संवैधानिक पीठ इस मामले पर विचार करेगी। यह मामला न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच शक्तियों के विभाजन को लेकर देश के संवैधानिक इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। इसका प्रभाव केंद्र-राज्य संबंधों और संघवाद की संरचना पर भी गहरा पड़ेगा।
आगे की प्रक्रिया
इस संदर्भ पर न्यायालय की प्रतिक्रिया और आगे की कार्यवाही की प्रतीक्षा है। यह मामला संवैधानिक अधिकारियों की भूमिकाओं और विधायी प्रक्रियाओं के भविष्य को परिभाषित करेगा, जिससे भारत के लोकतंत्र में एक नया अध्याय जुड़ सकता है।