कानपुर ऑनलाइन डेस्क। पूरे देश में बड़े हर्षोल्लास के साथ गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है। देशभक्ति गीतों से शहर-शहर, गांव-गांव सराबोर हैं। लोग क्रांतिकारियों की गाथा सुनाने के साथ ही अंग्रेजी हुकूमत की क्रूरता की दास्तां को भी बया कर रहे हैं। जिन्न और पाकिस्तान के जन्म की कहानियां भी सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोर रही हैं। ऐसे में हम भी आपको एक ऐसी ही कहानी से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिसे पढ़कर आप हैरान हो जाएंगे। बात 1947 की है। जब बंटवारे के बाद पाकिस्तान का उदय हुआ। मुस्लिमों ने पाक के अंदर हिन्दु-सिखों का खून बहाया, तब महात्मा गांधी आगे आए और करीब 20 हजार मुस्लिमों की जान बचाई।
तब आगे आए महात्मा गांधी
कहानी भारत की आजादी के वक्त की है। अंग्रेजों ने भारत को आजाद किए जाने का ऐलान कर दिया। तभी मोहम्मद अली जिन्ना के अरमान जागे। उन्होंने मुसलमानों के लिए भारत से अलग पाकिस्तान की मांग की। जिन्ना के कारण भारत के दो टुकड़े हुए और विश्व के नख्शे पर पाकिस्तान नाम के देश का जन्म हुआ। बंटवारे के बाद पाकिस्तान में मुस्लिमों ने हिन्दु और सिखों का कत्लेआम किया। महिलाओं की आबरू लूटी। पाकिस्तान में भड़की आग की लपटें भारत में भी पहुंच चुकी थी। ऐसे में महात्मा गांधी ही वो शख्स थे जिन्होंने अपने शब्दों के अस्त्र चलाकर लोगों को संयमित करने की कोशिश की।
ट्रेन के अंदर थे इंसानों के शव
भारत के विभाजन के बाद जब हिंदू भारत की ओर मुसलमान पाकिस्तान की ओर रुख कर रहे थे, तो वे खौफजदा थे। हिंसा की आग में देश चल रहा था और वे सबकुछ छोड़कर भागने को विवश थे। हजारों के परिवार वाले बिछड़ गए, तो हजारों की हत्या उनके सामने हुई। जिसको जैसे मौका मिला वह सुरक्षित स्थान की ओर भागा। अमृतसर रेलवे स्टेशन पर शरणार्थी जमा थे। रेलगाड़ी आने पर वे अपनों की तलाश करते थे। 15 अगस्त 1947 को 10 डाउन एक्सप्रेस, आठ डिब्बों की गाड़ी जब प्लेटफॉर्म पर रूकी तो उससे चार सिपाहियों के अलावा कोई उतरा नहीं। स्टेशन मास्टर छेनी सिंह ने देखा सभी बोगियों की खिड़कियां खुलीं थीं, लेकिन कोई वहां से झांक नहीं रहा था।
अपने पति का कटा हुआ सिर उठाया और
ट्रेन के अंदर सन्नाटा पसरा था। स्टेशन पर मौजूद शरणार्थी जो परिजनों की तलाश में आए थे, वे भी डरे हुए थे। स्टेशन मास्टर ने एक बोगी का दरवाजा खोला और जो देखा उसे देखकर उनका सिर चकरा गया। डिब्बे के फर्श पर इंसानी जिस्मों का ढेर पड़ा था। किसी की खोपड़ी चकनाचूर थी, तो किसी की आंत बाहर थी। कटे हुए हाथ-पैर बिखरे पड़े थे। तभी उन्हें किसी की घुटी हुई आवाज सुनाई थी। उन्होंने चिल्लाकर कहा, अमृतसर आ गया है, यहां सिर्फ हिंदू और सिख हैं बाहर आ जाओ। तभी एक औरत ने हाथ में अपने पति का कटा हुआ सिर उठाया और उसे सीने से लगाकर दहाड़े मारकर रोने लगी। कुछ बच्चे माओं के सीने से लिपटकर रो रहे थे।
हमारी ओर से स्वतंत्रता का उपहार
स्टेशन मास्टर ने एक के बाद दूसरे बोगी का रुख किया और हर बोगी की वही स्थिति थी। वह लाशों की ढेर से गुजर रहे थे। अंतिम बोगी तक पहुंचते-पहुंचते उन्हें उल्टी होने लगी और वे सोचने लगे कि इंसान इतना निर्दयी कैसे हो सकता है। उस ट्रेन के अंतिम बोगी पर सफेद अक्षरों में लिखा था, यह पटेल और नेहरू को हमारी ओर से स्वतंत्रता का उपहार है। नरसंहार की खबर से पूरे भारत में विरोध की लहर दौड़ पड़ी। शहर से लेकर गांवों में हिसां भड़क गई। उस वक्त भी महात्मा गांधी एक ऐसे व्यक्ति थे, जो लोगों को नियंत्रित कर सकते थे। इस बात को लार्ड माउंटबेटन अच्छी तरह जानते थे।
मुसलमानों को जाकर गले लगाइए और
महात्मा गांधी को लार्ड माउंटबेटन वन मैन आर्मी कहा करते थे। इसलिए जहां भी हिंसा की आग तेज हुई, उन्होंने महात्मा गांधी को आगे करके हिंसा करने वालों को धराशाई करने की कोशिश की और वे काफी हद तक सफल भी रहे। दिल्ली से सटे हुए पानीपत में जब हिंसा की आग बहुत तेज हो गई और मुसलमानों की हिंसा का जवाब देने के लिए हिंदू और सिख पागल हो गए, तब एक रेलवे स्टेशन पर उनका उत्पाद जारी था। तब महात्मा गांधी कलकत्ता से पानीपत आए। प्लेटफॉर्म पर उतरकर वे दंगाइयों की ओर बढ़ गए। डोमिनीक लापिएर और लैरी कॉलिंस ने अपनी किताब फ्रीडम एड नाइट में लिखा है कि वे भीड़ से कहने लगे, ‘इस शहर के मुसलमानों को जाकर गले लगाइए और उनसे कहिए कि वे यहीं रहें. पाकिस्तान ना जाएं।
हां मेरी पत्नी के साथ हुआ है बलात्कार
गांधीजी की बात सुनकर भीड़कर में से एक ने चि़्ल्लाकर कहा, बलात्कार क्या आपकी पत्नी के साथ हुआ?। क्या आपके बच्चे को उन लोगों ने बोटी-बोटी करके फेंक दिया। गांधी जी ने जवाब दिया, ‘हां बलात्कार मेरी पत्नी के साथ हुआ है’। उनलोगों ने मेरे बेटे को मारा है, क्योंकि आपकी औरतें मेरे घर की लाज हैं। आपके बेटे मेरे बेटे हैं। भीड़ में जो लोग थे उनके हाथों में तलवार, कृपाण, छुरा और भाले थे और वे कइयों का खून कर आए थे। गांधी जी उनसे कहा, इन हथियारों और घृणा से कुछ नहीं होगा, इसलिए मुसलमानों को रोको। गांधी जी ने लोगों का आह्वान किया, हम सब भारत माता की संतान हैं। घृणा और नफरत से इंसानियत को मरने ना दें। इंसानियत सबसे ऊपर है।
20 हजार मुस्लिमों की बचाई जान
महात्मा गांधी ने तब कहा था कि, बदले की भावना से कुछ मिलने वाला नहीं है। दूसरे की मदद करने और उसे प्रेम देने से शांति और सुकून मिलेगा। गांधी जी के भाषण का असर यह था कि हिंदू और मुसलमान मदद के लिए आगे आए। कोई भोजन तो कोई कपड़े लाने लगा। हिंसा की आग को रोककर यह महात्मा दूसरे मोर्चे की ओर निकला। तब पानीपत में 20 हजार मुसलमानों की जान गांधीजी ने बचाई थी। वे भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए। इस बात का महात्मा गांधी को बहुत दुख था। महत्मां गांधी ने मुसलमानों से कहा था कि आप पानीपत में रहिए। पाकिस्तान मत जाइए। आपके हिफाजद हिन्दू-सिख करेंगे पर वह नहीं मानें।