Sanjay Nishad: संजय निषाद बीजेपी आलाकमान से निराश होकर अब सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की उम्मीद लगाए बैठे हैं। कई दिनों से दिल्ली में डेरा जमाए निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद की अब तक बीजेपी के शीर्ष नेताओं से कोई ठोस बातचीत नहीं हो पाई है। सूत्रों के अनुसार, बीजेपी की कोर कमेटी से बात करने का सुझाव दिया गया था, लेकिन संजय निषाद इस पर राजी नहीं हुए। अब वे पीएम मोदी से मिलने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि उपचुनाव में कटेहरी और मझवां सीटों पर उनकी पार्टी को टिकट मिले। संजय निषाद को उम्मीद है कि पीएम मोदी उनके साथ न्याय करेंगे, लेकिन बीजेपी के आंतरिक समीकरण फिलहाल उनके पक्ष में नज़र नहीं आ रहे।
उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगी दल निषाद पार्टी के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। योगी सरकार में मंत्री और निषाद पार्टी के मुखिया Sanjay Nishad अंबेडकरनगर की कटेहरी और मिर्जापुर की मझवां सीट की मांग कर रहे हैं। हालांकि, बीजेपी ने 8-1 के सीट शेयरिंग फॉर्मूले के तहत केवल 8 सीटों पर खुद चुनाव लड़ने का फैसला किया है और एक सीट राष्ट्रीय लोक दल को दी है। संजय निषाद की मांग पर कोई ध्यान न देते हुए बीजेपी ने उन्हें कोई सीट नहीं दी, जिसके बाद से वे दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। अब सवाल है कि क्या बीजेपी उनकी मांग मानेगी या संजय निषाद को खाली हाथ लौटना पड़ेगा?
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Sanjay Nishad 2022 के विधानसभा चुनावों का हवाला देकर कटेहरी और मझवां सीटों पर अपना दावा कर रहे हैं, जहां उनकी पार्टी ने चुनाव लड़ा था और मझवां सीट पर जीत हासिल की थी। मझवां सीट पर जीतने वाले विनोद बिंद अब बीजेपी के टिकट पर भदोही से सांसद बन चुके हैं, जिसके चलते मझवां में उपचुनाव हो रहा है। संजय निषाद का कहना है कि बीजेपी के साथ गठबंधन में रहते हुए भी उनकी पार्टी को सीटों की अनदेखी झेलनी पड़ रही है, और अब वे इस उपचुनाव में अपने चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ना चाहते हैं।
बीजेपी की रणनीति अलग है। पार्टी आगामी 2027 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए खुद सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। पार्टी को लगता है कि अपने कमल निशान पर लड़ने से उसे जीतने का बेहतर मौका मिलेगा, जबकि सहयोगी दलों पर चुनाव लड़ने से जीत की गारंटी नहीं है। बीजेपी ने निषाद पार्टी की नाराजगी को दूर करने के लिए कुछ प्रयास किए हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है।
Sanjay Nishad का दिल्ली में डेरा डालना और शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात की मांग करना बीजेपी के लिए एक चुनौती है। अब देखना यह है कि क्या संजय निषाद की मांगें मानी जाती हैं या उन्हें इस बार भी खाली हाथ लौटना पड़ता है।