Supreme Court vs High Court: प्रशांत कुमार केस पर टकराव की चिट्ठी, 13 जजों की खुली नाराजगी

जस्टिस प्रशांत कुमार के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी और सुनवाई से हटाने के निर्देश के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट के 13 जजों ने आपत्ति जताई है। उन्होंने चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर फुल कोर्ट बैठक की मांग की।

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Supreme Court vs High Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के बीच एक संवेदनशील मसले को लेकर खींचतान की स्थिति बन गई है। हाई कोर्ट के 13 वरिष्ठ जजों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर गहरी आपत्ति जताई है। यह विवाद जस्टिस प्रशांत कुमार के एक आदेश से जुड़ा है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए खारिज कर दिया और उन्हें आपराधिक मामलों की सुनवाई से हटाने का निर्देश भी जारी कर दिया। हाई कोर्ट के जजों का मानना है कि यह सुप्रीम कोर्ट की प्रशासनिक दखलंदाजी है और इससे न्यायपालिका की स्वायत्तता पर प्रश्नचिन्ह लगता है। उन्होंने इस मुद्दे पर फुल कोर्ट बैठक बुलाने की मांग की है।

जस्टिस प्रशांत कुमार के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की आपत्ति

मामला उस समय गंभीर हो गया जब Supreme Court की पीठ—जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन—ने 4 अगस्त को जस्टिस प्रशांत कुमार के एक आदेश को रद्द कर दिया। यह आदेश शिखर केमिकल्स नामक कंपनी द्वारा अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द कराने की याचिका पर आधारित था, जिसे जस्टिस कुमार ने खारिज करते हुए शिकायतकर्ता को सिविल उपाय अपनाने का सुझाव दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले के पैरा 12 में की गई टिप्पणियों को “स्तब्ध कर देने वाला” बताते हुए अस्वीकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने इसे अनुचित करार देते हुए आदेश को खारिज कर दिया और मामला किसी अन्य न्यायाधीश के पास पुनर्विचार के लिए भेज दिया।

हाई कोर्ट के जजों की चिट्ठी: प्रशासनिक अधिकारों पर सवाल

Supreme Court के इस हस्तक्षेप को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के 13 जजों ने एकजुट होकर मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली को पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर आपत्ति जताई है जिसमें जस्टिस कुमार को आपराधिक मामलों से दूर रखने और डिवीजन बेंच में सीनियर जज के साथ बैठाने को कहा गया था। जजों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट को हाई कोर्ट के प्रशासनिक कार्यों में दखल देने का अधिकार नहीं है। उनका मानना है कि इस फैसले से हाई कोर्ट की स्वायत्तता और निष्पक्षता को ठेस पहुंची है। इसीलिए उन्होंने मामले की गंभीरता को देखते हुए फुल कोर्ट बैठक बुलाने की मांग की है।

न्यायपालिका की गरिमा और शक्ति संतुलन पर बहस

यह विवाद केवल एक न्यायिक आदेश तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे न्यायपालिका के भीतर शक्ति संतुलन और गरिमा की बहस भी तेज हो गई है। हाई कोर्ट के वरिष्ठ जजों की सामूहिक प्रतिक्रिया यह संकेत देती है कि निचली अदालतें अब सुप्रीम कोर्ट की प्रशासनिक टिप्पणियों को बिना चुनौती स्वीकार नहीं करेंगी। वहीं, सुप्रीम कोर्ट का यह रुख कि अनुचित टिप्पणियां न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती हैं, भी उतना ही महत्वपूर्ण है। आने वाले समय में यह मसला एक व्यापक संवैधानिक बहस का विषय बन सकता है, जिससे उच्चतम और उच्च न्यायालयों के बीच कार्यक्षेत्र की स्पष्टता तय होगी।

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